मन–वचन–कायाथी वारंवार नमस्कार करवा लाग्यो; अने विचारवा लाग्यो के अरिहंतो–सिद्धो–साधुओ अने
केवळीप्ररूपितधर्म ते ज मंगलरूप छे, ते ज उत्तम रूप छे अने तेनुं ज मने शरण छे; अढीद्वीपनी अंदर कर्मभूमि(
पांच भरत, पांच ऐरावत, पांच विदेह)मां जे भगवान अर्हंतदेवो छे तेओ मारा हृदयमां वसो..तेमने हुं
वारंवार नमस्कार करुं छुं...हवे सर्व पापने हुं यावत् जीवन छोडुं छुं, चारे प्रकारना आहारने त्यागुं छुं,
पूर्वोपार्जित पापनी निंदा करुं छुं, अने समस्त वस्तुनुं प्रत्याख्यान करुं छुं...अनादिकाळथी संसारने विषे
उपार्जेलां मारां दुष्कृत्यो मिथ्या थाओ...हवे हुं तत्त्वज्ञानमां स्थिर थईने, तजवायोग्य जे रागादिक तेने तजुं छुं
अने ग्रहवायोग्य जे निजभाव–जिनभाव तेने ग्रहुं छुं; ज्ञानदर्शन मारो स्वभाव ज छे, ते माराथी अभेद्य छे,
अने शरीरादिक समस्त पदार्थो माराथी जुदा छे...संन्यासमरण वखते भूमिनो के तृणादिनो संथारो ते खरो
संथारो नथी, पण दोषरहित एवो शुद्ध आत्मा पोते ज पोतानो संथारो छे.–आम विचारीने मधु राजाए बंने
प्रकारना परिग्रहो भावथी छोडया. जेनुं शरीर अनेक घाथी घवायेलुं छे एवो मधुराजा हाथीनी पीठ उपर बेठा
बेठा ज केशलोच करवा लाग्यो...वीररस छोडीने शांतरस अंगीकार कर्यो...अने महाधैर्यपूर्वक अध्यात्म योगमां
आरूढ थईने कायानुं ममत्व छोडी दीधुं..
देवो पण आश्चर्यपूर्वक पुष्पवृष्टि करवा लाग्या..महाधीर मधुराज एक क्षणमां समाधिमरण करीने त्रीजा स्वर्गमां देव
थया. अने शत्रुघ्ने तेमनी स्तुति करीने मथुरानगरीमां प्रवेश कर्यो.
कह्या. असुरेन्द्रने मधुराजा साथे अत्यंत मित्रता हती. तेथी महाक्रोधपूर्वक पाताळमांथी नीकळीने ते मथुरा
आववा उद्यमी थयो.
नथी सांभळ्युं? (विशल्या ते लक्ष्मणनी पटराणी छे.)
असाधारण शक्ति हती; अत्यारे जो के ते पतिव्रता छे पण ब्रह्मचारिणी नथी, तेथी हवे तेनामां तेवी शक्ति
नथी. तेथी हवे हुं मारा मित्र मधुराजाना शत्रु उपर जईने तेनुं वेर वाळीश.–आम कहीने ते चमरेन्द्र मथुरा
आव्यो.
महादुष्ट अने कृतघ्नी छे, नगरीनो धणी तेना पुत्र सहित मृत्यु पाम्यो छे ने बीजो राजा आवीने बेठो छे छतां आ
लोकोने शोक नथी पण ऊलटो हर्ष छे! जेनी भुजानी छायमां घणा काळ सुधी सुखथी रह्या छतां ते मधुराजाना मरणथी
आ लोकोने केम कांई दुःख न थयुं? आ लोको महाकृतघ्नी अने मूर्ख छे, माटे हुं तेनो नाश करी नांखुं, आखी
मथुरापुरीनो क्षय करी नांखुं! आ रीते महाक्रोधपूर्वक ते असुरेन्द्र मथुरानगरीना लोको उपर घोर उपसर्ग करवा लाग्यो.
आखी नगरीमां भयंकर मरकी फेलाई गई..जे ज्यां ऊभा हता ते त्यां ऊभा ऊभा ज मरवा लाग्या...बेठेला बेठा बेठा
मरवा लाग्या...सूतेला सूई