चैत्रः २४८पः ६अः
पारसप्रभु वगेरेना दर्शन करीने कुंथलगिरि
तरफ प्रस्थान कर्युं......गुरुदेव
उस्मानाबादमां रोकाया हता अने त्यां
प्रवचन कर्या बाद कुंथलगिरि पधार्या.
कुंथलगिरि सिद्धक्षेत्र
दूरदूरथी आ सिद्धक्षेत्रना दर्शन थतां
आनंद थाय छे.. सिद्धिधाम बहु रळियामणुं
छे... तीर्थक्षेत्रने लगभग अर्धचकरावो
लईने गुरुदेवनी मोटर आवी पहोंचतां
भावभीनुं स्वागत थयुं.... ब्रह्मचर्याश्रमना
विद्यार्थीओए संस्कृतमां स्वागत गीत
गायुं......त्यारबाद जिनेन्द्र भगवानना
दर्शन करीने, समन्तभद्र महाराज साथे
गुरुदेवनुं मिलन थयुं अने प्रसन्न वातावरण
वच्चे लगभग एक कलाक सुधी प्रेमभरी
वातचीत थई. वातचीत दरमीयान
महाराजजीए प्रमोदथी कह्यु्रं के तमे आत्मानुं
साध्युं छे; अने तमे अहीं आव्या छो तो
अमने लाभ मळवो जोईए. अहीं
कटनीवाळा पं. जगन्मोहनलालजी शास्त्री
पण आव्या हता अने गुरुदेव साथे
वातचीतथी खूब प्रसन्न थया हता.
आ कुंथलगिरि–सिद्धिधामथी
देशभूषण, कुलभूषण आदि करोडो मुनिवरो
मुक्ति पाम्या छे... पर्वत नानकडो रळियामणो
छे.....तळेटीमां पांच तथा पर्वत उपर चार
एम कुल ९ जिनमंदिरो छे.... उपरना मुख्य
मंदिरमां देशभूषण–कुलभूषण मुनिवरोना
अति भाववाही खडगासन प्रतिमा बिराजे
छे– जाणे क्षपकश्रेणी मांडीने हमणां ज
केवळज्ञान पामता होय–एवा भाव तेमना
दर्शन करतां भक्तोने जागे छे. आ मंदिरना
उपरना भागमां सीमंधर भगवान बिराजे
छे....नीचेना मंदिरमां अतिभाववाही
रत्नत्रय भगवंतो बिराजे छे.
कुंथलगिरिना रत्नत्रय भगवंतो
घणा भक्तो फा. सु. १४नी सांजे ज उपर जईने दर्शन करी आव्या हता. रात्रे जिनमंदिरमां रत्नत्रय
भगवंतो सन्मुख खूब भाववाही भक्ति थई हती. सिद्धक्षेत्रमां पू. बेनश्रीबेननी वैराग्यमय भक्ति देखीने सौने
आनंद थतो हतो.–
आज अमोलक अवसर आया......
रत्नत्रय प्रभु दर्शन पाया.........
गुरुदेव साथे यात्रा पाया........