Atmadharma magazine - Ank 180
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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आसोः २४८४ः ७ः
(लेखांक बीजो)
(श्री पंचास्तिकाय गाः १०३ उपरनां प्रवचनो)
दुःखथी छूटीने परमानंद पामवानो उपाय
आत्मार्थी जीव केवो होय, तेनी आत्मलगनी केवी होय,
अने भगवानना प्रवचनमां कहेला पांच अस्तिकायोने जाणीने
ते पोताना आत्मस्वरूपनो केवो निर्णय करे, तेनुं विस्तृत सुंदर
विवेचन आ लेखना पहेला भागमां (गतांकमां) आवी गयुं
छे; लेखनो बाकीनो भाग आ अंकमां प्रगट थाय छे. जेमणे
पहेलो लेख न वांच्यो होय तेमणे प्रथम ते लेख वांच्या पछी
आ लेख वांचवानी सूचना करवामां आवे छे.
जेओ वन–जंगलमां वसनारा महान संत छे, जेओ
विदेहक्षेत्रे जईने सीमंधर परमात्मानी वाणी सांभळी आव्या
छे, जेमना चारित्रना पावर फाटी गया छे अने जेओ चैतन्यना
आनंदना झूलणे झूली रह्या छे, एवा भगवान कुंदकुंदाचार्यदेवनुं
आ कथन छे; जे जीव आत्मार्थी थईने समजशे ते दुःखथी
परिमुक्त थईने परम आनंदने पामशे.
सर्वज्ञ भगवाने कहेला पंचास्तिकायने ‘अर्थतः अर्थीपणे’ जाणवानुं कह्युं तेमां आचार्यदेवे श्रोतानी खास
पात्रता बतावी छे. पोतानुं आत्महित साधवा माटे श्रोताने अंतरमां घणो उत्साह अने धगश छे. एक आत्मार्थ
साधवा सिवाय बीजो कोई डखो (शल्य) तेना हृदयमां नथी. एवा आत्मार्थी जीवने ज्ञानी संतो पासेथी भेदज्ञाननो
उपाय मळतां ज महान उपकारबुद्धि थाय छे के हे नाथ! अनंतदुःखमांथी आपे अमने बहार काढया, भवसमुद्रमां
डुबता अमने आपे उगार्या; संसारमां जेनो कोई बदलो नथी एवो परम उपकार आपे अमारा उपर कर्यो.
जेम क्षुधातुर के तृषातुर जीव दीनपणे आहार पाणी