Atmadharma magazine - Ank 180
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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आसोः २४८४ः १७ः
आ प्रमाणे विचारीने मुनिभावना भाववा लाग्यो..तथा अरहन्त–सिद्ध–आचार्य–उपाध्याय अने साधुओने
मन–वचन–कायाथी वारंवार नमस्कार करवा लाग्यो; अने विचारवा लाग्यो के अरिहंतो–सिद्धो–साधुओ अने
केवळीप्ररूपितधर्म ते ज मंगलरूप छे, ते ज उत्तम रूप छे अने तेनुं ज मने शरण छे; अढीद्वीपनी अंदर कर्मभूमि(
पांच भरत, पांच ऐरावत, पांच विदेह)मां जे भगवान अर्हंतदेवो छे तेओ मारा हृदयमां वसो..तेमने हुं
वारंवार नमस्कार करुं छुं...हवे सर्व पापने हुं यावत् जीवन छोडुं छुं, चारे प्रकारना आहारने त्यागुं छुं,
पूर्वोपार्जित पापनी निंदा करुं छुं, अने समस्त वस्तुनुं प्रत्याख्यान करुं छुं...अनादिकाळथी संसारने विषे
उपार्जेलां मारां दुष्कृत्यो मिथ्या थाओ...हवे हुं तत्त्वज्ञानमां स्थिर थईने, तजवायोग्य जे रागादिक तेने तजुं छुं
अने ग्रहवायोग्य जे निजभाव–जिनभाव तेने ग्रहुं छुं; ज्ञानदर्शन मारो स्वभाव ज छे, ते माराथी अभेद्य छे,
अने शरीरादिक समस्त पदार्थो माराथी जुदा छे...संन्यासमरण वखते भूमिनो के तृणादिनो संथारो ते खरो
संथारो नथी, पण दोषरहित एवो शुद्ध आत्मा पोते ज पोतानो संथारो छे.–आम विचारीने मधु राजाए बंने
प्रकारना परिग्रहो भावथी छोडया. जेनुं शरीर अनेक घाथी घवायेलुं छे एवो मधुराजा हाथीनी पीठ उपर बेठा
बेठा ज केशलोच करवा लाग्यो...वीररस छोडीने शांतरस अंगीकार कर्यो...अने महाधैर्यपूर्वक अध्यात्म योगमां
आरूढ थईने कायानुं ममत्व छोडी दीधुं..
मधु राजानी आवी परम शांतदशा देखीने तेने नमस्कार करतो थको शत्रुघ्न कहेवा लाग्योः ‘हे साधो! मारो
अपराध क्षमा करो...धन्य छे आपना वैराग्यने! युद्ध दरमियान मधु राजानो प्रथम वीररस अने पछी शांतरस देखीने
देवो पण आश्चर्यपूर्वक पुष्पवृष्टि करवा लाग्या..महाधीर मधुराज एक क्षणमां समाधिमरण करीने त्रीजा स्वर्गमां देव
थया. अने शत्रुघ्ने तेमनी स्तुति करीने मथुरानगरीमां प्रवेश कर्यो.
असुरेन्द्रे (अर्थात् चमरेन्द्रे) मधुराजाने जे महा प्रचंड त्रिशूल आपेल हतुं तेनो अधिष्ठाता देव मधु
राजाना मरणथी खेदखिन्न थईने असुरेन्द्र पासे आव्यो, अने लडाईना तथा मधुराजाना मरणना समाचार
कह्या. असुरेन्द्रने मधुराजा साथे अत्यंत मित्रता हती. तेथी महाक्रोधपूर्वक पाताळमांथी नीकळीने ते मथुरा
आववा उद्यमी थयो.
ते वखते गरुडेन्द्र तेनी पासे आव्यो ने पूछयुंः हे दैत्येन्द्र! कई तरफ जवानी तैयारी करो छो?
चमरेन्द्रे कह्युं– जेणे मारा मित्र मधुने मार्यो छे तेने कष्ट देवा माटे जाउं छुं.
गरुडेन्द्रे कह्युं–शुं विशल्यानुं माहात्म्य तमे नथी जाणता? युद्धमां ज्यारे रावणनी अमोघशक्तिथी लक्ष्मणजी
मूर्च्छित थई गया हता त्यारे ए विशल्याना स्नानजळना प्रभावथी ज ए अमोघशक्ति भागी गई हती, ए शुं तमे
नथी सांभळ्‌युं? (विशल्या ते लक्ष्मणनी पटराणी छे.)
चमरेन्द्रे कह्युंः विशल्यानी ए अद्भुतशक्ति कुमार अवस्थामां ज हती, अत्यारे तो ते विषरहित नागणी
समान थई गई छे; ज्यां सुधी तेणे वासुदेवनो आश्रय नहोतो कर्यो त्यां सुधी ज ब्रह्मचर्यना प्रसादथी तेनी
असाधारण शक्ति हती; अत्यारे जो के ते पतिव्रता छे पण ब्रह्मचारिणी नथी, तेथी हवे तेनामां तेवी शक्ति
नथी. तेथी हवे हुं मारा मित्र मधुराजाना शत्रु उपर जईने तेनुं वेर वाळीश.–आम कहीने ते चमरेन्द्र मथुरा
आव्यो.
मथुरा आवीने चमरेन्द्रे जोयुं के अहीं ठेर ठेर उत्सव उजवाई रह्यो छे...मथुरानगरीमां जेवो उत्सव मधुराजाना
वखतमां हतो तेवो ज उत्सव नगरजनो अत्यारे पण ऊजवी रह्या छे. आ जोईने चमरेन्द्रे विचार्युं के अरे! आ लोको
महादुष्ट अने कृतघ्नी छे, नगरीनो धणी तेना पुत्र सहित मृत्यु पाम्यो छे ने बीजो राजा आवीने बेठो छे छतां आ
लोकोने शोक नथी पण ऊलटो हर्ष छे! जेनी भुजानी छायमां घणा काळ सुधी सुखथी रह्या छतां ते मधुराजाना मरणथी
आ लोकोने केम कांई दुःख न थयुं? आ लोको महाकृतघ्नी अने मूर्ख छे, माटे हुं तेनो नाश करी नांखुं, आखी
मथुरापुरीनो क्षय करी नांखुं! आ रीते महाक्रोधपूर्वक ते असुरेन्द्र मथुरानगरीना लोको उपर घोर उपसर्ग करवा लाग्यो.
आखी नगरीमां भयंकर मरकी फेलाई गई..जे ज्यां ऊभा हता ते त्यां ऊभा ऊभा ज मरवा लाग्या...बेठेला बेठा बेठा
मरवा लाग्या...सूतेला सूई