की क्षमता, रोम रोम में वैराग्य एवं परमवात्सल्यतादि गुणों सें अलंकृत हैं।
आपश्री के सदूज्ञान–वैराग्यरूपी विशाल वृक्ष की शीतल छाया में कई बहिने
आत्महितार्थ अखन्ड अंसिधारावृत से अपने जीवन को भूषितकर सत् पथ
में विचरण करती हुई निवास कर रही हैं। आपश्री का आश्रय पाकर उनके
ज्ञानवैराग्यरूपी कुसुमों की ज्योति कषाय व विषयान्धर को आच्छादित
करती हुई खिल रही हैं। शील–सन्तोष–संयमादि निधियों से युक्त
श्राविकाशीरोमणियों को प्राप्त कर आज महिला समाज गौरव को प्राप्त हो
रही हैं।
बनाया। अनादिकालीन अविधा तथा स्वरूप के अनूभ्यास से परमार्थ मार्ग
को भूल शुभ भावों को ही वास्तविक पथ मानने की मिथ्याभ्रान्ति जो हमारे
अन्तरमें चली आरही थी उसका निराकरण–विनाश आपश्री के संगम से
होकर परमार्थ पथ में आज हमारा निष्कंटक गमन प्रारम्भ हुआ। अतः हे
धर्ममाताओं! हमारे बाह्माभ्यन्तर शुद्धि में जो प्रकाश मिला व मिलेगा उसके
लिये हम आपश्री की चिरऋणी रहेगी।
दीर्धायु होवे एवं अहिंसा धर्म की ध्वजा सारे विश्व में फहराने हेतु योग
देकर हम मलकापूर की मुमुक्षु बहिनों को उपकृत करें।
दिनांक ३१–३–१९५९