ः ८ः आत्मधर्मः १८७
२०प वर्ष पहेलां......
आजथी लगभग २०प वर्ष पहेलां सं. १८११ ना फागण वद पांचमना एक
पत्रमां पं. टोडरमल्लजी लखे छे के–
आ वर्तमान काळमां अध्यात्म रसना रसिक जीवो बहु ज थोडा छे. धन्य छे
तेमने जे स्वानुभवनी वार्ता पण करे छे. ×××
...... पत्रमां आगळ जतां लखे छे केः सारूं तो ए छे के चैतन्यस्वरूपनी
प्राप्तिना उद्यममां–अनुभवमां रहेवुं. वर्तमानकाळमां अध्यात्मतत्त्व तो आत्मा
छे...तमे अध्यात्म तथा आगम ग्रंथोनो अभ्यास राखजो अने निजस्वरूपमां मग्न
रहेजो. वळी तमे कोई विशेष ग्रंथ जाण्या हो ते मने लखी मोकलजो..........स्वधर्मीने
तो परस्पर चर्चा ज जोईए.....
पत्रनी शरूआतना संबोधनमां तेओश्री लखे छे केः तमने चिदानंदघनना अनुभवथी
सहजानंदनी वुद्धि चाहुं छुं.
आखी बजारनुं वातावरण एक धर्मदरबारना रूपमां फेरवाई गयुं हतुं.
मढीयाजी (चैत्र सुद ४)
ता. १२ रात्रे जबलपुरथी पांच माईल दूर मढीयाजी क्षेत्रना दर्शन करवा गया हता. त्यां नानकडा
(३००) फूट ऊंचा पर्वत उपर अनेक जिनालयो वगेरेनी सुंदर रचना छे. वच्चे बाहुबली भगवानना ९ फूटना
प्रतिमा छे; एक बाजु मंदिरमां ढळती आंखोवाळा ध्यानस्थ महावीर प्रभुनी सरस मुद्रा छे, बीजी तरफ
आदिनाथ भगवान शोभी रह्या छे; ने चोकमां फरती चोवीस देरीओमां एक सरखा २४ भगवंतो (ते ते
भगवंतोना वर्णमां) शोभी रह्या छे, तेनाथी आखा पर्वतनुं वातावरण खूब आकर्षक बनी गयुं छे. एक
मंदिरमां कमळासने जिनेन्द्रभगवान शोभी रह्या छे. बीजा पण बे मंदिरो छे, तेमज मनोहर–शांत गूफाओ पण
छे, एक गूफामां मुनिवरोनुं चित्र छे, ने बीजी गूफामां नानकडा जिनबिंब मुमुक्षुने आत्मध्याननी प्रेरणा आपी
रह्या छे. ‘पीसनहारी का मंदिरमां बे नाना जिनबिंबो अने गौतमगणधरना चरण पादुका छे. तळेटीमां
मंदिरमां सुंदर महावीर प्रभु बिराजे छे तथा मानस्तंभ छे. अहीं गुरुदेव साथे हर्षपूर्वक सर्वे मंदिरोना दर्शन
करीने बाहुबली भगवान पासे भक्ति करी....
(१) जय बाहुबली जय बाहुबली
जय बाहुबली देवा...
माता तोरी सुनंदा ने पिता ऋषभदेवा...
(२) धन्य बाहुबली आतमहितमें
छोड दिया परिवार...
कि तुमने छोडा सब संसार...
भारत छोडा......वैभव छोडा.....
छोडा सब राजपाट......
कि तुमने छोडा सब संसार.......
इत्यादि खूब ज भक्ति पू. बेनश्रीबेने करावी हती.
अहीं अनेक मंदिरो ने चोवीश भगवंतोना दर्शनथी सौने घणो आनंद थयो.....गुरुदेव साथे एक नवा
तीर्थधामनी नानकडी यात्रा थई.....जतां जतां फरीने पण भक्ति करवानुं मन थयुं....तेथी नीचे मुजबनी
भावभीनी भक्ति करावी–