Atmadharma magazine - Ank 180
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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आसोः २४८४ः १पः
सोनगढ जिनमंदिरना एक चित्रमां, मथुरानगरीमां
ऋद्धिधारी सात मुनिभगवंतो (सप्तर्षि) नी पधरामणीनुं
अति भाववाही द्रश्य छे...एक साथे सात वीतरागी मुनिवरोने
नीहाळतां भक्तहृदय प्रफुल्लित थाय छे ने ते चित्रनी कथा
जाणवा माटे सहेजे मनमां उत्कंठा जागे छे...पद्मपुराणमांथी
अहीं ते कथा आपवामां आवी छे. अत्यारे पण
मथुरानगरीना जिनमंदिरमां सप्तर्षि मुनिवरोना प्रतिमाजी
बिराजी रह्या छे..
राम–लक्ष्मण लंका वगेरेने जीतीने अयोध्यामां पाछा आव्या, अने तेमनो राज्याभिषेक थयो, त्यारबाद घणी
प्रीतिपूर्वक भाई शत्रुघ्नने तेओए कह्युं; बंधु! तमने जे देश गमे ते ल्यो; जो तमे अयोध्या चाहता हो तो अडधी
अयोध्या ल्यो, अथवा राजगृही, पोदनापुर वगेरे अनेक राजधानीओमांथी तमने जे गमे तेनुं राज करो.
त्यारे शत्रुघ्न कह्युं के मने मथुरानुं राज आपो. रामे कह्युंः हे भ्रात! ए मथुरानगरीमां तो राजा मधुनुं राज्य
छे, ते रावणनो जमाई छे, अनेक युद्धने जीतनार छे अने वळी चमरइन्द्रे तेने त्रिशूलरत्न आप्युं छे; तेनो पुत्र
लवणसागर पण महाशूरवीर छे; ए बंने पिता पुत्र जीतवा मुश्केल छे, माटे मथुरा सिवायनुं जे राज्य तमने गमे ते
ल्यो.
शत्रुघ्ने कह्युंः मने मथुरा ज आपो; रणसंग्राममां
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रह्या छे, ते दुःखथी मुक्त थवानी रीत आचार्यदेवे आ १०३ मी गाथामां बतावी.
जेओ वनजंगलमां वसनारा महान संत छे, जेओ विदेहक्षेत्रे जईने सीमंधरपरमात्मानी
वाणी सांभळी आव्या छे, जेमना चारित्रना पावर फाटी गया छे अने जेओ चैतन्यना आनंदना
झूलणे झूली रह्या छे, एवा भगवान कुंदकुंदाचार्यदेवनुं आ कथन छे; जे जीव आत्मार्थी थईने
समजशे ते दुःखथी परिमुक्त थईने परमानंदने पामशे.
भ्रांति अने सावधानी
* “आत्मस्वभावनी भ्रांति शुं शुं फळ न आपे?” अने
* “आत्मस्वभावनी सावधानी शुं शुं फळ न आपे?”
निगोददुःख अने सिद्धसुख
* आत्मस्वभावनी भ्रांति निगोद सुधीना भीषण दुःख आपे; अने
आत्मस्वभावनी सावधानी सिद्धदशा सुधीना परमसुख आपे.
‘ज्यां रुचे त्यां जाव’