Atmadharma magazine - Ank 179
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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भादरवोः २४८४ः २३ः
मोक्षमार्गना
पुरुषार्थनी साथे
सर्वज्ञना
स्वीकारनी संधि
मोक्षमार्गना मूळ उपदेशक सर्वज्ञदेव छे; एटले सर्वज्ञना स्वीकार
वगर कदी मोक्षमार्गनो पुरुषार्थ उपडतो नथी. जेणे सर्वज्ञताना अनंत–
अचिंत्य सामर्थ्यनो स्वीकार कर्यो छे तेणे ते स्वीकार कई रीते कर्यो?
रागथी पार थईने, अंतरनी चिदानंद शक्ति तरफना झुकाव वगर
सर्वज्ञताना अचिंत्य सामर्थ्यनो यथार्थ स्वीकार थई शकतो नथी; अने
आ रीते, रागथी पार थईने अंतरनी चिदानंद शक्ति तरफ झूकीने जेणे
सर्वज्ञताना अनंत अचिंत्य सामर्थ्यनो स्वीकार कर्यो–तेने पोताना
आत्मामां अचिंत्य मोक्षमार्गनो पुरुषार्थ ऊछळी गयो छे. अने जेणे ए
रीते सर्वज्ञताना सामर्थ्यनो स्वीकार नथी कर्यो तेने सर्वज्ञना मार्ग प्रत्ये
(एटले के मोक्षमार्ग प्रत्ये) पुरुषार्थ ऊछळतो नथी.
आ रीते मोक्षमार्गना पुरुषार्थनी साथे सर्वज्ञना स्वीकारनी संधि
छे.
(पंचास्तिकायना प्रकाशन–प्रसंगे प्रवचनमांथी)
हेतुनी विपरीतता
साधकने चैतन्यस्वभावनुं साधन करतां करतां, वच्चे कंईक राग
बाकी रही जाय छे, पण तेनो हेतु रागमां वर्तवानो नथी, तेनो हेतु
(तेनो अभिप्राय) तो वीतरागपणे चैतन्यस्वभावमां ज वर्तवानो छे.
एटले राग होवा छतां तेनो हेतु विपरीत नथी, तेनो हेतु–तेनुं ध्येय–तो
सम्यक् छे.
अज्ञानीने चैतन्यस्वभावनुं भान नथी, ने बाह्य विकल्पो आवे
तेमां ज ते अटकी रहे छे, एटले तेना हेतुमां ज राग छे. रागना हेतुथी ते
रागमां वर्ते छे, राग ज तेनुं ध्येय छे, रागथी ज ते लाभ माने छे,
रागथी जराय खसीने चिदानंद स्वभावमां आवतो नथी, एटले तेनो तो
हेतु ज खोटो छे, तेना हेतुमां ज विपरीतता छे.
राग अज्ञानीने होय ने ज्ञानीने पण होय, परंतु अज्ञानीने ते
राग राखवानो हेतु छे, ज्ञानीने ते राग टाळीने स्वभावमां ठरवानो हेतु
छे. आम बंनेना हेतुमां मोटो फेर छे.