Atmadharma magazine - Ank 183
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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वर्ष सोळमुं : अंक ३ जो संपादक : रामजी माणेकचंद दोशी पोष : २४८५
मारुं
शुं?
आत्मा पोताना ज्ञान–दर्शन–
आनंदस्वरूप भावोनो ज स्वामी छे, ने ते
ज्ञान–दर्शन–आनंदना भावो ज आत्मानुं स्व
छे, ए सिवाय बीजुं कांई आत्मानुं स्व नथी
ने आत्मा तेनो स्वामी नथी.
आ जगतमां मारुं शुं छे ने कोनी साथे
मारे परमार्थसंबंध छे तेना भान वगर परने
पोतानुं मानीने, पर साथे संबंध जोडीने जीव
संसारमां रखडी रह्यो छे. आचार्यदेव कहे छे के
हे जीव! तारुं ‘स्व’ शुं छे ने वास्तविक संबंध
कोनी साथे छे ते ओळख. ज्ञान–दर्शन
–चारित्ररूप जे तारा भावो छे ते ज तारुं स्व
छे, ने तेनो ज तुं स्वामी छो,–एम जाणीने
तारा स्वभाव साथे संबंध जोड, ने पर
साथेनो संबंध तोड; एटले के स्वथी एकत्व
कर, ने परथी विभक्त था.–आवा एकत्व–
विभक्तपणामां ज तारी शोभा छे.