Atmadharma magazine - Ank 185
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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ः २२ः आत्मधर्मः १८प
तेनो छूटकारो कोनाथी थाय? मोक्षमार्ग कहो के धर्म कहो, तेनाथी बंधन न थाय, मोक्षमार्गना फळमां बहारनो
संयोग न मळे, तेना फळमां तो असंयोगी चैतन्य स्वभाव मळे. संयोगो कांई जीवने शरणरूप नथी थता,
स्वभाव ज शरणरूप थाय छे. मरणसमये करोडो रूा. नो ढगलो करीने तेने प्रार्थना करे के हे पैसा! तमे मने
मरवा टाणे शरण आपजो–तो शुं पैसानो ढगलो एने शरण आपशे? ना; ए तो जड छे; कोई पण बहारनो
संयोग जीवने शरणरूप थतो नथी; शरणरूप तो पोतानो स्वभाव ज छे. जो संयोगद्रष्टि छोडीने अंतरना
चिदानंद स्वभाव पासे जईने तेनी सेवा (श्रद्धा–ज्ञान–रमणता) करे तो ते शरणरूप थईने जीवने अतीन्द्रिय
शांति आपे छे.
आ रीते मोक्षार्थी जीव जाणे छे के अहो! अमारो शुद्ध आत्मा ज अमने शरण छे, अमे तेनो ज आदर
करीए छीए. बहारना भावो अनंत काळ सेव्या, हवे तेनो आदर छोडीने अमे अमारा अंतर–स्वभावमां
वळीए छीए, शुद्ध आत्मामां ढळीने तेनो आदर करीए छीए, तेने ज नमीए छीए. जुओ, आ मोक्षार्थी जीवनुं
कर्तव्य! आ ज धर्मनी रीत छे, ने आ ज रीतथी मोक्षार्थी जीव मोक्ष पामे छे.
जेने आत्मानी लगनी लागी होय ने....
भवना थाक उतारवा होय....
अनादिना भवभ्रमणनो जेने थाक लाग्यो
छे ने आत्मानी लगनी लगाडीने कोई पण प्रकारे
जे आत्मानुं हित साधवा मांगे छे एवा जीवने
रुचे तेवी वात छे....गमे तेवा ऊंचा भोजन होय
पण जेने भूख न लागी होय तेने ते केम भावे?
खरेखरी भूख लागी होय तेने ते भावे. तेम
भवथी जे थाक्यो नथी ने आत्मानी भूख जेने
लागी नथी तेने तो, आत्माना आनंदनी आ
अपूर्व वात समजवामां पण रस नथी आवतो–
तेनी रुचि पण तेने नथी थती; पण जे जीव
भवदुःखथी थाकी गयो छे, ‘अरेरे! आ आत्मा
हवे भवदुःखथी छूटीने चैतन्यनी शांति क्यारे
पामे!!” एम जेने आत्मशांतिनी तीव्र भूख
लागी छे–झंखना जागी छे–ते तो आत्माना
आनंदनी वातनुं अपूर्व रुचिथी श्रवण करीने
जरूर आ वात समजी जाय छे, ने आ समजवाथी
जरूर तेना भवना थाक ऊतरी जाय छे, जरूर
तेनी भूख भांगी जाय छे ने आत्मानी अपूर्व
शांतिनो अनुभव थाय छे. भवनो जेने थाक
लाग्यो होय ने आत्माना सुखनी भूख जागी होय
ते भूख्याने माटे आ सुखडी छे; आ सुखडीथी
अनंत भवनी भूखडी भांगी जाय छे, ने अपूर्व
सुखनी प्राप्ति थाय छे.
–प्रवचनमांथी