Atmadharma magazine - Ank 181
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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प्राप्ति थई जशे! तेना समाधानमां आचार्यदेव कहे छे केः एमां कांई दोष नथी,
केमके एवो प्रसंग तो अमने इष्ट ज छे.....अर्थात् मिथ्यात्व अवस्था वखते
पण जीवना स्वभावनुं मंगळपणुं सिद्ध थाय ए तो अमने इष्ट ज छे. परंतु
आवुं मानवाथी पण कांई मिथ्यात्व–अविरत–प्रमाद वगेरेने मंगलपणुं सिद्ध थई
शकतुं नथी, केमके तेमनामां जीवत्व नथी अर्थात् तेओ जीवनो स्वभाव नथी;
मंगळ तो जीव ज छे, अने ते जीव केवळज्ञानादि अनंत धर्मात्मक छे. (जुओ, श्री
षटखंडागम पुस्तक १, पृष्ठ २८, ३६ वगेरे)
जुओ, आ अनादिअनंत मंगळ! आवा अनादिअनंत मंगळस्वरूप
आत्माने श्रद्धामां लेतां पर्यायमां पण सम्यग्दर्शनादि मंगळभाव प्रगटे छे,
अने केवळज्ञान थतां आत्मा पूर्ण मंगलरूप थई जाय छे.
अरिहंता मंगलं,
सिद्धा मंगलं....ए तो पर्यायथी पण मंगलरूप थई गया तेमनी वात छे, अने
आत्मानो स्वभाव त्रिकाळ मंगलरूप छे, ते त्रिकाळ मंगळना स्वीकारथी (एटले
के स्वभावनी सन्मुखताथी) सम्यग्दर्शनथी मांडीने सिद्धदशा सुधीनी मंगळ
पर्यायोनी हारमाळा शरू थई जाय छे. बेसता वर्षना मांगलिकमां मंगळनी बहु
सरस वात आवी.
समयसार गा. १७–१८मां कहे छे के जे जीव मोक्षार्थी छे तेणे पुरुषार्थपूर्वक
जीवराजाने–चैतन्यराजाने–श्रद्धाज्ञानमां लईने तेनुं ज अनुसरण करवुं....सर्व
उद्यमथी तेनुं सेवन करवुं.....ए रीते तेना सेवनथी केवळज्ञानरूपी मंगल सुप्रभात
खीली जाय छे.....साधकना आत्मामां पण सम्यग्दर्शनादि मंगल सुप्रभात खीली
गयुं छे.
अहा, तीर्थंकर थनार आत्माने के अरहंत थनार आत्माने अनादिअनंत
मंगळ कह्यो; अरे, तीर्थंकरप्रकृतिना उदयभावनेय मंगळ कह्यो, तो आत्मानी
प्राप्तिना अपूर्वभावनी शी वात!!–ए तो साक्षात् भावमंगळ छे. नित्य
मंगळरूप स्वभावना संस्कारथी पर्याय पण मंगळरूप परिणमी जाय छे. पर्याय
ज्यां अंर्तस्वभावनी सन्मुख थई त्यां तेनामां स्वभावना संस्कार पडया
एटले सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप परिणमन थयुं, ते अपूर्व मंगळ छे, ते
साचुं तीर्थ छे.
अहीं (पंचास्तिकायनी गा १७२मां) पण, आवा मंगळतीर्थनी शरूआत
करनारा जीवनी वात आवी छे......धर्मात्मा जीव निश्चय–व्यवहारनी संधिपूर्वक
सुखे करीने तीर्थनी शरूआत करे छे.
जुओ, आ बेसता वर्षनी शरूआतमां, सुखे करीने तीर्थनी शरूआत
करवानी वात आवी छे. लोकोमां बेसता वर्षे आशीर्वाद आपे छे के नवुं वर्ष
तमने सुखरूप नीवडो.....अहीं आचार्य भगवान अने ज्ञानी संतो बेसता
वर्षे अलौकिक आशीर्वाद आपे छे के तमे सुखे करीने तीर्थनी शरूआत करो.–
कई रीते? के निश्चय–व्यवहारनी संधिपूर्वक अंर्तस्वभावनी आराधनाथी.
भव्यजीवोने सुखपूर्वक मंगलतीर्थनी शरूआत करावनारा सर्वे–
भगवंतोने नमस्कार हो.