अचिंत्य सामर्थ्यनो स्वीकार कर्यो छे तेणे ते स्वीकार कई रीते कर्यो?
रागथी पार थईने, अंतरनी चिदानंद शक्ति तरफना झुकाव वगर
सर्वज्ञताना अचिंत्य सामर्थ्यनो यथार्थ स्वीकार थई शकतो नथी; अने
आ रीते, रागथी पार थईने अंतरनी चिदानंद शक्ति तरफ झूकीने जेणे
सर्वज्ञताना अनंत अचिंत्य सामर्थ्यनो स्वीकार कर्यो–तेने पोताना
आत्मामां अचिंत्य मोक्षमार्गनो पुरुषार्थ ऊछळी गयो छे. अने जेणे ए
रीते सर्वज्ञताना सामर्थ्यनो स्वीकार नथी कर्यो तेने सर्वज्ञना मार्ग प्रत्ये
(एटले के मोक्षमार्ग प्रत्ये) पुरुषार्थ ऊछळतो नथी.
(तेनो अभिप्राय) तो वीतरागपणे चैतन्यस्वभावमां ज वर्तवानो छे.
एटले राग होवा छतां तेनो हेतु विपरीत नथी, तेनो हेतु–तेनुं ध्येय–तो
सम्यक् छे.
रागमां वर्ते छे, राग ज तेनुं ध्येय छे, रागथी ज ते लाभ माने छे,
रागथी जराय खसीने चिदानंद स्वभावमां आवतो नथी, एटले तेनो तो
हेतु ज खोटो छे, तेना हेतुमां ज विपरीतता छे.
छे. आम बंनेना हेतुमां मोटो फेर छे.