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ते पोताना आत्मस्वरूपनो केवो निर्णय करे, तेनुं विस्तृत सुंदर
विवेचन आ लेखना पहेला भागमां (गतांकमां) आवी गयुं
छे; लेखनो बाकीनो भाग आ अंकमां प्रगट थाय छे. जेमणे
पहेलो लेख न वांच्यो होय तेमणे प्रथम ते लेख वांच्या पछी
छे, जेमना चारित्रना पावर फाटी गया छे अने जेओ चैतन्यना
आनंदना झूलणे झूली रह्या छे, एवा भगवान कुंदकुंदाचार्यदेवनुं
आ कथन छे; जे जीव आत्मार्थी थईने समजशे ते दुःखथी
साधवा सिवाय बीजो कोई डखो (शल्य) तेना हृदयमां नथी. एवा आत्मार्थी जीवने ज्ञानी संतो पासेथी भेदज्ञाननो
उपाय मळतां ज महान उपकारबुद्धि थाय छे के हे नाथ! अनंतदुःखमांथी आपे अमने बहार काढया, भवसमुद्रमां
डुबता अमने आपे उगार्या; संसारमां जेनो कोई बदलो नथी एवो परम उपकार आपे अमारा उपर कर्यो.