Atmadharma magazine - Ank 184
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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ः ४ः आत्मधर्मः १८४
शुद्धात्मानुभव
ते जिनशासन
संसारभ्रमण करतां करतां
जीवने बाकी रहेलुं एक ज कार्य
बाहुबली (कारंजा) क्षेत्रमां पू. गुरुदेवनुं प्रवचन ता. २०–२–प९
पू. गुरुदेव प्रवचन आपी रह्या छे ते प्रसंगनुं दश्य
भगवान सीमंधर परमात्मा पासे महाविदेहमां श्री कुंदकुंदाचार्य गया हता, ने भगवाननी दिव्यवाणी
सांभळीने तेमणे आ समयसार शास्त्र रच्युं छे. तेनी पंदरमी गाथामां जैनशासननुं दोहन करतां कहे छे के–
अबद्धस्पृष्ट अनन्य जे अविशेष देखे आत्माने
ते द्रव्य तेमज भाव जिनशासन सकल देखे खरे.
केवा आत्माने ओळखवाथी जैनशासनने ओळख्युं कहेवाय? कर्मना बंधन वगरनो अने परना संबंध
वगरनो जे एकरूप आत्मस्वभाव, तेने ओळखवाथी जैनशासन ओळखाय छे. पर साथे निमित्त–नैमित्तिक
संबंधथी आत्माने ओळखे तो तेमां खरुं जिनशासन आवतुं नथी. जिनशासननो सार, जिनशासननुं हार्द, ए
छे के आत्माने परना संबंध वगरनो भावश्रुतज्ञानथी अनुभववो, आवा आत्मानो जे अनुभव छे. ते ज
जैनशासन छे.
भगवान कुंदकुंदाचार्यदेव फरमावे छे के अरे आत्मा! भावश्रुतने अंतरमां वाळीने तारा शुद्ध आत्मानो
अनुभव कर, ते ज सर्व जिनशासननो सार छे, ने ते ज दिव्यध्वनिनो सार छे. जिनशासनमां