Atmadharma magazine - Ank 186
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959).

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ચૈત્રઃ ૨૪૮પઃ ૧૭ઃ
श्राविका शिरोमणियों!
आपश्री का जीवन अलौकिक भक्ति, गहन आध्यात्मिकज्ञान,
सरलशान्तस्वभाव, सहनशीलता अपूर्व धैर्यसाहस, वस्तुस्वरूप के समझाने
की क्षमता, रोम रोम में वैराग्य एवं परमवात्सल्यतादि गुणों सें अलंकृत हैं।
आपश्री के सदूज्ञान–वैराग्यरूपी विशाल वृक्ष की शीतल छाया में कई बहिने
आत्महितार्थ अखन्ड अंसिधारावृत से अपने जीवन को भूषितकर सत् पथ
में विचरण करती हुई निवास कर रही हैं। आपश्री का आश्रय पाकर उनके
ज्ञानवैराग्यरूपी कुसुमों की ज्योति कषाय व विषयान्धर को आच्छादित
करती हुई खिल रही हैं। शील–सन्तोष–संयमादि निधियों से युक्त
श्राविकाशीरोमणियों को प्राप्त कर आज महिला समाज गौरव को प्राप्त हो
रही हैं।
धर्ममाताओं
आपश्री के गहन–ज्ञान समुद्र मे व भक्तिगंगा मे महिलायें अन्तरलीन
हो अपने जीवन को बाह्मशुभाशुभ आतापो से निवृत्तकर शान्त व सफल
बनाया। अनादिकालीन अविधा तथा स्वरूप के अनूभ्यास से परमार्थ मार्ग
को भूल शुभ भावों को ही वास्तविक पथ मानने की मिथ्याभ्रान्ति जो हमारे
अन्तरमें चली आरही थी उसका निराकरण–विनाश आपश्री के संगम से
होकर परमार्थ पथ में आज हमारा निष्कंटक गमन प्रारम्भ हुआ। अतः हे
धर्ममाताओं! हमारे बाह्माभ्यन्तर शुद्धि में जो प्रकाश मिला व मिलेगा उसके
लिये हम आपश्री की चिरऋणी रहेगी।
शीलशीरोमणियों!
अन्त में हमारे भाव पुनः अभिनंदन करने को अग्रसर होते है कि
आपश्री साक्षात् विद्यमान देवाधिदेव सीमन्धर परमात्मा की असीम कृपासे
दीर्धायु होवे एवं अहिंसा धर्म की ध्वजा सारे विश्व में फहराने हेतु योग
देकर हम मलकापूर की मुमुक्षु बहिनों को उपकृत करें।
शान्ति–शान्ति–
शान्ति
जिनशासन मंडप सत्धर्मरुचिका
दिनांक ३१–३–१९५९
मुमुक्षु बहिने मलकापूर [बुलडाणा]