ः ६ बः आत्मधर्मः १८६
मुनिवर सिद्धिधाम नीरख...मैं आनंद पाया रे.
हां....हां मैं आनंद पाया रे.....
इत्यादि प्रकारे पू. बेनश्रीबेन गुरुदेव साथेनी
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फागण सुद पूर्णिमा
सवारमां ६ाा वागे पू. गुरुदेव संघसहित
कुंथलगिरि सिद्धक्षेत्रनी यात्रा माटे चाल्या....आजे पू.
गुरुदेव पण चालीने यात्रा करता हता तेथी गुरुदेव साथे
यात्रामां भक्तोने विशेष आनंद आवतो हतो. दसेक
मिनिटमां पर्वत उपर पहोंची गया....घणा
भक्तिभावपूर्वक दर्शन–पूजन–अभिषेक अने भक्ति कर्या.
कुंथलगिरिपूजन तथा सिद्धपूजन बाद गुरुदेवे भक्ति
गवडावी. देशभूषण अने कुलभूषण मुनिवरोनी भक्ति
करावतां करावतां वच्चे प्रमोदथी गुरुदेवे कह्युं केः ‘देश’
एटले असंख्यप्रदेश; तेनुं ‘भूषण’ एटले शोभा; अर्थात्
असंख्य प्रदेशी पवित्र चैतन्यधाम ते ‘देशभूषण’ छे;
अने ‘कुलभूषण’ एटले अनंत गुणरूपी कुळथी शोभतो
एवो आत्मा, तेनी आराधना (श्रद्धा–ज्ञान–रमणता) ते
खरी यात्रा छे.
अहीं गुरुदेवनी भक्ति अने भावभीना उद्गारो
सांभळीने यात्रामां सौने घणो उल्लास आव्यो...
कुंथलगिरि पर्वत उपर मुनिवरो पासे पू. गुरुदेव
वंदो वंदो जी....हां हां वंदो वंदो जी.
कुंथलगिरि तीरथ,
देशभूषण मोक्ष गये....
कुलभूषण मोक्ष गये...
इत्यादि भक्ति थई हती.
यात्रा बाद नीचे उतरतां वच्चे नंदीश्वर–मंदिर आव्युं...आजे नंदीश्वर अष्टाह्निकाना छेल्ला दिवसे
सिद्धिधाममां गुरुदेव साथे नंदीश्वरमंदिरना दर्शन–यात्रा करतां बेनश्रीबेन वगेरे सौने घणो हर्ष थयो....
बपोरे गुरुदेवना प्रवचन बाद त्यां सिद्धिधामनी सन्मुख भक्ति थईः
भवि भावे कुंथलगिरि आवो सिद्धक्षेत्र जोवाने,
भवि भावे आ तीर्थधाम आवो...सुनिधाम जोवाने.....
रात्रे सुंदर तत्त्वचर्चा थई हती, तेमां अनेकविध प्रश्नो चर्चाया हता.
फागण वद एकम
पू. गुरुदेवने भाव आवतां आजे सिद्धक्षेत्रनी बीजी यात्रा थई...त्रण पूजन बाद मुनिवरोनी
उल्लासपूर्ण भक्ति थई...भक्ति बाद मुनिवरोनी चरणपादुकानो अभिषेक घणा भक्तोए कर्यो. आनंदथी यात्रा
करीने सौ गातां गातां नीचे आव्या......यात्रा बाद गुरुदेवे खास प्रवचन