प्रवचन; भोजन पछी तरत पनागर–जिनमंदिरोना दर्शने गया...आ रीते जबलपुरना बेदिवसमां विधविध
रसिक छे.
सांजे ६ वागतां गुरुदेव पनागर पधार्या, त्यारे त्यांना समाजे घणा उत्साहथी गुरुदेवनुं स्वागत कर्युं.
प्रतिमा लगभग १० फूट ऊंचा अति भव्य अने प्राचीन छे. आ अति उपशांत जिनप्रतिमाना दर्शनथी गुरुदेव
अने भक्तो घणा प्रसन्न थया...अहा! ए उपशांत चैतन्यमुद्राना अवलोकनथी चित्तमां आत्मिक शांतिनुं झरणुं
बीजा अनेक जिनबिंबो त्यां बिराजे छे. एक मंदिरमां उपरना भागमां सम्मेदशिखरजी तीर्थधामनी अति भव्य
मोटी रचना छे, तेमां २प टूंकोनी रचना अने पगलांनी स्थापना छे. अहीं २०० जेटला यात्रिको बेन्डवाजां
भलामण करी के अहींना प्रतीमा खास दर्शनीय छे. जिनेन्द्रभगवानना दर्शन–भक्ति बाद पनागर जैन समाजे
गुरुदेवने अभिनंदनपत्र आप्युं, तेमज यात्रासंघने पण अभिनंदनपत्र आप्युं....तथा दरेक यात्रिकने माळा
हतुं. सामर्धी–सामर्धीना मिलन अने वात्सल्यनुं भावभीनुं द्रश्य देखीने सौने हर्ष थयो हतो. संघने विदाय पण
धामधूमथी वरघोडारूपे आपी हती. रात्रे सौ जबलपुर आवी गया हता.
जबलपुरथी गुरुदेव दमोह पधारतां त्यांना समाजे भव्य स्वागत कर्युं. बपोरे प्रवचनमां त्रणेक हजार
हता तेथी रस्ता उपर माणसोनी भीड जामी हती. धर्मशाळानो उपरनो होल भाईओथी चिक्कार हतो, नीचेनो
जिनमंदिरो छे, तेमां गुरुदेव साथे दर्शन कर्या. संघना भोजनादिनी व्यवस्था दि. जैनसमाजे करी हती. सांजे
दमोहथी कुंडलगीरी तरफ प्रस्थान कर्युं.
शोधीश. एकला नहीं जडे तो देव–गुरुने साथे राखीने शोधीश–इत्यादि प्रकारनी भावनावाळी भक्ति सोने प्रिय
हती. भक्ति करतां करतां सांजे सौ कुंडलगीरी पहोंची गया.
दूरदूरथी कुंडलगिरिनुं सुंदर द्रश्य देखातुं हतुं.....गोळाकार पर्वत चारे बाजु प्रकाशथी भक्तोना चित्तने
हता तेओ मोक्ष पाम्या छे. कुंडलाकार पर्वत उपर ४६ ने नीचेनी धर्मशाळामां १० जिनमंदिरो छे. पर्वत उपरना
मुख्य मंदिरमां ‘कुंडलपुर के बडे बाबा’ तरीके प्रसिद्ध श्री महावीरप्रभुना १२ फूटना भव्य प्रतिमाजी पद्मासने
साथे यात्रिको आवी पहोंच्या... गुरुदेव साथे सिद्धिधामनी शीतळ हवाथी सौ यात्रिको प्रफुल्लित थया. रात्रे चर्चा
वखते गुरुदेव यात्राना मधुर संस्मरणो याद करता हता.
(चैत्र सुद सातम)
गुरुदेव साथे सिद्धिधामनी यात्रा करवा माटे