Atmadharma magazine - Ank 184
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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ः १८ः आत्मधर्मः १८४
ते शुभरागमां ज डूबेलो छे, तेओ शुभथी पार एवी शुद्ध भूमिकाने जाणता ज नथी, शुभमां ज अटकेला छे. तेथी
तेमने शुद्धोपयोगना उपकंठे कहेवाता नथी. तेमने शुद्धोपयोग नजीक नथी पण दूरातिदूर छे. शुद्धोपयोगना उपकंठे तो
तेने ज कहेवाय के जेने तेनुं भान होय अने तद्न नजीकमां ते प्रगट थवानो होय. जेम नजीकमां गाम होय तो ‘आ
तेनुं पादर’ एम कहेवाय, पण ज्यां गाम ज नथी, एकलुं ऊज्जड वेरान जंगल छे–त्यां पादर कोनुं कहेवुं?
प्रश्नः– शुभोपयोग ते धर्म छे के नथी?
उत्तरः– ना; शुभोपयोग ते धर्म नथी.
प्रश्नः– जो शुभोपयोग ते धर्म नथी तो, धर्मरूपे परिणमेला श्रमणोने पण ते शुभोपयोग केम होय छे?
उत्तरः– शुभोपयोग ते पोते धर्म नथी छतां पण तेने धर्मनी साथे एकार्थसमवाय’ छे, तेथी धर्मरूपे
परिणमेला श्रमणोने पण ते शुभोपयोग होई शके छे.
प्रश्नः– ‘एकार्थसमवाय’ एटले शुं?
उत्तरः– शुभ उपयोग अने धर्म ए बंने एकपदार्थ न होवा छतां एक वस्तुमां तेओः बंने साथे रही शके छे
तेथी तेमने एकार्थसमवायपणुं छे.
प्रश्नः– जो शुभोपयोग ते पोते धर्म नथी तो शुभपयोगीओने पण श्रमण शा माटे कह्या छे?
उत्तरः– ते शुभोपयोगीओने पण धर्मनो सद्भाव होवाथी तेओ श्रमण छे. शुभने कारणे नहि पण ते
वखते साथे वर्तती शुद्धपरिणतिरूप धर्मने कारणे तेओने श्रमणपणुं छे. शुभ वखते जेने धर्मनो सद्भाव नथी ते
शुभोपयोगी होवा छतां श्रमण नथी.
प्रश्नः– शुद्धोपयोगी श्रमण अने शुभोपयोगी श्रमण ए बंने सरखां छे के नथी?
उत्तरः– ना; ए बंने सरखां–समानकोटिना नथी.
प्रश्नः– तो तेमनामां शुं फेर छे?
उत्तरः– जो के सम्यग्दर्शनादिनी अपेक्षाए तेमने समानपणुं छे तोपण जे श्रमण शुद्धोपयोगी छे ते निरास्रव
छे, अने जे श्रमण शुभोपयोगी छे तेने जराक कषाय कण वर्ततो होवाथी ते सास्रव ज छे; आथी तेमने
शुद्धोपयोगीओनी साथे भेगा लेवामां आवता नथी. पण पाछळथी–गौण तरीके–ज लेवामां आवे छे.
प्रश्नः– आ वात उपरथी शुं सिद्धांत नक्की थाय छे?
उत्तरः– आथी एवो सिद्धांत नक्की थाय छे के शुद्धोपयोग ते ज मोक्षमार्ग छे, ते ज धर्म छेः तेनी साथे
वच्चे शुभोपयोग होय ते मोक्षमार्ग नथी, ते धर्म नथी.
प्रश्नः– शुद्धोपयोगीश्रमण केवा छे?
उत्तरः– ते अतीन्द्रिय आनंदनो सीधो स्वाद लेवामां मशगुल (एकाग्र) छे.
प्रश्नः– शुभोपयोगीश्रमण केवा छे?
उत्तरः– सम्यग्दर्शन–ज्ञान उपरांत चारित्र दशा होवा छतां हजी तेमने जराक कषाय जीव वर्ते छे? तेटलुं
बंधन पण थाय छे माटे ते शुभने बंधनुं ज कारण जाणवुं जोईए, तेने मोक्षनुं कारण न मानवुं जोईए.
प्रश्नः– शुद्धोपयोगी मुनि कया गुणस्थाने होय?
उत्तरः– शुद्धोपयोगी मुनि सातमा गुणस्थाने के तेथी उपर होय.
प्रश्नः– शुभोपयोगी मुनि कया गुणस्थाने होय?
उत्तरः– शुभोपयोगी मुनिने छठ्ठुं गुणस्थान होय. परंतु ते मुनि छठ्ठे ने छठ्ठे गुणस्थाने लांबो काळ रहेता
नथी, अल्पकाळमां ते शुभने तोडीने शुद्धोपयोगमां–सातमे गुणस्थाने आवे छे. जो लांबो काळ सुधी शुभमां ज
रह्या करे ने शुद्धमां न आवे तो ते मुनिपणाथी पण भष्ट थई जाय छे. मुनिने छठ्ठुं–सातमुं गुणस्थान वारंवार
बदल्या करे छे......वारंवार निर्विकल्प थईने शुद्धोपयोगमां अतीन्द्रिय आनंदनुं साक्षात् वेदन करे छे.–आवी ज
मोक्षमार्गी श्रमणोनी दशा छे.
शुद्धोपयोगी साक्षात् मोक्षमार्गी श्रमण भगवंतोने नमस्कार हो.
रे ‘शुद्ध’ ने श्रामण्य भाख्युं, ज्ञान–दर्शन ‘शुद्ध’ ने,
छे ‘शुद्धने निर्वाण, ‘शुद्ध’ ज सिद्ध प्रणमुं तेमने.