Atmadharma magazine - Ank 186
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959).

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ચૈત્રઃ ૨૪૮પઃ ૧પઃ
।। श्री वीतरागाय नमः।।
परमपूज्य संत सत्पुरुष
श्रीकानजीस्वामी की सेवामें
पूज्यवर–
आपका स्वागत करते हुवे श्री परमपूज्य देवाधिदेव श्री १००८ श्री
भगवान अंतरीक्ष पार्श्वनाथ स्वामी दिगंबरी जैन संस्थान को और इस
विभाग की जनता को अतीव हर्ष होता है।
ज्ञानधर–
आपकी अध्यात्म प्रविणता सारे संसार को ज्ञात हैं। आपने इस
व्यवहार नय प्रधान सारे विश्व को अध्यात्म मार्गमें अविचल द्रष्टि रखने का
मार्ग सुगम और सुबोध करा दिया है, आपका प्रवचन सुनकर मूढ दृष्टि भी
सम्यग्दृष्टि बनता है, एसी आप की ख्याति है, अध्यात्मदृष्टि की
जैनागमानुसार व्यक्तिविकास और मानवसंस्कृति के लिये एकमेव साधन
हैं। इसी साधन की साधना आप निश्चल दृष्टि से और अविरत कर रहे हैं।
इस लिये सारा संसार आपका उपकृत हैं। ऐसे परमोपयोगी ज्ञानकी
उपासना स्वयं करके श्री जिनश्रुतिका प्रसार करनेमें आपके प्रयत्न
सराहनीय हैं, आप जिनश्रुति के ज्ञानधर हो आपके रूपमें आज हम स्वामी
कुंदकुंदाचार्य का ज्ञान और व्यक्तित्वका अनुभव कर रहे हैं। आपका दर्शन
हमारे लिये सौभाग्य की बात हैं।
कर्मवीर–
आपका प्रभावशाली व्यक्तित्व का सारा समाज आज अनुभव कर
रहा हैं। आपने थोडी ही समयमें अनेक जिनमंदिरों को स्थान २ पर निर्माण
किया और जिनश्रुतिका सम्यक् प्रकाश कराके अनेक जिन ग्रंथो का सुबोध
संपादन अनेक भाषाओंमें किया। आपके उपदेशसे प्रभावित होकर अनेक
ज्ञानवान व्यक्तिओंने भी हजारों की संख्यामें दिगंबरी आम्नाय की उपासना
ग्रहण कर ली हैं। आपके ही प्रेरणासे तत्त्वार्थसूत्र–मोक्षशास्त्र, समयसार
आदि ग्रंथोकी अधिक सुगम और सुबोध टीकाओंके साथ सामान्यजनों को
भी उपलब्ध हुवे है। जैनागमानुसार अध्यात्म क्षेत्रमें आपका कार्य और
धारणा जागती ज्योत है। आप अध्यात्म के महान कर्मवीर हो।
कृतज्ञता–
दिगंबर जैन तीर्थ यात्रा संघ के साथ स्वामीजीने श्री अतिशय क्षेत्र
शिरपूर को दर्शनार्थ भेट दी और आम्नायों के भेदका छेद किया इस लिये
यह संस्थान और इस विभाग की जनता आपकी कृतज्ञ हैं।
मि. फाल्गुन वद ९, २४८५ आपके विनीत,
शिरपूर, ता १–४–१९५९ श्री अं पा दिगंबर जैन संस्थान–शिरपूर