ः ६ बः आत्मधर्मः १८४
नेमिचंद्र सिद्धांतचक्रवर्ती जेवा जिनबिंबप्रतिष्ठाना मंगलकार्यो आजे करी रह्या छे, अने अहीं ते
नेमिचंद्रस्वामीना हस्ते थयेलुं जिनेन्द्र प्रतिष्ठानुं मंगलकार्य नजरे निहाळीने गुरुदेवने घणो प्रमोद थयो
हतो.....संघना बधा यात्रिको पण पू. गुरुदेवनी प्रेरणाथी आ जिनमंदिरना दर्शन करीने आनंदित थया हता.
प्रतिमाजी लगभग ४ फूट अर्धपद्मासने छे. ने मंदिर खूब ज कळामय भव्य प्राचीन छे. आ उपरांत हूबलीमां
बीजा पण अनेक जिनमंदिरो छे.
बपोरना प्रवचन पहेलां शेठ चन्द्रकान्त कागवाडीए स्वागत प्रवचन करतां कह्युं हतुं के १८–२० सालसें
हम कानजी महाराजका नाम व कार्य सुन रहे थे, और उनके दर्शनकी हमे बहुत उत्कंठा थी; आज यहां पर उनके
साक्षात् दर्शन पाकर हम बहुत खुश हुए है.....हम महाराजजीके दर्शनसे पावन बन गये है, हमारी नगरी
पावन बन गई है, और आज हम अपनेको धन्य समझते है, हम हृदयसे पू. स्वामीजीका व संघका स्वागत
करते है.
त्यारबाद कुमारी पुष्पाबेने मराठीमां स्वागत गीत (स्वागत करुं या त्यागी वरांचे.....) गायुं हतुं.
तेमज अहींना आगेवान वेपारी शेठश्री जीवराजभाई (–जेओ श्वेतांबर समाजमां आगेवान छे) तेमणे पण
गुरुदेवनुं स्वागत प्रवचन करतां कह्युं हतुं के, हमे हर्ष है कि यहां ‘श्री महावीर जैन संघ’ की ओरसे पू.
स्वामीजी का स्वागत–सन्मान किया गया है. हमारे ‘महावीर जैन संघ’ में श्वेतांबर–स्थानकवासी व मूर्तिपूजक
सभी सामेल है, और सभी सामेल होकर के आज स्वामीजीका स्वागत कर रहे हैं. ईतने बडे संघके साथ
कानजीस्वामी महाराज यहां पधारे है और यात्रा के लिये जा रहे है ईससे हमें बहुत खुशी है. हम सबकी
औरसे मैं आपके स्वागतके साथसाथ यह भावना करता हूं कि आपकी सबकी यात्रा सफल हो.”
त्यारबाद जैन बोर्डीगमां गुरुदेवनुं प्रवचन थयुं हतुं, जेमां त्रणेक हजार माणसो हता. अहींनी जनता
हिंदी भाषा पण बराबर समजती न होवा छतां उत्सुकताथी प्रवचन सांभळती हती, ने गुरुदेवनो प्रभाव
देखीने लोको प्रसन्न थता हता.
हुबली शहेर–बेलगांवथी प्रस्थान करीने संघ ता. २२ नी रातना हुबली शहेर पहोंची गयो हतो, ने पू.
गुरुदेव ता. २३ नी सवारमां हुबली पधार्या हता. गुरुदेव पधारतां भव्य स्वागत (चंद्रप्रभु जिनमंदिर, जैन
बोर्डींगथी) थयुं हतुं.....गुरुदेव मोटरमांथी ऊतरतां वेंत बे नानकडा हाथीओए सलामी आपीने हारतोराथी
गुरुदेवनुं स्वागत कर्युं हतुं....वच्चे त्रण जिनमंदिरोना दर्शन करीने स्वागत सरघस शांतिनाथ प्रभुना जिनमंदिरे
आव्युं हतुं; अहीं शांतिनाथ प्रभुना सुंदर सुंदर प्राचीन त्रण फूटना खड्गासन भगवान बिराजे छे, तेमज पंच
बालब्रह्मचारी तीर्थंकरो वगेरेना पण सुंदर (नानकडा) प्रतिमाजी छे. त्यां दर्शन करीने तथा अर्ध चडावीने
गुरुदेवे मांगळिक संभळाव्युं हतुं. लोको एकबीजानी भाषा पण न समजे एवा अजाण्या देशमां पण बब्बे हाथी
सहितनुं गुरुदेवनुं भव्य स्वागत देखीने यात्रिकोने घणो हर्ष थतो हतो. जुनी हुबलीना सिद्धार्थमठमां संघनो
उतारो हतो. जुनी हुबलमां बे तथा नवी हुबलीमां चार–जिनमंदिरो छे.
संघनुं प्रस्थान आनंदपूर्वक चाली रह्युं छे. हवे संघ कानडी भाषाना प्रदेशमां प्रवेशी चूक्यो छे.–ज्यांना
लोको हिंदी भाषापण समजी शकता नथी. गुरुदेव जेवा महाप्रभावशाळी संतो साथे जात्रा करतां यात्रिको
घरबारने भूली गया छे, देशथी केटले दूर आवी गया छीए ते पण याद नथी आवतुं....ज्यां ज्यां संघनो पडाव
थाय छे त्यां त्यां जाणे के एक नवी ज नानकडी नगरी वसी जाय छे......ने जैनधर्मना प्रभावथी नगरी गाजी
ऊठे छे.....हजारो माणसोनां टोळां आश्चर्यथी संघने नीहाळे छे...आम ७०० जेटला यात्रिको सहित पू. गुरुदेव
दक्षिणना तीर्थधामोनी मंगल यात्रा अर्थे विचरी रह्या छे.
आ रीते पू. श्री कानजीस्वामीनो यात्रासंघ आनंदपूर्वक प्रस्थान करी रह्यो छे.....संतो अने साधर्मीओ
साथे रोज नवा नवा जिनेन्द्र भगवंतोने भेटतां हर्ष थाय छे......
(ता २३–२–प९ सवार सुधीनुं.)
यात्रिको साथेना पत्रव्यवहारनुं सरनामुंः–
श्री कानजीस्वामी दि. जैन तीर्थंयात्रा संघ
C/o पोस्टमास्तर साहब गामनुं नाम...........