ઃ ૧૪ઃ આત્મધર્મઃ ૧૮૬
अभिनंदन पत्र
परमपूज्य अध्यात्मयोगी कानजीस्वामी के चरणों मे सादर समर्पित
हे वीतरागी संत,
धन्य है यह आजका शुभ दिन, हमारा बहुत बडा सौभाग्य हैं कि,
आप इस विदर्भ की भूमिके अतिशय क्षेत्र श्री शीरपूर पर पधार कर हमारे
आत्माको पवित्र बनाया।
हे गुरुदेव,
आपने अनेक पदभ्रष्ट जीवोंको सुकल्याण के मार्ग पर लाया हैं और
आपने सारे जिनशासन की महान और अपूर्व प्रभावना की है।
धन्य है आप गुरुदेव!
हे देशनालब्धी के दाता,
आपका प्रवचन सुनकर हम गद्गदीत हुये है।
गुरुदेव, हमको अब भव नहीं करना है। अब आपकी वाणी द्वारा हमें
सच्चा मोक्षमार्ग मालूम हुआ है। आपके अमोल वचन से हमारे आत्मामें
सादिअनंत सुमंगल प्रभात स्थापित हुई है। धन्य हैं आजका समय। इस
समय की स्मृति हमारे जीवन में अमर रहेगी।
हे महान सत्पुरुष
आपके सुबह के मांगलिक प्रवचन–से ही मंगलका यथार्थ अर्थ मालूम
हुवा। गुरुदेव! अब हम परद्रव्य का सुधार विधाड नहीं कर सकते, हमारे
विकारी भाव ही हमें दुःखित करते हैं। सब परद्रव्य के कर्तृत्व का हमारा
व्यर्थ अभिमान नष्ट हो चुका हैं।
हे धर्मवत्सल,
कुंदकुंदाचार्यदेव पाश्चत् १००० वर्ष के बाद अमृतचन्द्राचार्यदेवने
समयसारजी शास्त्र पर संस्कृत टीका की, और आज पूनश्च आपने १०००
वर्ष के बाद समयसारजी आदि सत्शास्त्रो का मंथन करके सुलभ वाणीसे
हमको ज्ञानामृत पिलाया।
गुरुदेव! इस महान उपकार की फेड अब हम कैसे कर सकेंगे?
आपकी वाणी इस भूतल पर अजर और अमर बने, यही हमारी
आंतरिक भावना हम प्रगट करते हैं।
ता १–४–१९५९
आपके चरणों के दास
दिगंबर जैन मुमुक्षु मंडल
रिन्द की तरफ से प्रमुख ओम्कार जैन
रिन्द [जि अकोला]