Atmadharma magazine - Ank 184
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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ः ६ः आत्मधर्मः १८४
यात्रा समाचार
मुंबई नगरीमां पंचकल्याणक प्रतिष्ठामहोत्सव अति उत्साहपूर्वक उजवाया बाद माह शुद आठमना
मंगल दिने पू. गुरुदेवे ६प० जेटला यात्रिको सहित दक्षिणनां तीर्थधामोनी यात्रा निमित्ते मंगलप्रस्थान
कर्युं....मुंबईथी संघसहित गुरुदेव पुना पधार्या; पुना जतां वच्चे मुम्रामां बाहुबली प्रभुना २८ फूटना
प्रतिमाजी (के जेनी प्रतिष्ठा थवानी बाकी छे) तेनुं अवलोकन करवा संघ थोडीवार रोकायो हतो, अने त्यां
आखा संघने भातुं जमाडयुं हतुं. मुम्राथी पुना आवता त्यांना दि. जैन समाजे स्वागत कर्युं हतुं. पुनाथी
दहींगाव जतां फल्टन गामे जिनमंदिरोनां दर्शन करवा संघ रोकायो हतो अने पू. गुरुदेवनुं प्रवचन पण
थयुं हतुं. फल्टनमां छ जिनमंदिरो छे. जेमां विशाळ मनोज्ञ प्रतिमाजी (–रत्नत्रय भगवंतो वगेरे) बिराजे
छे; तेमज धरसेनाचार्यदेवना प्रतिमाजी अने ताम्रपत्र उपर कोतरेला षट्खंडागम पण छे. यात्रासंघ अहीं
आव्यो त्यारे अहीं पंचकल्याणक चालता हता. अहीं दर्शन करीने संघ दहींगावमां आवी पहोंच्यो. रस्ताना
थाकथी थाकेला यात्रिकोने दहींगावमां सीमंधरादि वीस विहरमान भगवंतोना एक साथे दर्शन थतां घणो
आनंद थयो....... विदेहना वीस विहरमान भगवंतोने भारतमां एक साथे देखीने भक्तोनुं हृदय
प्रसन्नताथी नाची उठयुं....ने अहीं बे दिवस रोकाईने खूब पूजन–भक्ति कर्या....भक्तोए वीस भगवंतोनो
अभिषेक कर्यो.....पू. गुरुदेवे पण प्रमोदपूर्वक सुवर्णपात्रथी सीमंधर प्रभुनो चरणाभिषेक कर्यो......अहीं
एक विशाळ जिनमंदिरना भोंयरामां वीस विहरमान भगवंतोना मोटामोटा भाववाही प्रतिमाजी बिराजे
छे. ते उपरांत पार्श्वनाथ, आदिनाथ, महावीरनाथ वगेरे भगवंतोना पण विशाळकाय प्रतिमाजी छे; एक
वेदीमां चाजे बाजु त्रिपुटी भगवंतो शोभी रह्या छे. अहीं वीस विहरमान भगवंतोना धाममां गुरुदेव
साथे दर्शन–पूजन–भक्ति करतां यात्रिकोने घणो आनंद थयो. पू. बेनश्रीबेने पण वीस भगवंतो पासे
विशिष्ट भक्ति करी हती. दसमनी रात्रे वीसे भगवंतोनुं नाम लईने भक्ति करतां विशेष उल्लास थयो
हतो. यात्रा दरमियान आवा धाममां गुरुदेवने आहारदाननो लाभ मळतां भक्तोने घणी प्रसन्नता थई
हती. आ रीते आनंदथी दर्शन–पूजन–भक्ति करीने, ८ मोटर बसो ने ४० मोटरोनो संघ दहींगावथी
बाहुबली (कुंभोज) आव्यो हतो. बाहुबली तरफ जतां वच्चे रस्तामां कराड गामे आखो संघ जमवा
रोकायो हतो. अने त्यांथी लगभग त्रण वागे बाहुबलीक्षेत्र पहोंचता त्यांना कार्यकरो अने विधार्थीओए
भावपूर्वक गुरुदेवनुं स्वागत कर्युं हतुं; तथा गुरुदेवे मंगलप्रवचन कर्युं. प्रवचन वगेरे माटे शीतळ
सुशोभित मंडप कर्यो हतो, आ बाहुबलीक्षेत्रमां नानोशो पर्वत छे, तेना उपर जिनमंदिरमां चंद्रप्रभु,
शांतिनाथ तथा आदिनाथ भगवंतोना सुंदर खड्गासन प्रतिमा बिराजे छे. ते उपरांत महावीरप्रभुनो
मानस्तंभ छे. क्षेत्रनुं द्रश्य घणुं रमणीय छे. (दक्षिण यात्राना जे प्रसिद्ध बाहुबली छे ते तो श्रवण
बेलगोलमां छेः आ क्षेत्रनुं ‘बाहुबली’ नाम बाहुबली नामना एक मुनि उपरथी लगभग २प० वर्षथी
पडयुं छे.) अहीं बाहुबली–ब्रह्मचर्याश्रम छे–जेनी व्यवस्था घणी सुंदर छे. एक जिनमंदिरमां बाहुबली
स्वामीना ७ फूटना अति मनोहर प्रतिमाजी छे; उपरना भागमा आदिनाथप्रभुना अति उपशांतभावधारी
प्राचीन प्रतिमाजी बिराजे छे. बाजुमां समवसरण–मंदिर (महावीरप्रभुनुं) छे, तेनी रचना घणी सुंदर छे.
आ उपरांत अहीं २८ फूटना विशाळ मनोज्ञ बाहुबली प्रभुना प्रतिमाजी आवेला छे, जेनी प्रतिष्ठा हवे
थवानी छे. आ प्रतिमाजीनुं वजन १८०० मण जेटलुं छे, अने ८०, ००० रूा. तेनी किंमत छे. अत्रे सुंदर
तत्त्वचर्चा थई हती, तेमज बाहुबलीस्वामीना उपरोक्त अति भव्य प्रतिमाजी जयपुरनी खाणमांथी अहीं
(बाहुबली–आश्रम)