Atmadharma magazine - Ank 185
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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फागणः २४८पः पः
ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञानुं एक द्रश्य
मुंबई शहेरमां पू. गुरुदेव पधार्या
त्यारे, पंच कल्याणक प्रतिष्ठा
महोत्सवनी शरूआत पहेलां छ
भाईओए सजोडे आजीवन ब्रह्मचर्य
प्रतिज्ञा अंगीकार करी हती. चित्रमां
मुंबई मुमुक्षु मंडळना प्रमुख शेठ श्री
मणिलालभाई वगेरे छ भाईओ
ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा अंगीकार करी रहेला
देखाय छे. आ छ भाईओ उपरांत
बीजा पण केटलाक भाईओए सजोडे
ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा अंगीकार करी हती.
शय भक्ति अने हर्ष थतो हतो.....यात्रिको पण हुमचथी कुंदगीरी आवी पहोंच्या हता.
अहीं कुंदापुरमां एक सुंदर रळियामणो पर्वत छे, तेना उपर कुंदकुंदाचार्यदेवनुं समाधिस्थान छे.
कुंदकुंदप्रभुना प्रतापे तेनुं नाम “कुंदाद्रि” (कुंदगीरी) पडयुं छे. पर्वत गीच झाडीथी छवायेलो छे.....हृदयमां
कुंदकुंदप्रभुनुं स्मरण अने भक्ति करतां करतां गुरुदेव साथे भक्तो उपर पहोंच्या...... पर्वत उपर एक
पुराणुं जिनालय छे, तेमां पार्श्वनाथ वगेरे भगवंतो बिराजे छे; तेनी सन्मुख मानस्तंभ छे; बाजुमां एक
सुंदर कुंड छे, तेना किनारे भगवान श्री कुंदकुंदाचार्यदेवना अति प्राचीन चरणपादुका कोतरेला छे.
आसपासनुं द्रश्य घणुं सुंदर ने भाववाही छे. अहीं पू. गुरुदेवने यात्रामां घणो भाव उल्लस्यो
हतो......कुंदकुंदप्रभुना पवित्र चरणोनो तेमणे भक्तिपूर्वक अभिषेक कर्यो हतो.... ने भावभीना चित्ते
भक्ति पण करावी हती.....पू. बेनश्रीबेने पण अहीं घणा रंगथी भक्ति करावी हती......गुरुदेव साथे
कुंदकुंदप्रभुना आ पावन धामनी यात्राथी भक्तोने घणो आनंद अने उत्साह आव्यो हतो....अने गुरुदेव
साथे आ महान ऐतिहासिक यात्राना कायम स्मरण माटे आ तीर्थधाममां कांईक यादगीरी बनाववा माटे
लगभग १२०००) रूा. नुं फंड थयुं हतुं, जेमां रूा. प००१) सोनगढ जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्टमांथी (पू.
बेनश्रीबेन हस्तकना खातामांथी) जाहेर करवामां आव्या हता. (फंड हजी चालु छे)
जात्रा बाद त्यां कुंदकुंदाद्रि तीर्थनी तळेटीमां ज संघभोजन थयुं हतुं....अहीं श्री शंकरराव गोडे
वगेरेए गुरुदेव प्रत्ये तेमज संघनी व्यवस्था माटे घणो प्रेम बताव्यो हतो.....हुमचना भट्टारकजी पण अहीं
आव्या हता. बपोरे शंकरराव गोडे तेमज भट्टारकजीनी खास मांगणीथी गुरुदेवे ०ाा कलाक प्रवचन कर्युं
हतुं...जेमां कुंदकुंदप्रभुनो परममहिमा अने आदरभाव प्रसिद्ध कर्यो हतो...प्रवचन बाद एक बाळके कन्नड
भाषामां स्वागतगीत गायुं हतुं. तेमज स्थानिक कार्यकरो तरफथी गुरुदेवना स्वागत अने अभिनंदन
संबंधी हुमचना भट्टारकजीए घणुं भावभीनुं वक्तव्य कर्युं हतुं. त्यारबाद गुरुदेवे तथा संघे मूळबिद्री तरफ
प्रस्थान कर्युं हतुं...रस्तामां वच्चे सुंदर घाट अने गीच झाडीओनां रमणीय द्रश्यो आवे छे. ऊंचानीचा
पर्वतो, पाणीना झरणांओ, खीणो ने झाडीओनुं शांतरमणीय वातावरण वनवासी मुनिवरोनी
शांतपरिणतिनी याद देवडावतुं हतुं. गुरुदेव सांजे मूळबिद्री पहोंची गया हता....ने संघ रात्रे पहोच्यो
हतो...बीजे दिवसे गुरुदेव साथे अहींना रत्नप्रतिमाना दर्शन करवानी धूनमां ने धूनमां सूतेला भक्तो
रात्रे स्वप्नमां पण रत्नमय जिनबिंबोने देखाता हता.