अनुभवनी रीत छे.
अहमेव मयोपास्यो नान्यः कश्चिदितिस्थितिः।।३१।।
जुदा नथी, तेथी मारो आत्मा ज मारो उपास्य छे, ने हुं मारो ज उपासक छुं. कया परमात्मा? पोताथी
भिन्न अरिहंत ने सिद्ध परमात्मा ते खरेखर आ आत्माना उपास्य नथी; पोते पोताना आत्माने ज
परमात्मापणे जाणीने तेनी ज अभेदपणे उपासना करे त्यारे, बीजा परमात्मानी उपासना व्यवहारे
कहेवाय; अरिहंत परमात्मा अने सिद्ध परमात्मा व्यवहारे ज आ आत्माना उपास्य छे, ने आ आत्मा
तेमनो उपासक छे. पण निश्चयथी अरिहंत अने सिद्ध जेवो मारो आत्मा ज मारे उपास्य छे,
परमात्मपणानी ताकात मारामां ज छे. तेने अभेदपणे उपासतां हुं पोते ज परमात्मा थई जईश.
माराथी भिन्न बाह्य बीजुं कोई मारे उपासवा योग्य नथी.
छे, पण निश्चयथी तेमना जेवो मारो शुद्ध आत्मा ज मारो आराध्य छे. अंतमुर्ख थईने पोते पोताना आत्मानी
उपासना करवी ते परमात्मा थवानो उपाय छे, एवी ज वस्तुनी मर्यादा छे.
जेवा सिद्ध भगवान छे तेवुं ज परिपूर्ण मारुं स्वरूप मारामां शक्तिरूपे छे. हुं जे परमात्म पद प्राप्त
थाय छे. आवा चैतन्यनी भावनानुं अवलंबन करतां इन्द्रियविषयोथी विरक्ति थईने वैराग्यनी द्रढता थाय छे.
तेने खरेखर रागथी छूटवानी भावना नथी. पुण्य करतां करतां मोक्षना द्वार खुल्ली जशे–एम माननारने
मोक्षनी खरी भावना ज नथी, मोक्षने ते खरेखर ओळखतो पण नथी.
मारो परमात्मस्वभाव ज मारे उपासवायोग्य छे. आवी स्वभावभावनी भावना करो ने रागनी भावना छोडो.
स्वभावभावनी भावना करीने तेमां एकत्व करतां सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ने मोक्ष थाय छे. जो रागथी लाभ
थवानो भगवाननो उपदेश होय तो ते भगवान पोते रागमां केम न रोकाणा? भगवान राग छोडीने वीतराग
केम थया? भगवान पोते राग छोडीने स्वरूपमां ठर्या ते ज एम बतावे छे के राग छोडवानो ज भगवाननो
उपदेश छे; रागथी लाभ थाय एम जे माने ते भगवानना उपदेशने मानतो नथी.