Atmadharma magazine - Ank 186
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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यात्रानुं अमरझरणुं
हे परमवैरागी अडग साधक, उत्कृष्ट आत्मध्यानी
बाहुबलीनाथ! कहानगुरुदेवनी साथे आपश्रीनी परमवैरागी
ध्यानमुद्राना दर्शन करतां आपश्रीनी परम आत्मसाधना
अमारा हृदयमां कोतराई गई छे.....कहानगुरुदेव साथे थयेली
आपश्रीनी आ महा ‘मंगलवर्द्धिनी’ यात्रा सर्वे यात्रिकोना
जीवनमां आत्महितनी प्रेरणानुं एक अमरझरणुं बनी
जशे....अने फरी फरीने–जीवननी प्रति क्षणे–आपनी पावन
ध्यानमुद्राना स्मरण मात्रथी पण यात्रानुं ए अमर झरणुं
अमने शांति आपीने संसारना तापथी बचावशे.....ने आपना
जेवुं मोक्षसुख पमाडशे.
प्रभो! आपनी परम ध्यानमुद्रा मौन होवां छतां जाणे के
आपना आत्मप्रदेशोमांथी रणकार ऊठी रह्या छे के....
मने लागे संसार असार....ए रे संसारमां नहीं जाउं....नहीं
जाउंं....नहीं जाउं रे....
मने ज्ञायक भावनो प्यार.....ए रे ज्ञायकमां हुं लीन
थाउं.....लीन थाउं....लीन थाउं रे.....