Atmadharma magazine - Ank 180
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 19 of 34

background image
ः १८ः आत्मधर्मः१८०
ज रह्या..आम घोर मरकीना रोगथी आखी नगरीमां हाहाकार थई गयो...अने देवकृत उपसर्ग समजीने शत्रुघ्न पण
अयोध्या आवतो रह्यो.
जो के अयोध्यापुरी महासुंदर छे तो पण शत्रुघ्ननुं चित्त तेमां अनुरागी थतुं नथी, तेनुं चित्त तो
छे.
शत्रुघ्ने कया कारणथी मथुरानी ज मागणी करी? तेने अयोध्या करतां पण मथुरानो निवास केम वधु
प्रिय लाग्यो? स्वर्ग समान बीजी अनेक राजधानीओ होवा छतां तेने न इच्छतां मथुरानी ज इच्छा केम करी?
मथुरा प्रत्ये शत्रुघ्नने आटली बधी प्रीति केम? तेना खुलासामां शास्त्रकार कहे छे के शत्रुघ्नना जीवे पूर्वे अनेक
भव मथुरामां (अर्थात् मधुपुरीमां) कर्या छे तेथी मथुरा प्रत्ये तेने अधिक स्नेह छे. शत्रुघ्ननो जीव संसारने
विषे अनंत भवोमां भ्रमण करतां करतां एक वार मथुरामां यमनदेव नामनो मनुष्य थयो, महाक्रूर धर्मविमुख
परिणामथी मरीने तिर्यंचगतिमां अनेक भव कर्यां; पछी कुलंधर नामनो दुराचारी ब्राह्मण थयो, त्याथी तप
करीने स्वर्गमां गयो; त्यांथी पाछो मथुरानगरीमां चंद्रप्रभ राजानो अचल नामनो पुत्र थयो; ते अचलकुमारने
वनमां एक वार कांटो लागेल ते अपकुमार नामना पुरुषे काढी आप्यो, तेथी ते बंनेने मित्रता थई. ज्यारे
अचलकुमारे अनेक देशो सहित मथुरा नगरीनुं राज मेळव्युं त्यारे तेणे पोताना मित्र अपकुमारने तेनी
जन्मभूमि श्रीवस्ती नगरीनुं राज्य आप्युं, अने बंने मित्रो भेगा ज रहेवा लाग्या; एक दिवसे यशसमुद्र
आचार्य पासे बंने मित्रोए मुनिदीक्षा लीधी, अने सम्यग्दर्शनपूर्वक परम संयम आराधीने समाधिमरण करीने
उत्कृष्ट देव थया. त्यांथी च्यवीने अचलकुमारनो जीव तो राजा दशरथनी सुप्रभाराणीनो पुत्र शत्रुघ्न थयो, अने
तेना मित्र अपकुमारनो जीव कृतान्तवक्र सेनापति थयो. आ कारणे शत्रुघ्नने मथुरानगरी विषे विशेष प्रीति
हती.
आ तरफ मथुरानगरीमां चमरेन्द्रकृत घोर मरकीनो उपद्रव चाली रह्यो हतो; एवामां शुं बन्युं?–
आकाशमां गमन करनारा अने सूर्य समान तेजस्वी एवा चारण ऋद्धिधारी सात ऋषि–मुनिवरो
विहार करता करता मथुरापुरीमां पधार्या. श्री मनु, सुरमन्यु, निचय, सर्वसुंदर, जयवान,
विनयलाल अने संजयमित्र–ए नामना सातेय मुनिवरो महाचारित्रना धारक हता, अने
तेओ सगा भाई हता. श्री नंदन राजा अने धरणी–सुंदरी राणीना तेओ पुत्र हता.
प्रीतंकरस्वामीनुं केवळज्ञान देखीने ते सातेय पुत्रो पिता साथे ज वैराग्य पाम्या हता; अने
मात्र एक महिनाना तुंबरु नामना पुत्रने राज्य आपीने पिता तथा सातेय पुत्रो
प्रीतंकरस्वामी पासे दीक्षा लईने मुनि थया हता. पिता श्रीनंदन तो केवळी थया, अने आ
सातेय पुत्रो चारणऋद्धि वगेरे अनेक ऋद्धिओना धारक श्रुतकेवळी थया, –केवळी प्रभुना
नंदन थया. ए गगनविहारी सप्तर्षि श्रुतकेवळी भगवंतो पृथ्वीने पावन करता करता
मथुरापुरीमां पधार्या, अने चातुर्मास माटे मथुराना वनमां एक वटवृक्ष नीचे बिराज्या.
मथुरापुरीमां आ सप्तर्षि भगवंतोना पुनित पगलां थतां ज तेमना तपना प्रभावथी, चमरेन्द्रे
फेलावेलो मरकीनो घोर उपसर्ग एकदम दूर थई गयो अने आखी मथुरानगरी सुखरूप थई
गई. जेम सूर्यनुं आगमन थतां अंधकार भागे तेम सप्तर्षि मुनिवरोनुं आगमन थतां ज
तेमना प्रतापथी मरकी रोगनो घोर उपद्रव दूर थई गयो, अने आखी नगरीमां शांति थई
गई, फळ–फूल खीली गया, वृक्षो अने वेलडीओ प्रफुल्लित थया, वगर वाव्ये धान्य ऊगवा
मांडयां; समस्त रोगरहित मथुरापुरी खूब ज सुशोभित बनी गई, अने नगरजनोए
महाआनंदपूर्वक ए सात मुनिवरोनां दर्शन–पूजन कर्यां.