Atmadharma magazine - Ank 186
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959).

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ઃ ૧૨ઃ આત્મધર્મઃ ૧૮૬
ऐसी दयनीय स्थिति में कई दि. जैन मन्दिर मद्रास प्रांत में है
जिसकी रक्षा परमावश्यक है। अतः आप से निवेदन है कि उत्तर के धनाढय
भाईयों को इस ओर आकर्षित कर सुरक्षित करेंगे। अलावा इसके आपके
आगमन से यह यात्रास्थल बनेगा इसमें शक नहीं है। क्योंकि करीब सात
शताब्दी से इतनी बडी संख्या में दर्शन करने का उल्लेख इतिहास मैं भी
नहीं मिलता। अतः आप का यह शुभागमन हमारे लिये अहोभाग्य है। ता
१४–३–१९५६
विनीत भक्त–अप्पाण्डैराज जैन
रिटैयड पोलीस सुप्रेडेण्डेण्ट,
ट्रस्टी त्रलोक्यनाथ स्वामी मन्दिर
तिरुप्परुत्तिकुन्नम, कांचीवरम [बैगलपट्ट जिला]
।। श्री शांतिनाथाय नमः।।
सौराष्ट्र के संत आत्मार्थी सत्पुरुष श्री पूज्य कानजीस्वामी की
सेवामें सादर समर्पित
मानपत्र
श्रद्धेय स्वामीजी
मलकापूर के निवासियों का यह परम सौभाग्य है कि जिस महान
विभूति के दर्शन की प्रतिक्षा वे वर्षोंसे कर रहे थे, वह चिरकांक्षित
अभिलाषा आज आपके साक्षात्कार से सफल हुई। सरोजिनी जैसे सूर्य को,
मयूरी जैसे मेघ को तथा चकोरी जैसे चन्द्र को देखकर प्रफुल्लित होती है
उसी प्रकार यहां की जनता आपका दर्शन पाकर आनंद विभोर हो रही है।
आपकी आत्मकल्याणकारी अमृतमयी वाणी का हम लोगोने रसास्वादन
किया है जिससे हमारे अंतरंग में आकुलता की कमी होकर शांति लाभ
हुवा है।
आत्म धर्मप्रणेता
तिल मात्र सुखाभास तथा पहाड जैसे अनंत दूःखमय इस संसार की
गति का अवलोकन कर आप उस मार्ग की खोजमें निकले जिससे जन्म
जन्मांतरों से अकुलाई हुई इस आत्मा को शाश्वत शांति का मार्ग मिले।
आपने अपनी विलक्षण सूक्ष्मं द्रष्टि से ज्ञानसागर का मंथन किया जिसके
फलस्वरूप आत्मतत्त्व का नवनीत आपने प्राप्त किया। इस उच्चतम तत्त्व के
रहस्य को आपने लोककल्याण हेतु सब पर प्रगट किया तथा आत्मधर्म के
नेता बन आत्मार्थी जनों का पथ प्रदर्शन किया है। इस प्रकार आपने
अध्यात्मवादियों की श्रेणीमें आदरणीय स्थान प्राप्त किया है। विज्ञान के
चरम उत्कर्ष के इस युगमें आपने जो चमत्कार दिखाया है वह महान है,
क्योंकि वह चमत्कार किसी भौतिक पदार्थ का नहीं, किन्तु आत्मा