गणाय छे, तेम परवस्तुने पोतानी मानीने तेमां जे रहेवा जाय (–परवस्तुनो कर्ता थवा जाय) ते तो
अज्ञानी छे, ते स्वघरने भूलीने अनादिथी संसारमां रखडे छे. आगम तेने तेनुं निज–घर बतावीने
स्वघरमां वास्तु करावे छे ने संसारवास छोडावे छे. माटे आचार्यदेव कहे छे के आगमवडे सर्व पदार्थना
स्वरूपनो यथार्थ निश्चय करो.
एकाग्रता वगर मोक्षमार्ग होतो नथी, माटे मुमुक्षुओए सर्वज्ञभगवाने कहेला आगमनी आज्ञाअनुसार
स्व–पर समस्त पदार्थोना स्वरूपनो निश्चय करवामां निष्णात थवुं.–आम करवाथी ज स्वरूपमां
एकाग्रता थईने मोक्षमार्ग प्रगटे छे.
श्री तीर्थंकर भगवानना पंचकल्याणक चाले छे; भगवान थया पहेलांं, भगवानना जीवे केवुं
रागादि मलिन भावोथी पार चैतन्यस्वरूप छे–एवा निजस्वभावनुं भान अने शांतिनुं वेदन करीने
भगवान सर्वज्ञ परमात्मा थया. आ छेल्ला अवतारमां परमात्मा थया ते पहेलांंना त्रीजा भवे
आत्मज्ञानसहित तीर्थंकरनामकर्म ते जीवे बांध्युं हतुं; तेथी अहीं छेल्ला अवतारमां भगवान मातानी कूखे
आव्या पहेलांं छ महिनाथी देवो रत्नवृष्टि करे छे, कुमारिका देवीओ आवीने तीर्थंकरनी मातानी सेवा करे
छे, ईन्द्रो आनंदथी उत्सव करे छे. अहीं प्रतिष्ठा–महोत्सवमां आजे भगवानना गर्भकल्याणकनुं द्रश्य थयुं.
ए प्रमाणे जन्म–दीक्षा–केवळज्ञान ने मोक्ष–एम पांचे कल्याणक थशे. जुओ, आ कल्याणकनां द्रश्यो छे ते
कांई लौकिक नाटक–सीनेमा नथी पण भगवानना पूर्वजीवननुं ए द्रश्य छे. ए रीते भगवाननी
ओळखाणपूर्वक भगवाननी स्थापना थशे.
अनंतकाळथी संसारमां परिभ्रमण करता जीवे पोताना ज्ञानानंदस्वरूपनी ओळखाण कदी करी नथी, अने
पूर्णानंदने