वैशाखः २४८पः १३ः
सागरमां पू.गुरुदेवे शांतिनो सागर बताव्यो....
ते उत्कृष्ट मंगळ छे.–आ रीते सागरमां शांतिनो सागर गुरुदेवे बताव्यो. (अहीं सागर जेवडुं विशाळ तळाव छे
ते उपरथी गामनुं नाम सागर पडयुं छे.)
मंगल प्रवचन बाद स्वागत–सरघस शरू थयुं....सागरनो मानवसागर स्वागतमां ऊभरायो. खूब
लांबु भव्य स्वागत वर्णीभवनमां आवीने पूरुं थयुं. गुरुदेव पधार्या ते निमित्ते जैन वेपारीओए बे दिवस
दुकानो बंध राखी हती. गुरुदेवनी अने संघनी व्यवस्था माटे सागरना जैनसमाजे घणी होंश बतावी हती.
संघने जमवा माटे शेठ भगवानदासजी वगेरेए पोताने त्यां आमंत्रण आप्युं हतुं ने जमती वखते वात्सल्य
अर्थे दरेक यात्रिकने कुमकुमतिलक कर्युं हतुं.
वर्णीभवनमां बे जिनालयो तथा मानस्तंभ छे, मानस्तंभ उपर जवा माटे लाकडानी सीडी छे. बपोरे
प्रवचनमां वर्णीभवन ऊभराई गयुं हतुं. घणा माणसो आसपासना गामोथी आव्या हता. दसेक हजार
श्रोताजनोनी सभा अनेक त्यागी–ब्रह्मचारीओ, विद्वानपंडितो अने प्रतिष्ठित आगेवानोथी शोभती हती.
गुरुदेवना अध्यात्मिकताथी भरपूर प्रवचन बाद पंडित मुन्नालालजीए प्रवचननी प्रशंसा करतां कह्युं केः
स्वामीजी का प्रवचन अनोखे ढंगका है. ऐसा शुद्ध प्रवचन–जो केवल आत्मतत्त्वका निरूपण करता हो–मैंने आज
ही सुना. अगर ईसका ध्यानसे श्रवण–मनन किया जाय तो आत्माका अवश्य कल्याण हो जायगा, यहां मुझे
बारह वर्ष हुआ, मैंने बहुत से नेताओं का प्रवचन सुना, अबतक मैं भी पंडित कहलाता हुं, मैं अपनी बात
कहता हुं...जब पू. श्रीका साहित्य पढा तब मालुम पडा कि पुण्य अलग चीज है, धर्म अलग चीज है....बीचमें
पुण्य आते है लेकिन वह ध्येय नहीं... धर्म उनसे अलग है. हमारे सौभाग्य से हमें स्वामीजी का दो दिनका लाभ
मिला हे; हम लाभ लेंगे तो हमारा कल्याण होगा.
सांजे गुरुदेव साथे अनेक जिनमंदिरोना दर्शन कर्या. रात्रे अभिनंदन समारोहमां गुरुदेवने त्रण
अभिनंदन पत्रो अपाया. एक दि. जैन समाज तरफथी, बीजुं सागर–विद्यालय तरफथी अने त्रीजुं महिला
आश्रम तरफथी–आ रीते एक ज गाममां त्रण त्रण अभिनंदन पत्रो अपाया, ते उपरथी गुरुदेव प्रत्ये
जनताना उत्साहनो ख्याल आवी शके छे.
बीजे दिवसे सवारमां चौधरन बाईवाळा जिनमंदिरमां समूहपूजा थई हती. आ विशाळ मंदिरमां अनेक
वेदीओ छे, तेमज ८–१० फूट ऊंचा छ खड्गासन प्राचीन प्रतिमाओ बिराजे छे, तेनो देखाव सुंदर छे, जाणे
चैतन्यध्यानमां मग्न मुनिवरो श्रेणी मांडीने