Atmadharma magazine - Ank 183
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २४८५ : आत्मधर्म : १९ :
द्रव्य–क्षेत्र ने काळ–भाव प्रतिबंध वण,
विचरवुं उदयाधीन पण वीतलोभ जो....
जुओ, आ मोक्षना कारणरूप मुनिदशा! आवी मुनिदशा थया पहेलांं भगवान आदिनाथ राजपाटमां
हता, तेमने बे राणीओ पण हती अने भरत–बाहुबली वगेरे एक सो पुत्रो पण हता, छतां ते वखते आत्मानुं
भान पण वर्ततुं हतुं. भगवान जाणता हता के अमारा आ रागने लीधे अमे संसारमां रह्या छीए, कोई परने
कारणे के परमां स्वप्नेय सुख मानीने अमे संसारमां नथी रह्या. अमे ज्यारे आ राग छेदीने चाली नीकळशुं
त्यारे अमने कोई रोकनार नथी. आ रागने लीधे अटक्या छीए, ज्यारे आ राग छेदीने चारित्रदशा अंगीकार
करशुं त्यारे ज केवळज्ञान पामशुं.–भगवाने आजे राग छेदीने चारित्रदशा अंगीकार करी.
अहा, ज्यां मोहने छेदीने आत्मा चाली नीकळ्‌यो ने मुनि थईने अंतरना अनुभवमां लीन थयो, त्यां
पाछळ संसारमां शुं थाय छे एनी एने दरकार होती नथी. ईन्द्र करतांय अधिक सिद्धिरिद्धि चरणमां आळोटती
होय तोय तेनी आकांक्षा थती नथी. केमके–
रजकण के रिद्धि वैमानिक देवनी,
सर्वे मान्यां पुद्गल एक स्वभाव जो....
‘केवळज्ञान पामशुं.... पामशुं.... पामशुं!’
भगवानने पूर्ण निःशंकता हती के मोहने छेदीने अमे मुनि थया....हवे चैतन्यमां एकाग्र थईने आ ज
भवे केवळज्ञान पामशुं....पामशुं....ने पामशुं....(हजारो श्रोताजनोए अत्यंत उत्साहथी हर्षपूर्वक आ वात झीली
हती)
अहीं भावभीनी भावनाथी गुरुदेव कहे छे के–
एह परम पद प्राप्तिनुं कर्युं ध्यान में
गजा वगर ने हाल मनोरथ रूप जो;
तो पण निश्चय राजचंद्र मनने रह्यो,
प्रभु आज्ञाए थाशुं ते ज स्वरूप जो;
लींबडी शहेरमां पंचकल्याणक वखते, भगवाननी दीक्षा बाद दीक्षावनमां पू. गुरुदेवनुं आ प्रवचन चाली
रह्युं छे; गुरुदेव अद्भुत वैराग्यपूर्वक चारित्रदशाना महिमानुं झरणुं वहेवडावी रह्या छे:
भगवाननो खरो भक्त
भगवाननी खरी भक्ति करनार जीव, भगवाने जेम कर्युं
तेम पोते करवा मांगे छे. हे भगवान सर्वज्ञदेव! आपे आपना
आत्माने ज्ञायक स्वभावी ज जाणीने परनुं ममत्व छोडी दीधुं
ने आप परमात्मा थया.... मारो आत्मा पण आपना जेवो
ज्ञायक स्वभावी ज छे–आम जे जीव भगवान जेवा पोताना
आत्माने ओळखे ते ज भगवाननो खरो भक्त छे, तेणे ज
भगवानने ओळखीने भगवाननी खरी भक्ति करी छे.