Atmadharma magazine - Ank 186
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959).

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૧૬ઃ આત્મધર્મઃ ૧૮૬
।। श्रीशांतिनाथाय नमः।।
भारत की भव्य विभूतियों, प्रशान्तात्माओं, धर्ममूर्तियों माननीया
श्री भगवती चंपाबहिनजी एवं श्री शान्ताबहिनजी के
करकमलों में सादर समर्पित,
अभिनन्दन पत्र
परमादरणीय!
इस स्वर्णीम वेला में मलकापूर शहर के प्रांगण में आपश्री का
शुभागमन जन–जन के हृदय में आनंद की अद्भूत लहर को उत्पन्न कर रहा
है। सूर्योदय से जैसे कमल विकसित हो जाता है उसी प्रकार हमारा
अंतःस्थल विकसित हो रहा हैं। जिस महान विभूति के दर्शनो के पुण्य
वेला की प्रतीक्षा हम महिलाये समयाधिक से कर रही थी, इस दिव्य मूर्ति
के दर्शन आपश्री की अन्तर प्रेरणा से होनेवाले इस दक्षिण की शुभयात्रा
प्रसंग से हमे प्राप्त हुए, साथ ही अनेक भव्य बन्धु बहिनों का वात्सल्य भी
मिला, यह हमारे परम सौभाग्य का विषय हैं। अतः इस मंगलमयी
वातावरण में आपश्री को हमारे बीच पाकर हम श्रद्धाके सुमन समर्पित करते
हुए कृतकृत्य हो रही हैं।
पूज्य युगल माताओं!
इस भौतिक युग की मिथ्या जगमगाहट से अपनी वृत्ति को
आन्तरिक ज्ञायक स्वभाव के बल से पलटकर आध्यात्मिक उन्नति के
प्रकाश व प्रसार में लगाई, पूर्व संस्कारो से युक्त होने के कारण
सत्पुरुष की आत्महितकारिणि वाणी के श्रवण का योग होते ही आपका
अन्तरात्मा सत् पथ पर आरुढ होकर दिनो–दिन जिनशासन की
प्रभावना के रूप में परिणित हुवा। आपश्रीने अपने जीवन को सम्यक्
श्रद्धान ज्ञान आचरण से आभूषित कर जो आत्मिक लाभ प्राप्त किया,
उस दिव्य लाभ को प्रत्येक आत्महितार्थी भी प्राप्त होवे, एतदर्थ शुभ
भावों के उत्थान के कारण समय समय पर तीर्थयात्रासंघ के रूप में
सम्पूर्ण भारतवासियों को पूज्य स्वामीजी के आत्मदिग्दर्शक दिव्य
संदेश के श्रवण का अवसर दिया एवं स्थान–स्थान पर अनेकानेक
धार्मिक महोत्सवों को भाव सहित करवायें। सौराष्ट्र प्रांत में आज जो
दिगम्बर जैन धर्म की पताकायें फहरा रही है व व्यक्ति–व्यक्ति के हाथ में
कल्याणकारी प्रवचनों को पुस्तक रूप में पहुँचायें इत्यादि युगान्तरकारी
कर्तव्यों को आपश्रीने महान कुशलता से संचालन किया व कर रही है
तथा भविष्य में इसी प्रकार करती रहेगी। अतः आपश्री के सत्पुरुषार्थ
की हम बहिने शतवार प्रशंसा करती है।