Atmadharma magazine - Ank 185
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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ः ४ः आत्मधर्मः १८प
मुंबई–प्रतिष्ठा महोत्सव
समयनो प्रवचन–मंडप ज्यां हजारो
भाविको पू. गुरुदेवनुं प्रवचन झीली
रह्या छे.
जिनमंदिरोना दर्शन बाद मोटा मंदिरमां (भट्टारकजीना मंदिरमां) उपर भक्ति थई हती.... प्रथम पू.
गुरुदेवे “उपशमरस वरसे रे प्रभु तारा नयनमां......” ए स्तवन गवडाव्युं हतुं; त्यार बाद पू. बेनश्रीबेने “
लेजो सेवा प्रभुकी लेजो....” ए भक्ति गवडावी हती. भक्ति बाद हुबलीना २० जेटला रत्न–मणि वगेरेना
जिनबिंबोना दर्शन कर्या हता. रत्नबिंबोना दर्शनथी गुरुदेवने तेमज सर्वे यात्रिकोने आनंद थयो हतो.......अने
चोवीसे जिनेन्द्रोने सौए अर्घ चडाव्यो हतो.
आजे प्रवचननो कार्यक्रम न हतो. परंतु दर्शन अने भक्ति बाद त्यांना भट्टारकजीए प्रवचन माटे
मांगणी करतां गुरुदेवने कह्युं केः ईतने दूरसे आप जैसे ईतने बडे विद्वान हमारे यहां आये और कुछ
भी नहीं बोलेंगे? आप ईतने बडे पुरुष हमारे यहां आये हो तो कुछ प्रवचन अवश्य किजीयेगा....हम
आपकी वानी सुनना चाहते है! गुरुदेवे कह्युंः पण अहीं तो कानडी भाषा छे, अहीं हिंदी समजशे कोण?
भट्टारकजीए कह्युं; हम सुननेवाले है; हम हिंदी समझ सकेंगेः मैं भी प्रवचन सुननेको बेठुंगा......आथी
गुरुदेवे पा कलाक प्रवचन कर्युं हतुं......प्रवचन सांभळीने भट्टारकजी वगेरेए घणी प्रसन्नता व्यक्त करी
हती.
प्रवचन बाद, अहीं नानकडी पहाडी उपर जिनमंदिरमां पांच फूटना बाहुबली भगवान बिराजे छे
त्यां दर्शन करवा माटे गुरुदेव पधार्या हता....सुंदर रळियामणी झाडी वच्चेथी गुरुदेव साथे पसार थतां
भक्तोने आनंद थतो हतो. उपर जईने दर्शन करीने सौए गुरुदेव साथे अर्घ चडाव्यो हतो. ए रीते
नानकडी यात्रा बाद, पू. बेनश्रीबेनने त्यां भोजन करीने सांजे गुरुदेव कुंदापुर पहोंची गया हता.
कुंदापुरमां श्री शंकरराव गोडेए पू. गुरुदेव प्रत्ये घणो आदर बताव्यो हतो, तेमज संघनी व्यवस्थामां
उत्साहथी सहाय करी हती.
कुंदप्रभुना समाधिस्थान
कुंदाद्रि (कुंदनगीरी) नी यात्रा
(महा वद त्रीज)
माह वद त्रीजना रोज सवारमां कुंदकुंदाचार्य प्रभुना पवित्र चरणोने भेटवा माटे गुरुदेवे
कुंदकुंदपर्वतनी यात्रा शरू करी....कुंदकुंदप्रभु जे भूमिमां विचर्या ते पवित्र भूमिमां विचरतां गुरुदेवने घणी
भक्ति अने प्रमोदभाव उल्लसता हता.....कुंदकुंदप्रभुनी भूमिमां गुरुदेवनी साथे विचरतां पू.
बेनश्रीबेनने पण अति