गमे तेटला व्रत–तप–त्याग करे पण तेने मुक्ति थती नथी; मोक्षना कारणने ते जाणतो नथी. आत्मा शुं ने
अनात्मा शुं तेना भेदज्ञान वगर धर्मनुं साधन थतुं नथी. शुद्धचिदानंद स्वभाव हुं छुं–एम ज्यां स्व तरफ ज्ञान
वळ्युं त्यां रागादिने हेय जाणीने तेनाथी पाछुं वळ्युं. जो रागने हेय न जाणे तो ज्ञान तेनी उपेक्षा करीने स्व
तरफ केम वळे? ज्ञायकमूर्ति आत्मा ज मारे उपादेय छे, एम जाणीने स्वभावनुं साधन कर्या वगर बीजो कोई
मोक्षनो उपाय नथी. चैतन्यना आनंदमां लीनता वगर अज्ञानी जे तप वगेरे करे छे ते बधोय कलेश छे.
भगवान जिनदेवनी आज्ञा जाण्या वगर ते कलेश करे तो करो, पण ते कलेशवडे कांई मुक्तिनी प्राप्ति थती नथी.
खरेखर तो जेमां कलेश छे तेने तप कहेवाय ज नहि. तप तो तेने कहेवाय के ज्यां चैतन्यनुं प्रतपन
होय.........चैतन्यना आनंदनो उग्र अनुभव होय.....ज्यां चैतन्यनी शांतिनुं वेदन नथी त्यां खरेखर तप नथी
पण ‘ताप’ छे, कलेश छे.
जाणतो नथी, देहादिने ज आत्मा माने छे, तेने तो मूळमां भूल छे. ज्यां मूळमां भूल छे त्यां जे कोई साधन करे
ते बधा व्यर्थ छे. आत्माना ज्ञानवगर ते भूल टळे नहि ने निर्वाण पामे नहि. माटे देहथी भिन्न स्वसंवेद्य
ज्ञानानंद तत्त्वने जाणवानो उपदेश छे.
मानीने, मंदकषायथी तप करे ते बधुंय कण छोडीने मात्र फोतरां कूटवा जेवुं छे; तेना तपने ज्ञानीओ
अज्ञानतप–कुतप–बालतप कहे छे. अने एवा अज्ञानतपथी कदी मुक्ति थती नथी. रागादिथी लाभ माननारने
मंद कषाय कहेवो ते पण व्यवहारथी (मात्र शुभ परिणामनी अपेक्षाए) छे, बाकी अभिप्राय अपेक्षाए तो ते
अनंता कषायमां डूबेलो छे.
छूटो क्यारे पडे? देहथी ने रागथी भिन्न, हुं तो चैतन्यस्वरूप छुं–एवुं ज्ञान करीने तेमां एकाग्रतावडे ज जीव
मुक्त थाय छे.
भोगनी ज वांछना छे; केम के रागनुं फळ तो संसारना भोगनी प्राप्ति छे. अने संसारना भोगनी वांछना ते तो
मोटुं अशुभ (–मिथ्यात्व) छे; तेना फळमां ते जीव घोर संसारमां परिभ्रमण करशे.
अनुभवतो थको धोर तपश्चरणादिमां पण जराय कलेश पामतो नथी.