Atmadharma magazine - Ank 186
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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ः ६ः आत्मधर्मः १८६
भक्तिनी तल्लीनतानी मुक्तकंठे प्रशंसा करी हती. पू. गुरुदेव अने बेनश्रीबेन पधारतां आश्रमनुं वातावरण ज
पलटी गयुं हतुं, चारे कोर आनंद उत्सव अने अध्यात्मचर्चानुं वातावरण बनी गयुं हतुं. आश्रमनुं वातावरण
सुंदर, आनंदी अने उल्लासभर्युं छे. पं. सुमतीबहेननी आगेवानीमां आश्रमनी दरेक बहेनो अने दरेक कार्यकरो
खूब ज प्रेम अने होंसथी संघ साथे भळी जईने आगतास्वागता करता हता. खरेखर सोलापुरना बे दिवसो,–
अने तेमां पण राजुलदेवी श्राविकाश्रमना बे दिवसो संघने बहु याद रहेशे.
आ रीते सोलापुरनो कार्यक्रम पूरो करीने, फागण सुद १४ नी सवारमां गुरुदेवे संघसहित कुंथलगिरि
सिद्धक्षेत्र तरफ प्रस्थान कर्युं. आश्रमवासीओए भावभीनी विदाय आपी. ब्र. सुमतीबेनने विशेष भावभीनी
विदाय आपी. ब्र. सुमतीबेनने विशेष भाव थतां तेओ कुंथलगीरीनी यात्रा माटे संघनी साथे आव्या.
धाराशिवनी जैन गुफाओ
सोलापुरथी कुंथलगिरि जतां वच्चे उस्मानाबादथी त्रण माईल पर धाराशिवनी गुफाओ छे, ते जोवा
गया हता. अहीं पर्वतमां प्राचीन गुफाओ कोतरेली छे. आ प्राचीन गुफाओ करकंडु राजाए करावेली गणाय छे,
अनेक गुफाओमां जिनबिंबो बिराजे छे...एक गुफामां पाणीनी वावडी पण छे. गुरुदेव वगेरे त्यां गुफाओमां
वहेलां पहोंची गया हता...पाछळ रहेला सेंकडो यात्रिको गुरुदेवने अने गुफाओने शोधता शोधता चारे कोर घूमी
रह्या हता...गुफावासी भगवंतोनी शोधमां आखा पर्वत उपर भक्तो छूटाछवाया फरी रह्या हता. भगवाननी
शोधमां फरीफरीने थाकेला भक्तोने गुफामां प्रवेशतां शांति थई ने जिनेन्द्र भगवंतना दर्शन करतां ज थाक उतरी
गयो.... “हर्ष पूर्वक भगवानना दर्शन करीने सौए भक्ति करी...गुफाओनुं वातावरण बहु शांत छे....कोई कोई
गुफा तो एवी शांत छे के अंदर प्रवेशतां जाणे कोई महामुनिओनी समीपमां आव्या होईए–एवी शांति लागे
छे. एक मोटी गुफामां लगभग ७ फूट विशाळ पार्श्वप्रभु बिराजे छे.
धाराशिवनी जैन गुफाओ जोईने उस्मानाबादमां
कुंथलगिरिनुं सुंदर द्रश्य