Atmadharma magazine - Ank 183
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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: १४ : आत्मधर्म : पोष : २४८५ :
आगमनी आज्ञा
[श्री प्रवचनसार गा. २३२ उपरना प्रवचनमांथी : : वीर सं. २४८५, मागशर सुद ५]


आ मोक्षमार्गनी वात छे. मोक्षमार्ग केम थाय? के स्वरूपमां एकाग्रताथी; एकाग्रता क्यारे थाय? के
पदार्थोना स्वरूपनो निश्चय करे त्यारे. अने ते निश्चय आगमवडे थाय छे. ए वात २३२ मी गाथामां कहे छे–
श्रामण्य ज्यां ऐकाग्रय्र ने ऐकाग्रय्र वस्तुनिश्चये,
निश्चय बने आगमवडे, आगमप्रवर्तन मुख्य छे.
आगमनो अभ्यास ते पदार्थोना निश्चयनुं कारण छे. आगम पदार्थोना स्वरूपनो केवो निश्चय करावे छे?
अर्थात् मोक्षार्थीए आगमवडे पदार्थना स्वरूपनो केवो निश्चय करवो? – ते कहे छे. स्व–परना भिन्न भिन्न
स्वरूपनो निश्चय करीने स्व तरफ वळवानी आगमनी आज्ञा छे. आगमवडे ‘आ स्व छे ने आ पर छे’ एम
यथार्थ निर्णय करतां पर साथे एकताबुद्धिरूप मोहनो नाश थाय छे, ने स्वतत्त्वमां एकमां ज एकता–बुद्धि थईने
तेमां एकाग्रता थाय छे. आ रीते आगम–वडे पदार्थोनो निश्चय करतां ‘एकाग्रता’ थाय छे.
सम्यग्दर्शन पण पदार्थनां स्वरूपनो निश्चय करीने एकाग्रतावडे थाय छे. हुं ज्ञायक छुं ने सर्व पदार्थो
मारा ज्ञेयो छे, ते सर्वे पदार्थो माराथी भिन्न छे,–एम स्व–परनी भिन्नतानो निश्चय करीने स्वमां एकाग्र थवुं ते
ज सम्यग्दर्शनादिनो उपाय छे, ने ते ज मोक्षमार्ग छे. आ रीते आगमवडे पदार्थना स्वरूपनो निश्चय करवो ते ज
मुख्य उपाय छे, मार्गनी बीजी कोई गति नथी. आगमना अभ्यासवडे स्व–परना भेदनो जेने निश्चय नथी ते
ठरशे शेमां? माटे आगमनो अभ्यास मुख्य कह्यो छे.
प्रश्न :–आगम तो परद्रव्य छे, तो तेमां प्रवर्तवानुं केम कह्युं?
उत्तर :–आगमनी आज्ञा शुं छे? आगमनी आज्ञा तो एवी छे के स्व–परने भिन्न जाणीने तुं स्व तरफ
वळ. पराश्रयमां अटकवानी आगमनी आज्ञा नथी, पण स्वाश्रयमां वळवानी ज आगमनी आज्ञा छे.
आगमनो आवो आशय समजीने जे जीव स्वाश्रय तरफ वळे छे तेणे ज आगमनो यथार्थ अभ्यास कर्यो छे,
अने तेने ज स्वरूपमां एकाग्रतारूप मोक्षमार्ग होय छे; बीजाने होतो नथी.
पदार्थना स्वरूपनो यथार्थ निश्चय थया वगर संदेह टळे नहि, अने संदेहमां झूलतुं वीर्य स्वरूपमां ठरी
शके नहि; निःशंक निर्णय वगर स्वरूप तरफ वीर्यनो वेग वळे नहि, अने स्वरूप तरफ वळ्‌या वगर
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र थाय नहीं.
आगम सर्व पदार्थोनो निश्चय करावे छे. केवा छे पदार्थो? त्रणे काळे उत्पाद–व्यय–ध्रौव्यस्वरूप छे.
जगतना बधाय पदार्थो त्रणे काळे निजस्वरूपथी ज उत्पाद–व्यय–ध्रौव्यरूप छे, कोई बीजो तेनी पर्यायना
उत्पाद–व्यय करतो नथी; एटले आत्मा परनुं कांई करे के परचीज आत्मानुं कांई करे–एम कदी बनतुं नथी. आ
रीते आत्माने पर साथे जरा पण कर्ताकर्मपणुं नथी; आत्मा ज्ञायकस्वभावी ज छे–आवा स्व–परना यथार्थ
ज्ञानथी आगमनुं अंतरंग गंभीर छे, आगमना ऊंडा पेटमां समस्त स्व–पर पदार्थोनुं ज्ञान रहेलुं छे. तेथी
खरेखर आगम विना पदार्थोनो निश्चय करी शकातो नथी. आगमना ज्ञानवडे स्व–परनो यथार्थ निश्चय थाय
छे. सौथी पहेलांं आवो निश्चय करवो ते मोक्षमार्गनुं मूळ छे,