Atmadharma magazine - Ank 186
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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ः ६ कः आत्मधर्मः १८६
२४ भगवंतो वगेरे कोतरेल छे. आ मंदिरमां बेसीने गुरुदेव साथे सौए तीर्थपूजन (मुक्तागिरि सिद्धक्षेत्रनुं पूजन)
कर्युं. ३१ थी ३प मंदिरो पर्वतनी टोच उपर छे, तेमां अहींथी मोक्ष पामेला मुनिवरोनां चरणपादुका वगेरे छे. अहींनुं
द्रश्य घणुं शांत ने रळियामणुं छे. अहीं दर्शन करीने भक्ति गातां गातां सौ नीचे उतर्यां....कोई मंदिरोमां रत्नत्रय
भगवंतो बिराजे छे. ४८ तथा ४९ नंबरना मंदिरो पर्वतनी गुफामां आवेलां छे, जाणे के पर्वत पोताना हृदयमां
जिनेश्वर भगवानने स्थापीने ध्यावतो होय तेम ए गुफामां ८ फूट उन्नत प्राचीन भगवंतो बिराजे छे. ते प्रभुजी पासे
जवा माटे लांबी–ऊंडी गुफामांथी पसार थवुं पडे छे....त्यांथी पसार थती वखते संसारनुं वातावरण तद्न भूलाई
जाय छे....मात्र एक भगवाननुं ज ध्यान रहे छे.....ने थोडी ज वारमां भगवाननो साक्षात्कार थतां भक्तहृदय
प्रफुल्लित अने आनंदित थईने घडीभर त्यां ज थंभी जाय छे. जिनेन्द्रदर्शन माटे गुरुदेव साथे गुफाविहार करतां
भक्तोने आनंद थयो....ने ज्यारे गुरुदेवना प्रतापे भगवानने नीहळ्‌या त्यारे मुमुक्षु हृदयमांथी एवी भावनाना
भणकार उठया के
है जिनवर! तुज चरणकमळना
भ्रमर श्री कहान प्रतापे,
‘जिन’ पाम्यो..... ‘निज’ पामुं अहो,
मुज काज पूरा सहु थाय”
गूफाना मंदिरोमां २४ भगवंतो वगेरेनां दर्शन करतां पण आनंद थयो.....त्यारबाद बहार आवीने मंदिरना
चोकमां सौ बेठा......ने गुरुदेवे यात्रा संबंधी प्रसन्नता व्यक्त करी...पू. बेनश्रीबेने थोडीवार मुनिवरोनी भक्ति करावी.
साढे तीन क्रोड मुनि मुक्तागीरमें
जाके रागद्वेष नहीं मनमें......
ऐसे मुनि को मैं नितप्रति ध्यावुं......
ए जी देत ढोक चरणनमें......
आ प्रमाणे आनंद–उल्लासपूर्वक जात्रा–पूजा–भक्ति करीने मंगळगीत गातां गातां सौ नीचे आव्या...
मुक्तागीरी मुक्तिधामथी
मुक्ति प्राप्त संतोने नमस्कार हो....
मुक्तागीरीनी मंगलयात्रा करावनार
गुरुदेवने नमस्कार हो...........
मुक्तागीरीमां भोजनादिनी व्यवस्था अमरावतीना शेठ नथुसाब पासुशाब (–जेओ आ क्षेत्रना अध्यक्ष छे)
तेमना तरफथी करवामां आवी हती.
पर्वतनी तळेटीमां ज विशाळ धर्मशाळा छे ने तेमां विशाळ जिनालय छे. तेमां वच्चे रजत–सुवर्णना भव्य
सिंहासनमां आदिनाथ प्रभु शोभी रह्या छे....त्यां घणा उल्लासपूर्वक भक्ति थई हती...मुक्तागिरिनी यात्रा पछी
भावभीनी भक्ति करतां भक्तोने आनंद थतो हतो.
मैं तेरे ढीग आया रे....मुनिवर के ढीग आया....
मैं तेरे ढीग आया रे...सिद्धप्रभु ढीग आया....
मैं तेरे ढीग आया रे....मुक्तागिरिधाम आया.....
मैं तेरे ढीग आया रे.....गुरुवर के साथ आया.....
गुरुवर के साथ आया रे...मैं मुक्तागिरिमें आया..
इत्यादि प्रकारे अंतरभावो खोलीखोलीने पू. बेनश्रीबेन भक्ति करावता हता. घणा आनंदथी सुंदर भक्ति
थई हती; त्यारबाद प्रवचनद्वारा गुरुदेवे मुक्तागीरी धाममां मुक्तिनो मार्ग देखाडयो हतो.
प्रवचन बाद उत्साही कार्यकर भाईश्री बाबुरावजीए श्रद्धांजलि अर्पण करतां कह्युं केः आ काळमां आवा
अध्यात्मतत्त्वनुं निरूपण करनार संतने, आवां मुक्तिधाममां देखीने अमे अमारुं अहोभाग्य समजीए छीए. हुं
सोनगढ आव्यो त्यारे मने थयुं के अहीं चतुर्थकाळ वर्ते छे... चतुर्थकालमां समोसरण हतुं, में पण सोनगढमां
समोसरण देख्युं....समोसरणमें दिव्यध्वनि होती है, वहां पर भी मैंने वोही भगवान की दिव्य ध्वनिका सार गुरुदेवके
मुखसे सुना...हवे हुं एक स्तुतिके द्वारा सोनगढ प्रत्येना अने गुरुदेव प्रत्येना मारा भक्तिभाव व्यक्त करुं छुं–आम
कहीने तेमणे “जय गुरुदेव....श्री कहान गुरुदेव” इत्यादि काव्य गायुं हतुं.