भाविको पू. गुरुदेवनुं प्रवचन झीली
रह्या छे.
लेजो सेवा प्रभुकी लेजो....” ए भक्ति गवडावी हती. भक्ति बाद हुबलीना २० जेटला रत्न–मणि वगेरेना
जिनबिंबोना दर्शन कर्या हता. रत्नबिंबोना दर्शनथी गुरुदेवने तेमज सर्वे यात्रिकोने आनंद थयो हतो.......अने
चोवीसे जिनेन्द्रोने सौए अर्घ चडाव्यो हतो.
भी नहीं बोलेंगे? आप ईतने बडे पुरुष हमारे यहां आये हो तो कुछ प्रवचन अवश्य किजीयेगा....हम
आपकी वानी सुनना चाहते है! गुरुदेवे कह्युंः पण अहीं तो कानडी भाषा छे, अहीं हिंदी समजशे कोण?
भट्टारकजीए कह्युं; हम सुननेवाले है; हम हिंदी समझ सकेंगेः मैं भी प्रवचन सुननेको बेठुंगा......आथी
गुरुदेवे पा कलाक प्रवचन कर्युं हतुं......प्रवचन सांभळीने भट्टारकजी वगेरेए घणी प्रसन्नता व्यक्त करी
हती.
भक्तोने आनंद थतो हतो. उपर जईने दर्शन करीने सौए गुरुदेव साथे अर्घ चडाव्यो हतो. ए रीते
नानकडी यात्रा बाद, पू. बेनश्रीबेनने त्यां भोजन करीने सांजे गुरुदेव कुंदापुर पहोंची गया हता.
कुंदापुरमां श्री शंकरराव गोडेए पू. गुरुदेव प्रत्ये घणो आदर बताव्यो हतो, तेमज संघनी व्यवस्थामां
उत्साहथी सहाय करी हती.
भक्ति अने प्रमोदभाव उल्लसता हता.....कुंदकुंदप्रभुनी भूमिमां गुरुदेवनी साथे विचरतां पू.
बेनश्रीबेनने पण अति