कारतकः २४८पः १पः
–परम शांति दातारी–
* अध्यात्मभावना *
भगवानश्री पूज्यपाद स्वामी रचित ‘समाधिशतक’ उपर
परमपूज्य सद्गुरुदेवश्री कानजीस्वामीनां
अध्यात्मभावना भरपूर वैराग्यप्रेरक प्रवचनोनो सार
(वीर सं. २४८२ जेठ वद बीज; समाधिशतक गा. ३०)
शिष्य पूछे छे के–हे प्रभो! आवा शरणभूत आत्मानी प्राप्तिनो उपाय शुं छे? अभयपदरूप जे मारुं
परमात्मतत्त्व तेनुं शुं स्वरूप छे ने कई रीते मारे तेनो अनुभव करवो? एम पूछतां श्री पूज्यपाद
‘जिनेन्द्रबुद्धि’ देवनंदी स्वामी कहे छे के–
सर्वेंन्द्रियाणि संयम्य स्तिमितेनान्तरात्मना।
यरक्षणं पश्यतो भाति तत् परमात्मनः।। ६०।।
सर्वे इन्द्रियोने रोकीने एटले के उपयोगने अंतर्मुख करीने स्थिर थईने अंतर–आत्माद्वारा अवलोकन
करतां ते क्षणे जे अनुभवमां आवे छे ते ज परमात्मतत्त्व छे.
आ परमात्मतत्त्व अंतमुर्ख अनुभवनो ज विषय छे. बाह्य ईंद्रियोवडे ते प्रतिभासतुं नथी. अतीन्द्रिय
परमानंदमय आत्मतत्त्व छे, तेने अंर्त अवलोकनथी ज्ञानी अनुभवे छे. संकल्प–विकल्पवडे पण चैतन्यतत्त्व
अनुभवमां आवतुं नथी, आत्मामां उपयोगने स्थिर करवाथी ज ते अनुभवमां आवे छे. आ ज
परमात्मतत्त्वनी प्राप्तिनो उपाय छे. आवुं परमात्मस्वरूप ज आत्माने अभयनुं स्थान छे; एनाथी बहार तो
बधाय भयस्थानो ज छे, क्यांय शरण नथी.
जेने आत्महित करवुं छे, आत्माना आनंदनो अनुभव करवो छे तेणे बाह्य विषयोथी विमुख थईने
अंतरमां स्वभावसन्मुख थवा जेवुं छे. हजी तो जे बहारना विषयोमां सुख माने, बहारना पदार्थोनुं कर्तृत्व
माने ते बाह्य विषयोथी पाछो वळीने अंतरमां केम वळे? अंतरना चैतन्यमां ज सुख छे, बहारना विषयोमां
मारुं किंचित् सुख नथी एम निर्णय करीने उपयोगने अंतमुर्ख करीने स्थिर थतां परमात्मतत्त्वना आनंदनो
अनुभव थाय छे. चैतन्यसत्ताना अवलोकननी विद्या वगर जीवनुं हित थाय नहि. चैतन्यसत्ताना शरण वगर
निर्भयता थाय नहि.
इन्द्रियोथी पार थईने अंतमुर्ख ज्ञानवडे ज्यां परमात्त्म स्वरूपने जाण्युं त्यां भान थयुं के मारो आत्मा
ज परमात्मा छे. अंतरमां स्वसंवेदनथी जे तत्त्व जणायुं ते ज परमात्मानुं स्वरूप छे. आत्माना अनुभवद्वारा
आवा परमात्मतत्त्वने जाणवानो उद्यम करवो जोईए.
अतीन्द्रिय आत्मा तरफ झुकाव थतां, बाह्य इन्द्रियोना विषयो तरफनुं वलण छूटी जाय छे. बाह्य
विषयो तो छूटा ज छे, पण उपयोगनुं वलण तेना तरफथी खसेडीने आत्मस्वभावमां करवानुं छे. पहेलां
पोताना परिणाममां ज एम भासवुं जोईए के मारा उपयोगनो झुकाव पर तरफ जाय तेमां मारुं सुख
नथी.......अंतरमां