Atmadharma magazine - Ank 184
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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महाः २४८पः ७ः
जेनाथी संसार
अटके..... ने.....
मुक्ति थाय......एवी वात
वर्द्धमानपुरीमां पू. गुरुदेवना प्रवचनमांथी
वीर सं. २४८४ वैशाख सुद पांचमःः
समयसार गा. ७२
प्रथम जीवने एम धगश जागवी
जोईए ने आत्मानी धून लागवी जोईए
के मारा आत्मानुं सम्यग्दर्शन कर्या वगर
आ जन्ममरणथी छूटकारो थाय तेम
नथी, माटे सम्यग्दर्शन करवा जेवुं छे.–
एम अंदर आत्माना सम्यग्दर्शननी
खरी झंखना जागे तो अंतरमां तेनो
मार्ग शोधे. ते जीव बहारना संयोगमां के
विकल्पोमां सुखबुद्धि करे नहि एटले
तेमां आत्माने बांधी द्ये नहिं, पण
तेनाथी छूटो ने छूटो रहीने ज्ञानानंद
स्वभाव तरफ वारंवार वळ्‌या करे. आवा
अंतरप्रयत्नथी आत्मानो अनुभव थाय
छे....ने तेनाथी ज संसार अटकीने मुक्ति
थाय छे.