Atmadharma magazine - Ank 187
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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ः १०ः आत्मधर्मः १८७
बपोरे पू. गुरुदेवना निवासस्थाने खास तत्त्वचर्चानो प्रोग्राम हतो, जबलपुरना अनेक विद्वान भाईओ
ते वखते उपस्थित हता अने तत्त्वचर्चाथी प्रसन्न थया हता. चर्चा पछी जिनमंदिरमां भक्ति अने भक्ति पछी
प्रवचन; भोजन पछी तरत पनागर–जिनमंदिरोना दर्शने गया...आ रीते जबलपुरना बेदिवसमां विधविध
खूब ज भरचक कार्यक्रमो रहेता. जबलपुरनी जैन जनता धर्मना उल्लासवाळी छे ने स्वाध्यायचर्चानी खास
रसिक छे.
पनागरमां जिनबिंबदर्शन अने स्वागत
सांजे ६ वागतां गुरुदेव पनागर पधार्या, त्यारे त्यांना समाजे घणा उत्साहथी गुरुदेवनुं स्वागत कर्युं.
पनागर जबलपुरथी दस माईल दूर छे. अहीं पांच जिनमंदिरो छे...एक मंदिरमां शांतिनाथ प्रभुना विशाळ
प्रतिमा लगभग १० फूट ऊंचा अति भव्य अने प्राचीन छे. आ अति उपशांत जिनप्रतिमाना दर्शनथी गुरुदेव
अने भक्तो घणा प्रसन्न थया...अहा! ए उपशांत चैतन्यमुद्राना अवलोकनथी चित्तमां आत्मिक शांतिनुं झरणुं
वहेवा मांडे छे....संसारना थाकथी थाकेला भक्तो आ शांतिनाथ प्रभुना शरणमां शांति पामे छे. आ उपरांत
बीजा अनेक जिनबिंबो त्यां बिराजे छे. एक मंदिरमां उपरना भागमां सम्मेदशिखरजी तीर्थधामनी अति भव्य
मोटी रचना छे, तेमां २प टूंकोनी रचना अने पगलांनी स्थापना छे. अहीं २०० जेटला यात्रिको बेन्डवाजां
सहित गातांगांतां जिनमंदिरोना दर्शन करवा गया....अने खूब हर्षथी भक्ति करी. गुरुदेवे पण भक्तोने
भलामण करी के अहींना प्रतीमा खास दर्शनीय छे. जिनेन्द्रभगवानना दर्शन–भक्ति बाद पनागर जैन समाजे
गुरुदेवने अभिनंदनपत्र आप्युं, तेमज यात्रासंघने पण अभिनंदनपत्र आप्युं....तथा दरेक यात्रिकने माळा
पहेरावीने अने मेवा आपीने यात्रासंघनुं सन्मान कर्युं. पनागरना जैनसमाजे घणुं भावभीनुं वात्सल्य बताव्युं
हतुं. सामर्धी–सामर्धीना मिलन अने वात्सल्यनुं भावभीनुं द्रश्य देखीने सौने हर्ष थयो हतो. संघने विदाय पण
धामधूमथी वरघोडारूपे आपी हती. रात्रे सौ जबलपुर आवी गया हता.
दमोह (चैत्र सुद छठ्ठ ता. १४)
जबलपुरथी गुरुदेव दमोह पधारतां त्यांना समाजे भव्य स्वागत कर्युं. बपोरे प्रवचनमां त्रणेक हजार
माणसो ऊभराया हता; सेंकडो माणसो आसपासना गामोथी आव्या हता...धर्मशाळामां माणसो समाता न
हता तेथी रस्ता उपर माणसोनी भीड जामी हती. धर्मशाळानो उपरनो होल भाईओथी चिक्कार हतो, नीचेनो
भाग बहेनोथी चिक्कार हतो, धर्मशाळाना रूमो पण श्रोताजनोथी भराई गया हता. अहीं लगभग ९
जिनमंदिरो छे, तेमां गुरुदेव साथे दर्शन कर्या. संघना भोजनादिनी व्यवस्था दि. जैनसमाजे करी हती. सांजे
दमोहथी कुंडलगीरी तरफ प्रस्थान कर्युं.
यात्रा दरमियान प्रवास वखते भक्तो अध्यात्म भावनावाळी भक्ति करता..जगतनगरनी गलीगलीमां
फरीने, वनजंगलमां ने गिरिगूफामां फरी फरीने, दुनियामां गमे त्यांथी हुं मारा आत्मस्वरूपने शोधी
काढीश...दुनियामां नहीं मळे तो अंर्तस्वरूपमां वळी वळीने शोधीश. असंख्य आत्मप्रदेशनी गलीगलीमां
शोधीश. एकला नहीं जडे तो देव–गुरुने साथे राखीने शोधीश–इत्यादि प्रकारनी भावनावाळी भक्ति सोने प्रिय
हती. भक्ति करतां करतां सांजे सौ कुंडलगीरी पहोंची गया.
कुंडलगीरी –सिद्धक्षेत्र
दूरदूरथी कुंडलगिरिनुं सुंदर द्रश्य देखातुं हतुं.....गोळाकार पर्वत चारे बाजु प्रकाशथी भक्तोना चित्तने
आकर्षी रह्यो हतो.....पर्वत उपर अनेक ऊज्जवळ जिनमंदिरोनी शिखरमाळा एवी शोभी रही छे– जाणे के
पर्वतने मंदिरोनी माळा ज पहेरावी होय! आ कुंडलगीरी सिद्धक्षेत्रथी श्रीधरस्वामी–के जेओ अंतिम केवळज्ञानी
हता तेओ मोक्ष पाम्या छे. कुंडलाकार पर्वत उपर ४६ ने नीचेनी धर्मशाळामां १० जिनमंदिरो छे. पर्वत उपरना
मुख्य मंदिरमां ‘कुंडलपुर के बडे बाबा’ तरीके प्रसिद्ध श्री महावीरप्रभुना १२ फूटना भव्य प्रतिमाजी पद्मासने
बिराजे छे. वच्चे ‘वर्द्धमानसागर’ नामनुं विशाळ रमणीय तळाव छे. आवा रमणीय सिद्धिधाममां गुरुदेव
साथे यात्रिको आवी पहोंच्या... गुरुदेव साथे सिद्धिधामनी शीतळ हवाथी सौ यात्रिको प्रफुल्लित थया. रात्रे चर्चा
वखते गुरुदेव यात्राना मधुर संस्मरणो याद करता हता.
कुंडलगीरी सिद्धिधामनी यात्रा
(चैत्र सुद सातम)
गुरुदेव साथे सिद्धिधामनी यात्रा करवा माटे