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नाथ! जीवने शांतिनो उपाय बतावो.
एम निर्णय कर के–जगतना पदार्थोमां शुद्ध ज्ञानानंदस्वरूप आत्मा ते ज हुं छुं. एकला श्रवणथी के विकल्पथी नहि पण
अंतर्लक्षे–आत्माने स्पर्शीने अपूर्व निर्णय कर. आत्मस्वरूपनो आवो निर्णय ते धर्मनी नक्कर भूमिका छे.
छोडे छे. जेणे पोताना शुद्ध स्वभावनो निश्चय कर्यो छे एवो धर्मी जाणे छे के मारामां जे रागद्वेषादि विकार देखाय छे ते
मारा स्वभावभूत नथी पण मारामां आरोपायेला छे. जे क्षणे राग–द्वेष वर्ते ते क्षणे ज विवेकज्योतिने लीधे धर्मी जाणे
छे के मारो स्वभाव तो शुद्धचैतन्यमात्र छे, आ रागद्वेष तो उपाधिरूप छे; आ रागद्वेषनी परंपरा मारा स्वभावना
आश्रये नथी थई, पण कर्मबंधना आश्रये थयेली छे, पण हवे हुं मारा स्वभावना आश्रये निर्मळपर्यायनी परंपरा
प्रगट करीने आ रागद्वेषनी परंपराने छेदी नाखुं छुं. आ प्रमाणे पोताना स्वभावनो निश्चय करीने तेने ज अनुसरनार
जीव समस्त दुःखथी परिमुक्त थाय छे.
नथी पण विभावरूप उपाधि छे. धर्मी जीव पोतामां ते उपाधिने अवलोकीने, एटले के पोतानी पर्यायमां ते
विकारीभावो छे एम जाणीने, ते ज काळे पोताना निरुपाधिक शुद्ध स्वभावनो निश्चय पण प्रगट वर्तती होवाथी ते
स्वभाव तरफ झूकतो जाय छे ने रागद्वेषनी परंपराने तोडतो जाय छे. रागद्वेषनी परंपरा तूटतां कर्मबंध पण छूटता
जाय छे; ने आ क्रमथी ते जीव मुक्ति पामे छे. परमाणुनुं द्रष्टांत आपीने आचार्यदेव समजावे छे के, स्कंधमां रहेलो
परमाणु ज्यारे जघन्य चीकासरूपे परिणमवानी सन्मुख थाय छे त्यारे स्कंध साथेना बंधनथी ते छूटो पडी जाय छे, तेम
शुद्ध स्वभाव तरफ झुकेला जीवने रागादि चीकासभाव अत्यंत क्षीण थता जता होवाथी ते पूर्व बंधनथी छूटतो जाय छे,
तेने नवुं बंधन थतुं नथी, एटले फदफदता पाणी जेवा अशांत दुःखोथी ते परिमुक्त थाय छे.
के निर्णयमां लईने, श्रद्धा–ज्ञान करीने) तेमां लीन थवुं ते मोक्षनो उपाय छे.
समाई जाय छे; बंधमार्ग, मोक्षमार्ग, हित–अहित, सुख–दुःख, जीव–अजीव, संसार–मोक्ष, धर्म–अधर्म, ए बधुं छ
द्रव्योना विस्तारमां आवी जाय छे.
जीव के एकेक परमाणु ते दरेक पोतपोताना स्वतंत्र अस्तित्वथी परिपूर्ण छे; कोईना अस्तित्वनो अंश बीजामां नथी.
पोतपोताना गुणपर्यायोस्वरूप जेटलुं अस्तित्व छे तेटली ज दरेक द्रव्यनी सीमा छे, तेटलुं ज तेनुं कार्यक्षेत्र छे, कोई पण
द्रव्य पोताना अस्तित्वनी सीमाथी बहार कांई कार्य करी शके नहीं, अने बीजाना कार्यने पोताना अस्तित्वनी सीमामां
आववा दे नहीं, आवो ज वस्तुनो स्वभाव छे, ने सर्वज्ञ भगवान अर्हंतदेवे ते प्रसिद्ध कर्यो छे.