Atmadharma magazine - Ank 183
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २४८५ : आत्मधर्म : १३ :
उत्तर–पोताना अनुभवमां आवती चेतना ते स्वद्रव्यनुं लक्षण छे.
(८) प्रश्न–स्वद्रव्य शुं ने परद्रव्य शुं?
उत्तर–चेतना लक्षणवाळो पोतानो आत्मा ते एक ज आत्मानुं स्वद्रव्य छे, बाकीना बीजा जीवो के
शरीरादि समस्त पदार्थो ते आ आत्माने माटे परद्रव्य छे.
(९) प्रश्न–आत्मा कर्ता छे?
उत्तर–हा; आत्मा कर्ता छे.
(१०) प्रश्न–आत्मा शेनो कर्ता छे?
उत्तर–पोताना भावने करतो थको आत्मा खरेखर पोताना भावनो ज कर्ता छे.
(११) प्रश्न–पुद्गलनो कर्ता आत्मा छे के नहि?
उत्तर–ना; पुद्गलमय कोईपण भावोनो (शरीर–मन–वाणी–कर्म वगेरेनो) आत्मा कर्ता नथी.
(१२) प्रश्न–आत्मा पोताना भावोने ज केम करे छे?
उत्तर–कारण के ते भाव तेनो स्व–धर्म होवाथी आत्माने ते–रूपे थवानी शक्तिनो संभव छे; तेथी
स्वतंत्रपणे पोताना भावोने करतो थको आत्मा तेनो कर्ता छे.
(१३) प्रश्न–सम्यग्दर्शननो कर्ता कोण छे?
उत्तर–सम्यग्दर्शननो कर्ता जीव ज छे; केमके जीवमां ते–रूपे परिणमवानी शक्ति छे, तेथी जीव स्वतंत्रपणे
तेनो कर्ता छे.
(१४) प्रश्न–रागनो कर्ता कोण छे?
उत्तर–रागपरिणामनो कर्ता पण जीव ज छे, केमके जीवमां ते–रूपे परिणमवानी शक्तिनो संभव छे.
(१५) प्रश्न–आत्मा पुद्गलना भावोने केम करतो नथी?
उत्तर–कारण के तेओ परना धर्मो छे, आत्माना धर्मो नथी; तेथी आत्माने ते–रूपे थवानी शक्तिनो
असंभव छे; माटे आत्मा पुद्गलना कोई पण भावोने करतो नथी.
(१६) प्रश्न–शरीरनी क्रियानो कर्ता आत्मा केम नथी?
उत्तर–केमके शरीरनी क्रिया ते पुद्गलनो धर्म छे, आत्मामां ते–रूपे थवानी शक्तिनो अभाव छे, तेथी
तेनो कर्ता आत्मा नथी.
(१७) प्रश्न–आत्मा वचननो कर्ता केम नथी?
उत्तर–केमके वचन ते पुद्गलनो धर्म छे, आत्मामां वचनरूपे थवानी शक्तिनो असंभव छे, माटे तेनो
कर्ता आत्मा नथी.
(१८) प्रश्न–संतोए शेनी जाहेरात करी छे?
उत्तर–संतोए जड चेतनना भिन्न भिन्न स्वभावनी जाहेरात करी छे.
(१९) प्रश्न–आत्मा परद्रव्यना ग्रहण–त्याग करे छे के नहीं?
उत्तर–ना; आत्मा परद्रव्यना ग्रहण–त्याग विनानो छे; तेथी ज्ञानी के अज्ञानी कोई पण आत्मा
परद्रव्यना ग्रहण–त्यागनो कर्ता नथी.
(२०) प्रश्न–आ जाणवामां धर्म क्यां आव्यो?
उत्तर–स्वद्रव्य अने परद्रव्य बंनेने भिन्न भिन्न जाणीने, परद्रव्यनुं जरा पण ग्रहण के त्याग मारा
आत्मामां नथी–एम बराबर निर्णय करतां, परद्रव्योथी निरपेक्ष थईने जीव पोताना स्वद्रव्यमां प्रवृत्त थाय छे.
आ स्वद्रव्यप्रवृत्ति ते धर्म छे.
आनंदी थवुं होय तो....
हे भाई, तारे तारा आत्मानो पत्तो मेळववो होय.... तारी
अनंतशक्तिनी रिद्धिने देखवी होय.... आनंदमय बनवुं होय.... तो तारा
ज्ञानने रागथी छूटुं करीने अंर्तस्वभाव तरफ वाळ.