Atmadharma magazine - Ank 183
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २४८५ : आत्मधर्म : ७ :
श्री जिनबिंब–प्रतिष्ठा अने मंगलतीर्थयात्रा निमित्ते
पू. गुरुदेवनुं मंगल प्रस्थान
दक्षिणना तीर्थधामोनी मंगल यात्रा निमित्ते तेमज मुंबईनगरीना पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव
निमित्ते परमप्रभावी पू. गुरुदेव श्री कानजीस्वामीए सोनगढथी पोष सुद छठ्ठना रोज मंगल प्रस्थान कर्युं.
सवारमां पांच वागे पू. गुरुदेवे अति भावभीना चित्ते देवाधिदेव श्री सीमंधरनाथ वगेरे भगवंतोना दर्शन
कर्या....भक्त–मंडळे मंगलगीतपूर्वक स्वाध्यायमंदिरने प्रदक्षिणा करीने गुरुदेवना दर्शन–स्तुति कर्या. भक्तोए
मंगल यात्रानी सफळतानी भावना भावी त्यारबाद ‘“ सहज आत्मस्वरूप” एवा हस्ताक्षर अने स्मरणपूर्वक
गुरुदेवे स्वाध्यायमंदिरेथी मंगल प्रस्थान कर्युं.... “मंगलवर्द्धिनी” मोटर पासे ऊभा रहीने मांगळिक
संभळाव्युं.... पोते मनमां पंच परमेष्ठी भगवंतोनुं स्मरण कर्युं....अने छेवटे मानस्तंभ उपर बिराजमान
सीमंधर प्रभुने वंदन करीने भावभीना चित्ते विदाय लईने मोटरमां बेठा....ने मंगलनाद करती मंगलवर्द्धिनी
मंगलकार्यो माटे मंगलस्वरूप गुरुदेवने लईने सोनगढथी उपडी....
‘मंगलवर्द्धिनी’नी पाछळ पाछळ थोडी ज वारमां पू. बेनश्रीबेननी मोटर “तीर्थगामिनी” पण
जयजयकारपूर्वक रवाना थई.
पावागढ सिद्धक्षेत्रनी यात्रा
धंंधुका, अमदावाद अने पालेज थईने पू. गुरुदेव पोष सुद आठमना रोज पावागढ पधार्या.... भक्तोए
उमंगथी स्वागत कर्युं. बपोरे प्रवचन तेमज जिनमंदिरमां भक्ति थई, रात्रे चर्चा थई हती.
अहीं पावागढ–सिद्धक्षेत्रथी रामचंद्रजीना बे पुत्रो (लव–कुश) तथा लाटदेशना राजा, अने पांच करोड
मुनिवरो सिद्धि पाम्या छे.... पर्वत उपर लगभग सात जिनमंदिरो तेमज लव–कुश मुनिवरोना चरणपादुका छे.
तळेटीमां पण बे जिनमंदिरो, मानस्तंभ वगेरे छे.
पोष सुद ९ ने रविवारना रोज सवारमां ५ाा वागे लगभग ४०० जेटला यात्रिको सहित पू. गुरुदेवे
पावागढ–सिद्धक्षेत्रनी यात्रा शरू करी....
अनंत सिद्ध भगवंतोकी जय....
पंच परमेष्ठी भगवंतोकी जय....
रत्नत्रय आराधक संतोकी जय....
रत्नत्रय मार्गप्रकाशक गुरुदेवकी जय....
–ईत्यादि जयजयकारपूर्वक गुरुदेवना पगले पगले सेंकडो यात्रिको सिद्धिधाम तरफ चालवा लाग्या....
रस्तामां पू. बेनश्रीबेन विधविध प्रकारनी भक्ति गवडावीने, गुरुदेव साथेनी अपूर्व तीर्थयात्रानो आनंद व्यक्त
करता हता....गुरुदेव साथे आनंदनी तीर्थयात्रानो महिमा करतां करतां, पर्वत उपरना सात गढ ओळंगीने
सिद्धिधाममां पहोेंंच्या....वच्चे त्रण जिनमंदिरोना दर्शन करीने शिखर उपरना मोटा मंदिरे आव्या.... त्यांना
जिनमंदिरोना दर्शन करीने पार्श्वनाथ प्रभुना मंदिरमां गुरुदेवे “जंगल वसाव्युं रे जोगीए....” ए भक्ति
करावी....वैराग्यरसमां झूलतां झूलतां, नवा नवा शब्दो फेरवीने गुरुदेवे घणी भावभीनी भक्ति करावी.