Atmadharma magazine - Ank 180
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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ः १६ः आत्मधर्मः १८०
राजा मधुने हुं मधपूडानी जेम तोडी पाडीश.–आम कहीने शत्रुघ्न मथुरा जवा तैयार थयो, त्यारे रामे तेने कह्युंः भाई,
तुं मने एक वचन आपतो जा.
शत्रुघ्ने कह्युंः बंधु! आप तो मारा प्राणना पण नाथ छो, तो बीजी वस्तुनी शी वात? एक राजा मधु साथेनुं
युद्ध तो हुं नहीं छोडुं, बीजुं आप जे कहो ते करुं.
रामे कह्युंः हे वत्स! तुं मधु साथे युद्ध करे तो, जे वखते तेना हाथमां त्रिशूल न होय ते वखते करजे.
शत्रुघ्ने कह्युंः आपनी आज्ञा प्रमाणे ज हुं करीश.
त्यारबाद जिनदेवनी पूजा करीने तथा सिद्धोने नमस्कार करीने, माता पासे आवीने शत्रुघ्ने विदाय माटे आज्ञा
मांगी; त्यारे माताए कह्युंः हे वत्स! तारो विजय हो! ज्यारे तारो विजय थशे त्यारे हुं जिनेन्द्रदेवनी महापूजा
करावीश; स्वयं मंगलरूप अने त्रण लोकना मंगलकर्ता श्री जिनदेव तारुं मंगल करो; सर्वज्ञ भगवानना प्रसादथी तारो
विजय हो...सिद्ध भगवंतो तने सिद्धिना कर्ता हो; आचार्य–उपाध्याय तथा साधु परमेष्ठी तारा विघ्न हरो ने तारुं
कल्याण करो–आ प्रमाणे कहीने मंगलकारी माताए आशीर्वाद दीधा, ते माथे चडावीने शत्रुघ्ने माताने नमस्कार कर्या
अने त्यांथी मथुरा तरफ प्रस्थान कर्युं. लक्ष्मणे तेने समुद्रावर्त नामनुं धनुष आप्युं तथा कृतान्तवक्र सेनापतिने तेनी
साथे मोकल्यो.
शत्रुघ्न सेनासहित मथुरा नजीक आवी पहोंच्यो ने यमुना नदीने किनारे पडाव नांख्यो. त्यां मंत्रीओ चिंता
करवा लाग्या के राजा मधु तो मोटो मान्धाता छे ने आ शत्रुघ्न तो बाळक छे, ते शत्रुने कई रीते जीती शकशे? त्यारे
कृतान्तवक्र सेनापतिए कह्युंः अरे मंत्री! तमे साहस छोडीने आवा कायरताना वचन केम कहो छो? जेम हाथी
महाबळवान छे अने सूंढवडे मोटा वृक्षोने ऊखेडी नांखे छे, तो पण सिंह तेने जीती ले छे, तेम मधुराजा महाबळवान
होवा छतां शत्रुघ्न तेने जरूर जीती लेशे. सेनापतिनी आ वात सांभळीने सौ प्रसन्न थया. एवामां नगरमां गयेला
गुप्तचरोए आवीने समाचार आप्या केः हालमां मधु राजा वनक्रीडा माटे नगरनी बहार उपवनमां रहे छे, अने तमे
मथुरा जीतवा माटे आव्या छो तेनुं पण तेने भान नथी, तेथी अत्यारे मथुरा सहेलाईथी हाथ आवे तेम छे.–ए
सांभळीने शत्रुघ्ने पोताना योद्धाओ सहित मथुरानगरीमां प्रवेश कर्यो.–जेम योगीओ कर्मनाश करीने सिद्धपुरीमां
प्रवेश करे तेम शत्रुघ्ने दरवाजा तोडीने मथुरानगरीमां प्रवेश कर्यो, अने आयुधशाळा पोताना कबजे करी लीधी.
परचक्रना आगमनथी नगरजनो भयभीत थई गया, परंतु शत्रुघ्ने एम कहीने तेमने धैर्य बंधाव्युं के अहीं श्रीरामनुं
राज्य छे, तेमां कोईने दुःख के भय नथी.
शत्रुघ्ने मथुरामां प्रवेश कर्यो ते सांभळीने राजा मधु क्रोधपूर्वक उपवनमांथी नगर तरफ आव्यो. परंतु द्वार पर
शत्रुघ्नना सुभटोनी चोकी होवाथी ते मथुरामां प्रवेश न करी शक्यो;– जेम मुनिराजना हृदयमां मोह प्रवेशी न शके तेम
अनेक उपाय करवा छतां ते राजा नगरीमां प्रवेशी न शक्यो. जो के ते त्रिशूलथी रहित थई गयो हतो तोपण
महाअभिमानथी तेणे शत्रुघ्न साथे युद्ध कर्युं. युद्धमां राजा मधुनो पुत्र लवणसागर कृतान्तवक्रना प्रहारथी मरण
पाम्यो. पुत्रनुं मृत्यु देखीने मधु राजा अत्यंत शोक अने क्रोधपूर्वक शत्रुघ्नना सैन्य सामे लडवा लाग्यो. परंतु जेम
जिनशासनना स्याद्वादी पंडित सामे कोई एकांतवादी टकी न शके तेम शत्रुघ्ननी वीरता सामे मधु राजाना कोई योद्धा
टकी न शक्या.
आथी शत्रुघ्नने दुर्जय जाणीने तथा पोताने त्रिशूल आयुधथी रहित जाणीने, तेमज पुत्रनुं मृत्यु देखीने अने
पोतानुं आयुष्य पण अल्प जाणीने, मधु राजा अत्यंत विवेकपूर्वक विचारवा लाग्योः “अहो! संसारनो समस्त आरंभ
महाहिंसारूप अने दुःख देनार छे तेथी ते सर्वथा त्याज्य छे; आ क्षणभंगुर संसारमां मूढ जीवो राचे छे. आ जगतमां
धर्म ज प्रशंसायोग्य छे. आ दुर्लभ मनुष्यदेह पामीने पण जे जीव धर्मने विषे बुद्धि नथी करतो ते मोहवडे ठगायो थको
अनंत भवभ्रमण करे छे. अरे! में पापीए असाररूप संसारने सार जाण्यो, क्षणभंगुर शरीरने ध्रुव जाण्युं ने अत्यार
सुधी आत्महित न कर्युं..ज्यारे हुं स्वाधीन हतो त्यारे मने सुबुद्धि न उपजी, हवे तो मारो अंतकाळ आव्यो..सर्प डशे ते
वखते दूरदेशथी मणिमंत्र के औषध मंगाववा शा कामना? माटे हवे हुं सर्व चिंता छोडीने निराकुळपणे मारा मननुं
समाधान करुं.” युद्धमां हाथीना होद उपर बेठा बेठा मधुराजा