Atmadharma magazine - Ank 181
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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कारतकः २४८प ः १३ः
कोई तीर्थंकर छे खरा? त्यारे सर्वदर्शी अपराजित भगवाने उत्तर आप्यो केः हा; अत्यारे भरतक्षेत्रना
बंगदेशनी मिथिलानगरीमां नमिनाथस्वामी अपराजिन विमानथी अवतर्या छे, अने तेओ पुण्यो दयथी
एकवीसमां तीर्थंकर थनार छे......अत्यारे तेओ वनविहारमां वर्षाऋतुनी शोभा नीहाळी रह्या छे अने
देवोद्वारा लावेली वस्तुओनो उपभोग करी रह्या छे.....एटले के हजी तेओ गृहस्थावस्थामां छे.
विदेहक्षेत्रमां श्री अपराजित तीर्थंकरना श्रीमुखेथी ज्यारे नमिनाथ तीर्थंकर संबंधी आ वात नीकळी त्यारे
उपरोक्त बे देवो पण त्यां भगवानना श्रीमुखथी आ वात सांभळीने आश्चर्य अने भक्तिपूर्वक तेओ
नमिनाथ तीर्थंकरना दर्शन करवा माटे भरतक्षेत्रमां आव्या हता.
बंने देवोए आवीने अत्यंत भक्तिपूर्वक नमिनाथ भगवानना दर्शन कर्या अने स्तुति
करी....त्यारबाद अतिप्रसन्नताथी तेओए कह्युं; हे नाथ! अमे बंने पूर्वजन्ममां धातकीखंडद्वीपमां हता,
त्यांथी तपश्चरण करीने सौधर्मस्वर्गमां देव थया छीए......देव थया बाद बीजे ज दिवसे अमे,
विदेहक्षेत्रना अपराजित तीर्थंकरना केवळ कल्याणकनी पूजा करवा आव्या.....अने त्यां भगवानना
वचनमां आपनी कथा सांभळीने अमे घणा प्रसन्न थया....अने कौतुकवश पूजनीय एवा आपना दर्शन
करवा आव्या....होनहार तीर्थंकर एवा आपना साक्षात् दर्शनथी अमने महा आनंद थयो.– एम कहीने
ते देवोए फरीफरीने भगवाननी स्तुति करी.
जेमने निकट काळमां ज केवळज्ञान प्राप्त थवानुं छे एवा भगवान नमिनाथ, देवोनी कहेली वात
हृदयमां धारण करीने नगरीमां पाछा पधार्यां. त्यां तेओ विदेहक्षेत्रना अपराजित तीर्थंकरनी वात,
तथा तेमनी साथेनो पोतानो पूर्वभवनो संबंध, तेनुं स्मरण करीने वारंवार संसारथी
विरक्तभावना चिंतववा लाग्याः अहा! पूर्व भवे अपराजित तीर्थंकर अने हुं– अमे बंने
अपराजित विमानमां साथे हता......
आ जीवे पोताने पोताना ज द्वारा बंधनवडे बराबर जकडीने
अनादिकाळथी शरीररूपी जेलखानामां पूरी राख्यो छे....अने जेम पींजरामां पुरायेलुं पापी पक्षी दुःखी
थाय छे. अथवा गजस्तंभ साथे बंधायेलो हाथी दुःखी थाय छे, तेम आ आत्मा निरंतर दुःखी थाय
छे...संसारभ्रमणमां जो के ते अनेक प्रकारनां दुःखो भोगवे छे तोपण ते दुःखोमां राग करे छे. विष्टाना
कीडानी माफक ईंद्रियविषयोमां आसकत रहेतो थको अपवित्र पदार्थोमां तृष्णा करे छे. जो के आ प्राणी
मृत्युथी तो डरे छे परंतु तेनी तरफ ज दोडे छे, दुःखोथी छूटवा चाहे छे परंतु तेनो ज संचय करे छे. अरे!
महादुःखनी वात छे के आर्त्त अने रोद्रध्यानवडे उत्पन्न थयेली तीव्र तृष्णाथी जीवोनी बुद्धि विपरीत थई
गई छे, अने तेओ पापना फळथी दुःखी थता थका विसामा वगर चार गतिना भवोमां भ्रमण करी रह्या
छे. अरे, अभीष्ट अर्थनो घात करनारी आ अनादि काळथी चाली आवती मूढताने धिक्कार
हो.......वैराग्यपूर्वक नमिनाथ प्रभु विचारे छे केः अरे, आवो संसार क्षणमात्र पण ईच्छवा जेवो नथी.
आ समस्त संसार तरफनुं वलण छोडीने हवे अमे शुद्ध रत्नत्रय अंगीकार करशुं ने तेना वडे अमारी
आत्मसाधना पूरी करशुं.....
ए प्रमाणे वैराग्य थतां भगवान नमिनाथनुं चित्तभोग अने रागथी अत्यंत दूर थई
गयुं.....अने तेओ दीक्षा लेवा तत्पर थया......ते ज वखते देवोमां वीतराग एवा सारस्वत आदि
लौकान्तिक देवोए आवीने भगवाननी स्तुति–पूजापूर्वक तेमना वैराग्यनुं अनुमोदन कर्युं..... भगवाने
राज्यभार सुप्रभ नामना पुत्रने सोंपी दीधो......त्यारबाद देवोए दीक्षा कल्याणक संबंधी अभिषेक कर्यो
अने उत्तरकुरु नामनी सुंदर पालखीमां बेसीने भगवान चैत्रवन नामना उद्यानमां पधार्यां......त्यां जेठ
वद दसमना रोज (–बराबर जन्मकल्याणक दिवसे) सिद्ध भगवंतोने नमस्कार करीने नमिनाथ भगवान
स्वयं दीक्षित थया...... भगवाननी साथे साथे