Atmadharma magazine - Ank 181
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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ः १६ः आत्मधर्मः १८१ः
उपयोगनो झुकाव ते ज सुख छे. आवा निर्णयपूर्वक उपयोगने अंतरमां एकाग्र करवो ते ज परम आनंदना
अनुभवनी रीत छे.
।। ३०।।
ज्ञानी जाणे छे के स्वानुभवथी जे परमात्मतत्त्वने में जाण्युं ते ज हुं छुं, हुं ज परमात्मा छुं; तेथी हुं ज
मारे उपासवा योग्य छुं, माराथी भिन्न बीजुं कोई मारे उपास्य नथी, एम हवे कहे छे.
यः परात्मा स एवाऽहं थोऽहं परमस्ततः।
अहमेव मयोपास्यो नान्यः कश्चिदितिस्थितिः।।३१।।
जे परमात्मतत्त्व छे ते ज हुं छुं अने जे हुं छुं ते ज परमात्म तत्त्व छे. तेथी हुं ज मारो उपास्य छुं,
माराथी भिन्न बीजुं कोई मारे उपास्य नथी–आवी वस्तुस्थिति छे.
अज्ञानी ‘आत्मा ज परमात्मा छे,’ एम जाणतो नथी, ने आत्माथी भिन्न बहारमां बीजाने
पोतानुं उपास्य माने छे. ज्ञानी तो जाणे छे के परमात्मशक्तिनो पिंड मारो आत्मा ज छे, परमात्मा ने हुं
जुदा नथी, तेथी मारो आत्मा ज मारो उपास्य छे, ने हुं मारो ज उपासक छुं. कया परमात्मा? पोताथी
भिन्न अरिहंत ने सिद्ध परमात्मा ते खरेखर आ आत्माना उपास्य नथी; पोते पोताना आत्माने ज
परमात्मापणे जाणीने तेनी ज अभेदपणे उपासना करे त्यारे, बीजा परमात्मानी उपासना व्यवहारे
कहेवाय; अरिहंत परमात्मा अने सिद्ध परमात्मा व्यवहारे ज आ आत्माना उपास्य छे, ने आ आत्मा
तेमनो उपासक छे. पण निश्चयथी अरिहंत अने सिद्ध जेवो मारो आत्मा ज मारे उपास्य छे,
परमात्मपणानी ताकात मारामां ज छे. तेने अभेदपणे उपासतां हुं पोते ज परमात्मा थई जईश.
माराथी भिन्न बाह्य बीजुं कोई मारे उपासवा योग्य नथी.
जुओ, आ उपासना!! भाई! तमे कोना उपासक? ज्ञानी कहे छे के अमे तो अमारा शुद्ध आत्माना ज
उपासक छीए. अमारो शुद्ध आत्मा ज अमारा परम इष्ट आराध्यदेव छे. पंच परमेष्ठी प्रभु व्यवहारे आराध्य
छे, पण निश्चयथी तेमना जेवो मारो शुद्ध आत्मा ज मारो आराध्य छे. अंतमुर्ख थईने पोते पोताना आत्मानी
उपासना करवी ते परमात्मा थवानो उपाय छे, एवी ज वस्तुनी मर्यादा छे.
(वीर सं. २४८२ः जेठ वद त्रीज)
कोनी आराधनाथी आत्माने समाधि थाय तेनी आ वात छे.
जेवा सिद्ध भगवान छे तेवुं ज परिपूर्ण मारुं स्वरूप मारामां शक्तिरूपे छे. हुं जे परमात्म पद प्राप्त
करवा मांगुं छुं ते क्यांय बहारमां नथी पण मारामां ज छे.–आवी आत्मस्वभावनी भावनाना बळे ज समाधि
थाय छे. आवा चैतन्यनी भावनानुं अवलंबन करतां इन्द्रियविषयोथी विरक्ति थईने वैराग्यनी द्रढता थाय छे.
जीव विकारथी तो छूटवा मागे छे; जेनाथी छूटवा मांगे छे ते कांई छूटवामां मदद करे? रागादि विकारथी
तो छूटवुं छे तो ते छूटवामां राग केम मदद करे? राग करतां करतां छूटकारो (मोक्षमार्ग) थशे एम जे माने छे
तेने खरेखर रागथी छूटवानी भावना नथी. पुण्य करतां करतां मोक्षना द्वार खुल्ली जशे–एम माननारने
मोक्षनी खरी भावना ज नथी, मोक्षने ते खरेखर ओळखतो पण नथी.
अहीं पूज्यपाद स्वामी कहे छे के अहो! जेने मोक्षनी भावना होय, आत्माने भवभ्रमणथी छोडाववो
होय, ते जीवो एवी भावना करो के हुं तो परमात्मस्वरूप छुं. जे परमपदने हुं साधवा मांगुं छुं ते मारामां ज छे,
मारो परमात्मस्वभाव ज मारे उपासवायोग्य छे. आवी स्वभावभावनी भावना करो ने रागनी भावना छोडो.
स्वभावभावनी भावना करीने तेमां एकत्व करतां सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ने मोक्ष थाय छे. जो रागथी लाभ
थवानो भगवाननो उपदेश होय तो ते भगवान पोते रागमां केम न रोकाणा? भगवान राग छोडीने वीतराग
केम थया? भगवान पोते राग छोडीने स्वरूपमां ठर्या ते ज एम बतावे छे के राग छोडवानो ज भगवाननो
उपदेश छे; रागथी लाभ थाय एम जे माने ते भगवानना उपदेशने मानतो नथी.
भगवाननो उपदेश तो एम छे के तारो आत्मा ज परमात्मा छे, तेनी भावना कर. तारुं परमात्मस्वरूप
ज तारे आराध्य छे; राग ते आराध्य नथी. माटे