सवारमां पांच वागे पू. गुरुदेवे अति भावभीना चित्ते देवाधिदेव श्री सीमंधरनाथ वगेरे भगवंतोना दर्शन
कर्या....भक्त–मंडळे मंगलगीतपूर्वक स्वाध्यायमंदिरने प्रदक्षिणा करीने गुरुदेवना दर्शन–स्तुति कर्या. भक्तोए
मंगल यात्रानी सफळतानी भावना भावी त्यारबाद ‘“ सहज आत्मस्वरूप” एवा हस्ताक्षर अने स्मरणपूर्वक
गुरुदेवे स्वाध्यायमंदिरेथी मंगल प्रस्थान कर्युं.... “मंगलवर्द्धिनी” मोटर पासे ऊभा रहीने मांगळिक
संभळाव्युं.... पोते मनमां पंच परमेष्ठी भगवंतोनुं स्मरण कर्युं....अने छेवटे मानस्तंभ उपर बिराजमान
सीमंधर प्रभुने वंदन करीने भावभीना चित्ते विदाय लईने मोटरमां बेठा....ने मंगलनाद करती मंगलवर्द्धिनी
मंगलकार्यो माटे मंगलस्वरूप गुरुदेवने लईने सोनगढथी उपडी....
तळेटीमां पण बे जिनमंदिरो, मानस्तंभ वगेरे छे.
पंच परमेष्ठी भगवंतोकी जय....
रत्नत्रय आराधक संतोकी जय....
रत्नत्रय मार्गप्रकाशक गुरुदेवकी जय....
करता हता....गुरुदेव साथे आनंदनी तीर्थयात्रानो महिमा करतां करतां, पर्वत उपरना सात गढ ओळंगीने
सिद्धिधाममां पहोेंंच्या....वच्चे त्रण जिनमंदिरोना दर्शन करीने शिखर उपरना मोटा मंदिरे आव्या.... त्यांना
जिनमंदिरोना दर्शन करीने पार्श्वनाथ प्रभुना मंदिरमां गुरुदेवे “जंगल वसाव्युं रे जोगीए....” ए भक्ति
करावी....वैराग्यरसमां झूलतां झूलतां, नवा नवा शब्दो फेरवीने गुरुदेवे घणी भावभीनी भक्ति करावी.