ः १६ः आत्मधर्मः १८७
धन छोडा.....वैभव सब छोडा......
समजा जगत असार.....
कि तुमने छोडा सब संसार......
ए मुनिभक्ति गुरुदेवे घणा भावपूर्वक
गवडावी हती. त्यारबाद जाणे के आ मुनिधाममां
मुनिवरोने साक्षात् देखता होईए एवा
उल्लासभावथी बेनश्रीबेने नीचेनी भक्ति गवडावी
हती.
ऐसे गुरुदत्तमुनि देखे वनमें
जा के रागद्वेष नहीं मनमें...
द्रोणगीरीतीर्थ बे नदीनी वच्चे आवेलुं छे.
पर्वतनी पासे ज चंद्रभागा नदी कलरव करती–जाणे के
मुनिवरोनां गुणगान करती होय तेम–चाली जाय छे.
पूजन–भक्ति बाद गूफानुं अने तीर्थधामना
वातावरणनुं सौए भावपूर्वक अवलोकन कर्युं. आ रीते
आनंदपूर्वक गुरुदेव साथे सिद्धिधामनी यात्रा करीने
जयजयकार करता सौ नीचे ऊतर्या.....ने द्रोणगीरी
तीर्थनी यात्रा पूर्ण थई.
द्रोणगिरि सिद्धिधामनी यात्रा करावना
गुरुदेवने नमस्कार हो
सागरवाळा शेठ बालचंदजी मलैयाए द्रोणगीरी आवीने संघनी व्यवस्थामां होंसपूर्वक भाग लीधो हतो
अने संघने जमाडयो हतो, तेमज गुरुदेव प्रत्ये घणो भक्तिभाव बताव्यो हतो. आ उपरांत मलहराना
भाईओए पण होंसपूर्वक संघनी व्यवस्थामां भाग लीधो हतो.
अहीं गुरुदेव पधार्या ते प्रसंगे, महावीर जन्मकल्याणक निमित्ते पांच दिवसनो खास मेळो भरायो
हतो..बहारगामथी हजारो माणसो आव्या हता ने बजारो डेरातंबु वगेरेथी जाणे नवी नगरी रचाई गई होय
एवुं लागतुं हतुं. मेळाना स्थाने एक विशाळ मंडपमां श्री जिनेन्द्रेदेवने बिराजमान कर्या हता ने रात्रे त्यां
भक्ति थई हती. वीरप्रभुना पारणाझूलननुं तेमज वरदत्तादि मुनिवरोनुं स्तवन पू. बेनश्रीबेने गवडाव्युं हतुं.
मेळा वच्चे मंडपमां सिद्धक्षेत्रनी सामे भक्ति करतां आनंद थतो हतो...अने भक्ति करीने पाछां फरतां जाणे के
भगवाननो जन्मकल्याणक ऊजवीने आवता होईए तेम सौ हर्षित थता हता.
चैत्र सुद तेरसना रोज भगवान महावीर प्रभुना जन्मकल्याणक निमित्ते सवारमां प्रभातफेरी बाद
मंडपमां समूहपूजन थयुं हतुं. पूजन बाद भक्ति थई हती–
कुंडलपुरीके मंझार छाया हरष अपार......
भारतभूमिके मंझार छाया हरष अपार....
त्रिलोकभूमिके मंझार छाया हरष अपार....
भक्ति बाद गुरुदेवनुं प्रवचन थयुं हतुं. बपोरे मेळाना मंडपमां गुरुदेवना प्रवचन बाद शेठ
बालचंदजी मलैयाए स्वागत–प्रवचन करतां कह्युं केः सूर्य पश्चिममां नहीं ऊंगते, लेकिन यह ज्ञानसूर्य तो
पश्चिममें उदित हूआ है और हमको ज्ञानप्रकाश दे रहा है; अज्ञानरूपी अंधकारको नष्ट करके ईसने रातके
बदलेमें दिन
ः मलकापुरना महावीर भगवानः
पू. गुरुदेवना मंगल हस्ते प्रतिष्ठित १८८ जिनबिंबोमां आ सौथी
मोटा छे; प्रभुनी एक बाजु भरत ने बीजी बाजु बाहुबली छे.