हती. यात्रामां गुरुदेवे भक्ति गवडावी हती. बपोरे प्रवचन बाद विद्यार्थीओनो कार्यक्रम हतो, रात्रे तत्त्वचर्चा
हती. अहींनो दोढ दिवसनो कार्यक्रम घणो सरस हतो; शांत वातावरणमां बधा यात्रिकोने प्रसन्नता थती हती.
बाहुबलीक्षेत्रथी ता. २१ना रोज सवारमां नीकळीने कोल्हापुर आव्या. कोल्हापुरमां त्रणचार मोटा जिनमंदिरो
छे. अहीं गुरुदेवनुं स्वागत थयुं हतुं.
यात्रानी सफळता चाही हती.
होना यह एक बडे भाग्यकी बात है. ईसमें कोई शक नहीं कि पू. स्वामीजीका यहां आना यह ईस संस्थाका
ऐतिहासिक प्रसंग गीना जायगा, हमारी संस्थाके ईतिहासमें यह प्रसंग अविस्मरणीय बना रहेगा, ईतना हि
नहीं बल्कि संस्थाके ईतिहासमें ईसका बहुत उच्च स्थान रहेगा.
दिन कैसे बीत गये यह भी हमें मालुम न पडा.....हमारी भावना थी कि संघ यहां और भी एक दिन
ठहरे....हम यात्रासंघकी सफलताकी कामना करते है.
कोल्हापुर–ता. २१ ना रोज संघ बाहुबलीथी कोल्हापुर आव्यो हतो, गुरुदेवनुं स्वागत थयुं हतुं; जेमां
अहीं तेमज कराड वगेरेमां संघना भोजनादिनी व्यवस्था शेठ लक्ष्मीचंद भाई तरफथी करवामां आवी हती.
बपोरे गुरुदेवना प्रवचनमां हजारो माणसोए लाभ लीधो हतो. प्रवचन बाद प्रोफेसर
सौभाग्य है कि कानजीस्वामी महाराज यहां पधारे है; हम सबकी ओरसे–जो यहां उपस्थित है उन सबकी
अनुमतीसे, एवं जो उपस्थित नहीं है उनकी भी अनुमती ही समझ करके कोल्हापुर नगरकी सभी जनताकी
ओरसे, मैं आपका व संघका स्वागत करता हुं. आप (पू. श्री कानजीस्वामी) सौराष्ट्र के होते हुए भी, उनकी
वाणीका प्रभाव सारे भारतमें फैल रहा है, और आत्मज्ञानमें रस लेनेवाले लोगोंके लिये उनकी वाणी बडी
उपयोगीं है. वर्तमानमें जब सारे संसारमें अशांतिका वातावरण फैल रहा है तब, संसारसे हम कैसे मुक्ति पावे
ईसकी कुंजी हमें ऐसे महान प्रभावशाळी महात्माओंसे ही मिल सकती है. मैं फिरसे आपका स्वागत करतां हूं
और आपके संघकी यात्रामें सफलता चाहता हूं.
लाभ लीधो हतो.
जिनमंदिरमां, श्री नेमिचंद्र सिद्धांतचक्रवर्तीना मंगलहस्ते प्रतिष्ठित श्री नेमिनाथ भगवाननी अति उपशांत
मुद्राधारी भव्य प्रतिमाना दर्शन करीने गुरुदेवने घणी प्रसन्नता थई हती. कहे छे के अहीं किल्लामां पहेलां १०प
जेटला जिनमंदिरो हतां, अने अहींना राजाए नेमिचंद्रस्वामी पासे दीक्षा लीधी हती.