बे मुनिवरोने अगाध श्रुतज्ञान
आप्युं..... मुनिवरोए
जेठ सुद पांचमना रोज चतुर्विध
संघे श्रुत– पूजानो महान उत्सव
कर्यो. आ रीते पश्चिममां उगेला
श्रुतज्ञानसूर्यनो प्रकाश आखा
भारतमां प्रसरी रह्यो.
हांजी हां हम आये आये.......
चोवीस प्रभु के द्वारे आये......
जबलपुरकी यात्रा आये.......
चोवीस प्रभु के द्वारे आये.....
गुरुजीकी साथमें आये......
ता. १३ सवारमां भेलुघाट जोवा गया...अहीं एक प्राचीन जिनमंदिर छे तथा आसपास आरसना
छे...ने १०० फूट ऊंचेथी धोध पडे छे. अहींना कुदरती सौंदर्य वच्चे भक्ति करतां करतां गुरुदेव साथे जलविहार
प्रसंगे भक्तोने हर्ष थयो हतो.
तेमनी आंखोमांथी आंसु झरी रह्या हता. त्यारबाद शेठ हुकमीचंदजी (महावीर सायकल मार्टवाळा) ए
गुरुदेव प्रत्ये श्रद्धांजलि अर्पण करतां कह्युं केः हमारा बडा सौभाग्य है कि कानजीस्वामी यहां पधारे है,
और स्वामीजीने यहां आकर के, चैतन्यतत्त्वके चिंतनका जो मार्ग अब तक नहीं मीला था वह हमको
दिखलाया है. स्वामीजी के प्रवचन से यहांकी जनता को यथार्थ चीज समझनेकी मीली है. भारतवर्ष में
संतोने यही आध्यात्मिक बात समाज के समक्ष रखी है. सौराष्ट्र प्रान्त के महान सन्त कानजीस्वामी के
प्रतापसे सोनगढ आध्यात्मिक महान स्थान स्थान बन गया है; मैं स्वयं वहां गया, मुझे वहां जो शांति
मिली उसका वर्णन करना मेरी शक्तिसे बाहर है. उनके प्रवचनकी मैं कया बात कहूं? अपनी नगरीमें
स्वामीजी को अभिनंदन देते हुए हमें हर्ष हो रहा है” त्यारबाद जबलपुरना महिला समाज तरफथी
सुंदरी बहेने काव्यरूपे श्रद्धांजलि अर्पण करी हती, तेमज रूपवती बहेने पण काव्यद्वारा श्रद्धांजलि अर्पण
करी हती. त्यारबाद कवि हुकमचंदजी अनीले पण श्रद्धांजलिगीत गायुं हतुं.....अने पछी जबलपुरना दि.
जैनसमाज तरफथी अभिनंदनपत्र अर्पण करवामां आव्युं हतुं.