मूर्त ईन्द्रियो जड छे ते माराथी भिन्न छे;
ते ईन्द्रियोमां मारुं ज्ञान के सुख नथी.
ने अतीन्द्रिय ज्ञानस्वभावमां रुचि जोड;
आ ज अतीन्द्रियसुखनो उपाय छे.
भाई! एक वार आ वात लक्षमां तो ले. तुं विचार तो कर के : “मारुं सुख तो
जोडवाथी मने सुख थाय, के मारा उपयोगने बहिर्मुख करीने बाह्यविषयोमां जोडवाथी
सुख थाय? ज्यां सुख न होय त्यां उपयोगने जोडवाथी सुख केम थाय? न ज थाय.
ज्यां सुखस्वभाव छे तेमां उपयोगने जोडवाथी ते सुखनुं वेदन थाय; एटले मारा
स्वरूपमां उपयोगने जोडवाथी ज मने मारा अतीन्द्रिय आनंदनो अनुभव थाय छे.”–
आम विचारीने, बराबर निर्णय करीने, अंतर्मुख थाय; अंतर्मुख उपयोगमां तने
अतीन्द्रिय आनंदनुं वेदन थशे.