छे एवा ते शेठ वारंवार पोतानी निंदा करतां अने मुनिवरोनी प्रशंसा करतां, रथ–हाथी–पायदळ तथा घोडेसवार
वगेरेनी मोटी सेना सहित योगीश्वरोना पूजन माटे शीघ्रताथी मथुरा तरफ चाल्या. महाविभूति सहित अने
शुभध्यानमां तत्पर एवा अर्हदत्त शेठ कारतक सुद सातमे मुनिवरोना चरणोमां आवी पहोंच्या. ते धर्मात्माए
विधिपूर्वक ते मुनिवरोने वंदना करीने अति भक्तिपूर्वक पूजन कर्युं, अने मथुरानगरीमां अनेक प्रकारनी महान शोभा
करावी. आखी मथुरानगरी स्वर्गसमान शोभवा लागी.
कर्युं. मुनिवरोए कह्युंः “आ संसार असार छे, एक वीतरागता ज सार छे. जिनदेवनो कहेलो वीतरागमार्ग ज
जगतना जीवोने शरणरूप छे. जिनधर्मअनुसार तेनी आराधना करो.”
जीवोने साता थई, अनेक प्रकारनी समृद्धि थई अने धर्मनी वृद्धि थई, माटे हे प्रभो! कृपा करीने थोडा दिवस आप
अहीं ज बिराजो.
धारोे छे, जिनआज्ञा पाळे छे, ने महामुनिओ केवळज्ञान पामीने मोक्ष जाय छे. वीसमा तीर्थंकर मुनिसुव्रतनाथ तो मोक्ष
पधार्या, हवे आ भरतक्षेत्रमां नमिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ अने वर्द्धमान ए चार तीर्थंकरो थशे. हे भव्य!
जिनशासनना प्रतापे मथुरानो उपद्रव हवे दूर थयो छे. हवे मथुराना समस्त लोको धर्ममां तत्पर थजो, दया पाळजो,
साधर्मीओनुं वात्सल्य करजो, जिनशासननी प्रभावना करजो...घरेघरे जिनबिंब स्थापजो, जिनपूजन तथा अभिषेकनी
प्रवृत्ति करजो, तेथी सर्वत्र शांति थशे. जे जिनधर्मनुं आराधन नहि करे तेने ज आपदा आवशे, परंतु जेओ जैनधर्मनुं
आराधन करशे तेनाथी तो आपदा एवी भागशे के जेवी गरूडने देखीने नागणी भागे. माटे जिनधर्मनी आराधनामां
सर्व प्रकारे तत्पर रहेजो..
मुनिओने पारणुं कराव्युं.
उपवन फळ–फूलवडे शोभी उठयां, सरोवरमां कमळो खील्यांः अने भव्यजीवोनां हृदयकमळ प्रफुल्लित
थईने धर्मनी आराधनामां तत्पर बन्या. आ रीते सप्तर्षि मुनि भगवंतोना प्रतापे मथुरानगरीनो
उपद्रव दूर थई गयो, अने महान धर्मप्रभावना थई.
करीने परमपदने पामशे.