Atmadharma magazine - Ank 187
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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वैशाखः २४८पः ७ः
दर्शन कर्या बाद भोजन करीने यात्रिको जबलपुर पहोंची गया. गुरुदेव रात्रे सीवनी रोकाया हता, त्यां पंडित
सुमेरचंदजी दीवाकर वगेरे साथे सुंदर तत्त्वचर्चा थई हती....सीवनीमां आखो दिवस गुरुदेवना परिचयथी तथा
तत्त्वचर्चाथी पं. सुमेरचंदजी तेमज रतनलालजी वगेरे घणा प्रसन्न थया हता, ने तेमणे भावभीनुं भाषण करतां
कह्युं हतुं के हम अभी तक भ्रममें थे, स्वामीजीने हमको नई बात समझाई है.
जबलपुर (ता. १२–१३ चैत्र सुद ४–प)
सवारे ९ वागे गुरुदेव पधारतां जबलपुरना जैनसमाजे शांतिपूर्वक सादाईथी स्वागत कर्युं. जबलपुरनो
जैनसमाज खूब उत्साही छे ने अनेकविध वैभवथी संपन्न छे. गुरुदेवनुं खूब ज ठाठमाठथी महान स्वागत
करवानी तेमनी भावना हती; परंतु ताजेतरमां कोई दुष्ट जीवोद्वारा त्यांना एक जिनमंदिरनुं खंडन थई गयुं
होवाथी जबलपुरना जैन समाजमां उदासी छवाई गई छे; तेथी शांतिथी सादाईपूर्वक अध्यात्मगीत गातां
गातां गुरुदेवनुं स्वागत कर्युं. खंडित मंदिरना हाल जोतां भक्तोनुं हृदय गदगद थई जतुं हतुं...मंदिरमां चारे
बाजु वेरणछेरण पडेला काचना ढगलामांथी पण जाणे के वीतरागतानो नाद गूंजी रह्यो हतो. गुरुदेवना
स्वागतमां अनेक प्रतिष्ठित अजैन भाईओए पण भाग लीधो हतो, प्रवचन मंडप पांचेक हजार माणसोथी
चिक्कार भराई गयो हतो. स्वागत–प्रवचन करतां एडीशनल डीस्ट्रीक जज श्री फूलचंदजी साहेबे कह्युं केः मैं
सोनगढ आ गया हुं, शीखरजी भी आया था, बम्बई भी आया, और सोनगढका दस वर्षका साहित्य मैंने
सूक्ष्मता से पढा है; मैं अपने अनुभवसे और अधिकारसे यह कह सकता हूं कि आज ईस भारत के दार्शनिकोमें
जैन दर्शनका सर्वश्रेष्ठ दार्शनिक कानजीस्वामी हैं, अपनी अनोखी शैलिसे आपने समयसार आदिका रहस्य
समझाया है, जैन दर्शन की जितनी ऊंचीसे ऊंची सेवा हो सकती है वह स्वामीजीने की है, ईसलिये जैन समाज
के उपर आपका बडा उपकार है. जैन समाज की ओरसे मैं आपको किन शब्दोमें श्रद्धांजलि दूं! हिंदभरके अनेक
पंडितोंका मुझे समागम हुआ है लेकिन मेरे आत्मामें गहरी तात्त्विक असर स्वामीजीकी है; अभी प्रवचन
सुननेपर आपको भी ईस बातका अनुभव हो जायगा. मैं स्वामीजी को श्रंद्धांजलि दे रहा हुं....हमारे यहां कुछ
ऐसी चीज हो गई है कि हम आपका पूरा स्वागत नहीं कर सके, तूटाफूटा स्वागत करके मैं आपसे क्षमा चाहता
हूं.
गुरुदेवना मंगल प्रवचन बाद बपोरनो भक्तिनो कार्यक्रम जाहेर करतां कह्युं हतुं के, हमारे यहां पधारी
हुई सोनगढकी दो पवित्र बहिनें (बेनश्री–बेन) तन्मयतासे ऐसी भक्ति करायेंगी कि वर्षोंतक आपको याद
रह जायेगा.
संघना यात्रिकोने भोजन माटे जुदा जुदा भाईओए खास निमंत्रण आपीने पोताना घरे
बोलाव्या हता ने खूब वात्सल्यथी अहींना रीवाज प्रमाणे माळा पहेरावीने तथा कपाळे चंदन चोपडीने
स्वागत कर्युं हतुं.
अहीं १३ मंदिरो छे. मंदिरो घणा विशाळ छे, दरेक मंदिरमां स्वाध्याय तथा सामायिकना खास स्थानो
देखीने “सामायिकवाले जी...” इत्यादि वर्णन याद आवतुं हतुं. एक जिनमंदिरमां ८ वेदी छे, तेमां बपोरे पू.
बेनश्रीबेने अद्भुत भक्ति करावी हती...भक्ति प्रसंगे विशाळ मंदिर चिक्कार भराई गयुं हतुं ते उपरांत हजारो
माणसो मंडपमां बेसीने भक्ति सांभळता हतां....पू. बेनश्रीबेननी आश्चर्यकारी भक्ति देखीने सौ मुग्ध थया
हता.
अहीं तळावकिनारे पंचायती मंदिर घणुं मोटुं छे, तेमा २२ वेदी उपर जिनबिंबसमूह बिराजे छे,
ठेरठेर सामायिकना अने स्वाध्यायनां स्थानो छे. तेमां महावीर भगवानना प्रतिमाजी अतिप्राचीन अने
घणी सुंदर कारीगरीवाळा छे. गुरुदेव साथे आवा विशाळ जिनालयोनां अने जिनदरबारना दर्शन करतां
भक्तोने घणो आनंद थतो हतो. जिनमंदिर एटलुं विशाळ छे के आखा मंदिरमां दर्शन करतां लगभग एक
कलाक लागे छे.
गुरुदेवना प्रवचन माटे भरबजार वच्चे चोकमां भव्य मंडप करेल हतो. पांच–सात हजार
माणसोनी मेदनीथी मंडप ऊभराई जतो हतो, अने आसपासनी २०–२प मोटी मोटी दुकानो पण
श्रोताजनोथी ठसोठस भराई जती हती...वेपार स्थानने बदले ते दुकानो धर्मश्रवणनुं स्थान बनी गई
हती. गुरुदेवना प्रतापे