Atmadharma magazine - Ank 186
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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(फागण सुद १२ ना रोज सोलापुरमां गुरुदेवना प्रवचनमांथी)
आ समयसार शास्त्र वंचाय छे; तेना कर्ता भगवान कुंदकुंदाचार्यदेव आ भरत क्षेत्रमां लगभग सं. ४९
मां विचरता हता, निर्विकल्प शांतिनुं वेदन करता हता. तेओ पोन्नुर पहाडी उपर ध्यान करता हता–हमणां
तेनी यात्रा करी आव्या. ते कुंदकुंदाचार्यदेव महासमर्थ अने ऋद्धिधारक संत हता. ते वखते तीर्थंकरनो अहीं विरह
हतो.....विदेह क्षेत्रे सीमंधर परमात्मा साक्षात् बिराजता हता–ने अत्यारे पण ते भगवान बिराजे छे.
कुंदकुंदाचार्यदेव अहींथी विदेह क्षेत्रे सीमंधर भगवान पासे गया हता. मद्रासमां पं. मल्लिनाथजी कहेता हता के
आ पोन्नुर क्षेत्रथी तेओ विदेह गया हता अने त्यांथी आवीने पछी आ समयसार वगेरे महान शास्त्रो रच्या
हता. आ रीते साक्षात् सर्वज्ञ परमात्मा पासेथी सांभळेलुं ने कुंदकुंदाचार्यदेवे पोते अनुभवीने कहेलुं एवुं आ
समयसार शास्त्र छे, तेनी १७–१८ मी गाथा वंचाय छे.
आचार्य भगवान कहे छे के हे जीव! तुं प्रयत्न वडे तारा आत्मानी श्रद्धा कर, तेनुं ज्ञान कर ने
तेमां ज एकाग्रतावडे तेनुं अनुसरण कर. पूर्वे अनंतकाळमां एक क्षण पण तें तारा शुद्ध आत्मानुं सेवन
कर्युं नथी; शुद्ध आत्माना भान वगर पुण्य–पाप विकारनुं सेवन करीने तुं चार गतिना अवतारमां
परिभ्रमण करी रह्यो छे.
आत्मा त्रिकाळी सत् पदाथ छे; तेनो कोई कर्ता नथी. जे वस्तु सत् छे तेनो कर्ता कोण होय? अने
जे वस्तु सर्वथा होय ज नहि तेने पण कोण करे? आत्मा सत् वस्तु छे तेनो कोई कर्ता नथी; ते सदाय
छे, छे ने छे. अत्यार सुधी जीव क्यां रह्यो? जो पोताना स्वभावने जाणीने सिद्धपद पामी गयो होय तो
तेने संसारमां अवतार न होय. पण जीव पोताना स्वभावने भूलीने अत्यार सुधी संसारनी चार
गतिमां रखडयो छे, चारे गतिमां अनंत अवतार ते करी चूक्यो छे. ते चार गतिना दुःखथी जे छूटवा
मांगतो होय ने आत्मानी शांतिनो अनुभव करवा मांगतो होय एवा मोक्षार्थी जीवने माटे आचार्यदेव
कहे छे के–
ज्यम पुरुष कोई नृपतिने जाणे पछी श्रद्धा करे, पछी प्रयत्नथी धन–अर्थीए अनुसरण नृपतिनुं करे
जीवराज एमज जाणवो वळी श्रद्धवो पण ए रीते एनुं ज करवुं अनुसरण पछी यत्नथी मोक्षार्थीए
जेम धननो अर्थी पुरुष राजाने ओळखीने पछी श्रद्धापूर्वक तेनुं सेवन करे छे, तेम जे मोक्षनो अर्थी छे,
बीजी कोई चीजनो अर्थी नथी, पुण्यनो पण अर्थी नथी, मात्र मोक्षनो ज अर्थी छे, ते जीवे शुं करवुं? के बधा
तत्त्वोमां उत्कृष्ट एवा जीव–राजाने एटले के पोताना शुद्ध आत्मस्वभावने बराबर जाणीने पछी श्रद्धापूर्वक तेनुं
ज सेवन करवुं....तेना सेवनथी अवश्य शुद्धात्मानी प्राप्ति थाय छे. आ सिवाय बीजी कोई रीते शुद्धात्मानी प्राप्ति
थती नथी–ए नियम छे.
अंतरमां मारे शांति जोईए, जगतमां बीजुं कांई मारे जोईतुं नथी–एम जे जीव आत्मार्थी छे–
मोक्षार्थी छे, एवा जीवनी आ वात छे. धर्मात्मा धननो के वैभवनो अर्थी नथी. ते तो पोताना आत्माना
मोक्षनो ज अर्थी छे. तेने आचार्यदेव कहे छे के अरे जीव! तारा आत्मामां ज तारी शांति भरी छे, तेमां
अंतर्मुख थईने तेनुं ज तुं सेवन कर, बहारना पदार्थोना सेवनथी तने शांति नहि मळे. जेम कस्तुरी
मृगनी डूंटीमां ज सुंगधी भरी छे पण ते पोतानी सुंगधने भूलीने बहारमां दोडी रह्युं छे....तेम
आत्मानी प्रभुता आत्मामां ज भरी छे, पण पोतानी प्रभुताने भूलीने बाह्यविषयोमां के रागमां
शांतिने शोधे छे ने तेने प्रभुता आपीने तेनुं सेवन करे छे तेथी चार गतिमां रखडे छेे...... अहीं
आचार्यदेव कहे छेः हे जीव! जो तुं खरेखर मोक्षार्थी हो तो तारा आत्मानी प्रभुताने जाणीने तेनुं ज
सेवन कर; तेना सेवनथी तने जरूर तारा आत्मानी शांतिनुं वेदन थशे.