महाः २४८पः १७ः
मोक्षमार्गी श्रमणो शुद्धोपयोगी अने शुभोपयोगी
(प्रवचनसार गा. २४प प्रवचनमांथी)
(शुभोपयोगीने पण श्रमण कह्या छे–परंतु–शुभोपयोग ते धर्म नथी)
प्रश्नः– मोक्षमार्गी श्रमणो केवा छे?
उत्तरः– जेमणे ज्ञानानंदस्वरूप आत्मानी श्रद्धा ज्ञानपूर्वक तेमां लीनता प्रगट करी छे, एटले के
एकाग्रता प्रगट करी छे ते श्रमण छे. ते श्रमण शुद्धोपयोगी होय छे.
प्रश्नः– ते श्रमणने शुभोपयोग होय छे के नथी होतो?
उत्तरः– ते श्रमण ज्यारे शुद्धोपयोग भूमिकामां लीन रही शकतो नथी त्यारे शुभोपयोग पण तेने होय
छे.
प्रश्नः– शुद्धोपयोगी ते श्रमण छे अने शुभोपयोगी पण श्रमण छे–एम कह्युं छे, तेथी जेने जेने
शुभोपयोग होय ते बधा श्रमण छे–ए वात बराबर छे?
उत्तरः– ना; अहीं एकला शुभोपयोगनी वात नथी; जेने सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञान उपरांत घणी
स्वरूपलीनता तो प्रगटी छे एवो जीव ज्यारे शुद्धोपयोगमां स्थिर रही शकतो नथी त्यारे शुभोपयोगमां वर्ते छे,
तेने श्रमण तरीके स्वीकारवामां आव्यो छे; परंतु जेने सम्यग्दर्शन–ज्ञान प्रगटयुं नथी, ने शुभरागने ज धर्म
मानीने तेमां ज प्रवर्ते छे, तो एवा शुभोपयोगीने कांई श्रमण तरीके स्वीकारवामां आव्या नथी; शुभरागने जे
धर्म समजे छे तेने श्रमणपणुं तो अति दूर रहो, सम्यग्दर्शन पण तेने नथी, ते तो मिथ्याद्रष्टि छे.
प्रश्नः– सम्यग्दर्शन–ज्ञानपूर्वकनी चारित्रदशावाळा शुभोपयोगी श्रमणने जे शुभराग छे ते तो धर्म छे
ने?
उत्तरः– ना; शुभोपयोगी श्रमणने जे शुभराग छे ते पण आस्रव ज छे, ते धर्म नथी.
प्रश्नः– तो धर्म शुं छे?
उत्तरः– धर्म तो शुद्धआत्मपरिणति छे; जेटली वीतरागी शुद्धपरिणति छे तेटलो धर्म छे, ने तेटलो ज
मोक्षमार्ग छे.
प्रश्नः– शुद्धोपयोगी जीव केवो छे?
उत्तरः– शुद्धोपयोगी जीव निरास्रव छे, ते साक्षात् श्रमण छे, ते मोक्षमार्गमां अग्रेसर छे–प्रधान छे.
प्रश्नः– शुभोपयोगी श्रमण केवो छे?
उत्तरः–शुभोपयोगी श्रमण आस्रव सहित छे, अने तेमने मोक्षमार्गमां पाछळथी (एटले के गोणपणे)
लेवामां आव्या छे.
प्रश्नः– जेमने पाछळथी गौणपणे लेवामां आव्या छे एवा शुभोपयोगी श्रमणो केवा छे?
उत्तरः– तेओ शुद्धोपयोग भूमिकाना ‘उपकंठे’ रहेला छे, शुद्धोपयोगनी पडोशमां छे.
प्रश्नः– शुद्धोपयोगना उपकंठे रहेला–एटले शुं?
उत्तरः– ते शुभोपयोगी श्रमणने सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञान उपरांत चारित्र दशा पण प्रगटी छे,
ज्यारे शुद्धोपयोगमां एकाग्र रही शकता नथी त्यारे तेमने शुभोपयोग होय छे, परंतु ते शुभोपयोगने तेओ
धर्म नथी समजता, अल्पकाळमां ज ते शुभने छेदीने शुद्धोपयोगमां ठरशे. तेथी ते शुभोपयोगी श्रमणने
शुद्धपयोगना उपकंठे रहेला कह्या छे.
प्रश्नः– अज्ञानीने पण शुभोपयोग होय छे, तो तेने शुद्धोपयोगना उपकंठे केम न कहेवाय?
उत्तरः– केमके ते अज्ञानी तो शुभोपयोगने’ ज धर्म मानीने (के तेने धर्मनुं खरुं साधन मानीने)