ः १६ः आत्मधर्मः १८४
४८धर्मात्मा समकिती के साधुने पण रोग होई शके, पण केवळी भगवानने रोग होई शके नहि.
४९सहज–सर्वज्ञस्वभावमां एकाग्रता ते सर्वज्ञ थवानो उपाय छे.
प०जे सर्वज्ञतानो साधक छे तेने रागमां साधनबुद्धि होती नथी.
प१हे जीव! मोक्ष माटे संतोनी आज्ञा छे के तारा सहज–सर्वज्ञस्वभावी आत्मा तरफ जा...... तेने
ध्येय बनावीने तेनी सन्मुख था.....
प२सहज स्वभावने ध्येय बनावतां आनंदनी धारा उल्लसे छे.
प३अतीन्द्रिय आत्मस्वभावनी रुचि जेने नथी तेने इंद्रिय विषयोनी तृष्णा होय ज छे.
प४जेने रागनी रुचि छे तेने ईंद्रियविषयोनी ज रुचि छे, केमके रागनुं फळ इंद्रियविषयो ज छे.
पपधर्मात्माने राग वखते शुद्धतानो अंश होय, परंतु रागमां तो कंई शुद्धतानो अंश नथी.
प६मोक्षमार्गी मुनिवरोने शुद्धोपयोगनी मुख्यता छे, धर्मीगृहस्थने शुभोपयोगनी मुख्यता छे.
प७गृहस्थने शुभनी मुख्यता कही तेथी एम न समजवुं के ते धर्म छे,–धर्म तो ते वखते वर्तती
शुद्धता ज छे.
प८शुद्धता पोताना सहज–ज्ञानस्वभावना अवलंबने ज थाय छे.
प९अरे जीव! तारा सहज–ज्ञानस्वभावने एकवार अपूर्व उल्लास भावे लक्षमां ले....तो बेडो पार
थई जशे....
६०स्वभावना विश्वासे स्वाधीनता छे, संयोगना विश्वासे पराधीनता छे.
६१हे जीव! वीतरागनां वचनामृत तने तारा स्वभावना परम शांतरसनुं पान करावे छे.
६२हे जीव! क्यांय न गमे तो आत्मामां ज गमाड आनंदनुं धाम आत्मा ज छे.
६३दरेक आत्मा स्वतंत्र, आनंदस्वरूप अने सहजसर्वज्ञस्वभावी छे, पोताना स्वभावना आश्रये
विकास करीने ते पूर्ण आनंद अने सर्वज्ञता प्राप्त करी शके छे.
६४तीर्थंकर भगवंतोए कहेलो ने संतोए झीलेलो मोक्षनो मार्ग त्रणेकाळे एक ज प्रकारनो छे.
६पछे.
६६सीमंधर भगवानने याद करीने गुरुदेव कहे छे के, विदेहक्षेत्रमां भगवान बिराजे छे त्यां तो आ
मार्ग धमधोकार चाली रह्यो छे.
६७गुरुदेव बाळकनी जेम कहे छे; अहो! भगवान कुंदकुंदाचार्यदेवनो अमारा उपर मोटो उपकार छे,
अमे तेमना चरणोना दास छीए.
६८हे रत्नत्रयधारक संतो! अमारा आंगणे पधारो ने पवित्ररत्नत्रयवडे अमारा जीवनने पावन
करो.
६९त्रणेकाळना तीर्थंकरो–गणधरो–सन्तोने स्मरण करीने आजना मंगल प्रसंगे नमस्कार करीए
छीए–तेओ अमारुं मंगल करो.
७०हे गुरुदेव! आजना मंगल प्रसंगे हजारो–लाखो भक्तो अत्यंत हर्षपूर्वक आपश्रीने अभिनंदे छे
अने परमभक्तिथी आपश्रीने विनवे छे के अमने मोक्षना मंगल आशीर्वाद आपो.