आ मोक्षमार्गनी वात छे. मोक्षमार्ग केम थाय? के स्वरूपमां एकाग्रताथी; एकाग्रता क्यारे थाय? के
निश्चय बने आगमवडे, आगमप्रवर्तन मुख्य छे.
स्वरूपनो निश्चय करीने स्व तरफ वळवानी आगमनी आज्ञा छे. आगमवडे ‘आ स्व छे ने आ पर छे’ एम
यथार्थ निर्णय करतां पर साथे एकताबुद्धिरूप मोहनो नाश थाय छे, ने स्वतत्त्वमां एकमां ज एकता–बुद्धि थईने
तेमां एकाग्रता थाय छे. आ रीते आगम–वडे पदार्थोनो निश्चय करतां ‘एकाग्रता’ थाय छे.
ज सम्यग्दर्शनादिनो उपाय छे, ने ते ज मोक्षमार्ग छे. आ रीते आगमवडे पदार्थना स्वरूपनो निश्चय करवो ते ज
मुख्य उपाय छे, मार्गनी बीजी कोई गति नथी. आगमना अभ्यासवडे स्व–परना भेदनो जेने निश्चय नथी ते
ठरशे शेमां? माटे आगमनो अभ्यास मुख्य कह्यो छे.
उत्तर :–आगमनी आज्ञा शुं छे? आगमनी आज्ञा तो एवी छे के स्व–परने भिन्न जाणीने तुं स्व तरफ
आगमनो आवो आशय समजीने जे जीव स्वाश्रय तरफ वळे छे तेणे ज आगमनो यथार्थ अभ्यास कर्यो छे,
अने तेने ज स्वरूपमां एकाग्रतारूप मोक्षमार्ग होय छे; बीजाने होतो नथी.
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र थाय नहीं.
उत्पाद–व्यय करतो नथी; एटले आत्मा परनुं कांई करे के परचीज आत्मानुं कांई करे–एम कदी बनतुं नथी. आ
रीते आत्माने पर साथे जरा पण कर्ताकर्मपणुं नथी; आत्मा ज्ञायकस्वभावी ज छे–आवा स्व–परना यथार्थ
ज्ञानथी आगमनुं अंतरंग गंभीर छे, आगमना ऊंडा पेटमां समस्त स्व–पर पदार्थोनुं ज्ञान रहेलुं छे. तेथी
खरेखर आगम विना पदार्थोनो निश्चय करी शकातो नथी. आगमना ज्ञानवडे स्व–परनो यथार्थ निश्चय थाय
छे. सौथी पहेलांं आवो निश्चय करवो ते मोक्षमार्गनुं मूळ छे,