प्रकाशनी उत्पत्ति थतां वेंत ज विकारना कर्तृत्वरूप अज्ञान–अंधकार टळी जाय छे, तेमां काळभेद नथी. आत्मा
अने आस्रवोनुं भेदज्ञान पण थाय, ने विकारनुं कर्तृत्व (–एकत्वबुद्धि) पण रहे–एम कदी बने नहि. जो
विकारनुं कर्तृत्व न छूटे तो आत्मा अने विकार वच्चे भेदज्ञान थयुं ज नथी. अने जेने खरेखर भेदज्ञान थयुं छे
ते अंतमुर्ख थईने ज्ञायकस्वभावमां ज तन्मयपणे ऊपजतो थको पोताना पवित्र ज्ञानभावने ज करे छे, पण
रागमां तन्मयपणे नहि ऊपजतो थको ते रागादिनो कर्ता थतो नथी. आ रीते ज्ञान थतांवेंत ज (ते ज क्षणे)
आत्मा रागादिना कर्तृत्वरूप अज्ञानभावने छोडी दे छे, एटले अज्ञानजनित आस्रवोथी ते निवृत्त थई जाय छे,
ने सम्यग्दर्शनादि आत्मधर्ममां ते प्रवृत्त थाय छे; आ धर्मनी विधि छे.
थाय छे. असंख्य वरसथी आ भरतक्षेत्रमां मोक्षनां द्वार बंध हता ते भगवान आदिनाथ प्रभुए खुल्लां कर्यां....
असंख्य वरसथी आ भरतक्षेत्रमां मुनिपणुं न हतुं ते पण भगवान आदिनाथे पहेलवहेलुं शरू कर्युं. भगवाननो
ज्यारे जन्म थयो त्यारे ईन्द्रोए ऐरावत हाथी उपर भगवानने मेरु उपर लई जईने धामधूमथी जन्माभिषेक
कर्यो... ने पछी भक्तिथी तांडव नृत्य कर्युं. ईन्द्रो पण धर्मात्मा छे, एकावतारी छे, भगवान तो हजी बाळक छे
छतां भगवान पासे ईन्द्रो बाळकनी जेम थनगन नाची ऊठे छे; धर्मीने एवो भक्तिनो भाव आव्या विना
रहेतो नथी. जो के ए भक्तिनी लागणी ते पण शुभ लागणी छे, ते शुभ लागणी पुण्यास्त्रवनुं कारण छे.
आत्मानो चिदानंद स्वभाव तो ते शुभ लागणीथी पण पार छे; ईन्द्रने पण आवा पोताना स्वभावनुं भान छे,
तेमज जेमनो जन्म कल्याणक ऊजवाय छे एवा भगवानने पण पोताना तेवा स्वभावनुं भान छे; परंतु
भगवान आ भवमां निजस्वरूपनी पूर्ण आराधना करीने सर्वज्ञ परमात्मा थवाना छे ने अनेक जीवोने
मोक्षमार्गमां निमित्त थवाना छे, तेथी मोक्षमार्ग प्रत्येना तीव्र उत्साहने लीधे तीर्थंकर पासे ईन्द्र पण अत्यंत
भक्तिथी बाळकनी जेम थनगन–थनगन नाची ऊठे छे. अहा नाथ! धन्य आपनो अवतार! आ अवतारमां
आप मोक्ष पामशो, तेथी आपनो आ अवतार धन्य छे. आपना निमित्ते अनेक जीवो मोक्ष मार्गनी आराधना
करीने आ भवसमुद्रथी पार थशे.–आम अनेक प्रकारे भगवाननी स्तुति करे छे, ने भगवानना जन्मकल्याणकनो
उत्सव ऊजवे छे. आ रीते भगवानना जन्मकल्याणकमां पण भगवाननी ओळखाण तेमज चैतन्यनी
आराधनानुं लक्ष तो भेगुं ने भेगुं ज छे. अरे, भगवानना जन्मकल्याणक वखते तो त्रण लोकमां प्रकाश फेलाय
छे, ते उपरथी तीर्थंकरना जन्मनी खबर पडतां, विचारदशामां ऊंडा ऊतरी जतां नरकमां पण कोई कोई जीवो
सम्यग्दर्शन पामी जाय छे.
भगवाननी स्तुति करतो हतो, त्यां नाच करतां करतां ज ‘नीलांजसा’ देवीनुं आयुष्य पूरुं थई गयुं, अने संसारनी
आवी क्षणभंगुरता देखीने भगवान वैराग्य पाम्या.... लोकांतिक देवोए आवीने भगवाननी स्तुति करी....ने
भगवान वनमां पधार्या....वनमां हमणां ज भगवाने दीक्षा लीधी, चारित्रदशा प्रगट करीने भगवान मुनि थया.