Atmadharma magazine - Ank 187
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 18 of 33

background image
वैशाखः २४८पः १७ः
कर दिया है, तीर्थंकर भगवान की साथमें जैसे गणधरादिकी सभा होती है, वैसे स्वामीजी की साथ में भी बडी सभा
है, यह सब देखकर हम लोंगो को बहुत आनंद हो रहा है.....
अहीं तद्न वेरान जंगल जेवुं हतुं परंतु गुरुदेवना पधारवाथी मेळो भरातां जंगलमां मंगळ थई गयुं हतुं.
छतरपुरना नरेन्द्रकुमार म्. अ. ना धर्मपत्नी साहित्यरत्न श्रीमती रमादेवीबहेने उल्लासपूर्वक भाषण करतां
कह्युंः स्वामीजीके संघके परिचयसे मुझे चतुर्थकालके समवसरण जैसा आनंद आया.....सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रका
चतुर्थकाल जैसा योग यहां बना है....प्रवचनमें सम्यग्ज्ञानकी धारा वहती थी......
आज चैत्र सुद तेरसका दिन,
द्रोणगीरी जैसा पावन सिद्धक्षेत्र,
कानजीस्वामी जैसे ज्ञानी पुरुष,
ऐसा उत्तम मेळ आज यहां हो गया है. कानजीस्वामी की सभामें बेठे हुए हम मानों महावीरप्रभुके
दरबारमें ही बैठे हो–ऐसा हमें हर्ष हो रहा है. और हमें विश्वास है कि जेसी शांति सोनगढकी यह बहिनों को मिली
वैसी ही शांति हमें भी प्राप्त होगी.
त्यारबाद पं. दयाचंदजीए श्रद्धांजलि काव्य गायुं हतुं अने पं. दुलीचंदजीए आ प्रांत तरफथी आपवामां
आवेल अभिनंदन पत्र वांच्युं हतुं; अने त्यारबाद श्री जिनेन्द्र अभिषेक थयो हतो. सांजे केटलाक यात्रिको फरीने
सिद्धक्षेत्रनी यात्राए गया हता.....रात्रे तत्त्वचर्चा हती.
आ रीते द्रोणगीरीनो बे दिवसनो कार्यक्रम आनंदथी पूर्ण थयो.
खजराह; (चैत्र सुद १४)
द्रोणगीरीथी प्रस्थान करीने ९ वागे खजराह पहोंच्या....अहीं खूब ज सुंदर कोतरणीवाळा अनेक
प्राचीन जिनमंदिरो छे, ने सेंकडो प्राचीन जिनबिंबो छे. लगभग ८० फूट ऊंचा शिखरबंधी मंदिरो अति
कळामय कोतरणीथी शोभे छे, क्यांय क्यांक, कोतरणी अधूरी रही गई छे. हालना मुख्य मंदिरमां लगभग
१प फूट ऊंचा विशिष्ट पाषाणमां कोतरेला शांतिनाथ भगवान खड्गासने शोभे छे...अहा! ए शांतिनाथ
भगवानने जोतां ज आत्मिक शांतिनी भावनाओ जागृत थाय छे. प्रतिमाजी सं. १०८प ना छे. मंदिरना
चोकमां चारे बाजु अनेक जिनबिंबो बिराजे छे. अहीं कुल ३२ स्थानोना दर्शन बाद शांतिनाथ प्रभु
सन्मुख पूजन–भक्ति थया.
मंदिरनी बहारना चोकमां अनेक मोटामोटा प्राचीन जिनबिंबना अवशेषो छे. खंडित हालतमां रहेला अति
भव्य जिनबिंबोना प्राचीन अवशेषो पण दिगंबर जैनधर्मना पुरातन वैभवनी प्रसिद्धि करता थका मुमुक्षुदर्शकना
हृदयमां वीतरागतानी प्रेरणा जगाडे छे....एक तरफ खंडित दशा देखीने हृदय जराक खेदखिन्न थाय छे तो बीजी
तरफथी जैनधर्मना भव्य प्राचीन वैभवना स्मरणथी हृदय गौरवान्वित थईने वीतरागी भावनामां रत बने छे.
मंदिरोना प्रवेशद्वार वगेरेनी कोतरणी घणी आकर्षक छे, क्यांक माताजीना १६ स्वप्नोनुं द्रश्य छे, कयांक देवीओ द्वारा
माताजीनी सेवानुं द्रश्य छे, तो क्यांय भगवान पंच परमेष्ठीनुं द्रश्य छे. शांतिनाथ प्रभुजी सन्मुख अति शांत
वातावरण छे, ध्यानस्थ भगवानना आंगळानी कळा विशिष्ठ छे, हस्तमां पद्म चिन्ह पण देखाय छे. शांतिनाथ
प्रभुजी सन्मुख बेसीने शांत वातावरणमां शांतिनाथ प्रभुना आ स्मरणो लखाया छे.
बपोरे भोजन बाद त्यांना म्युझीयममां सेंकडो प्राचीन जिनबिंबो जोया, तेमज बाजुमां अन्यमतना
मंदिरोनी प्राचीन कारीगीरी जोई. त्यारबाद संघे त्यांथी प्रस्थान कर्युं. १ थी २ गुरुदेवे खजराहमां प्रवचन कर्युं.
खजराहथी पपौराजी तरफ जतां वच्चे नवगाम मुकामे मंडप बांधीने सेंकडो लोकोए गुरुदेवनुं स्वागत कर्युं,
ने वात्सल्यपूर्वक संघने रोकीने दूधीयुं पायुं. टीकमगढमां पण उत्साहथी स्वागत कर्युं. त्यां दर्शन करीने रात्रे संघ
सहित गुरुदेव पपौराजी क्षेत्रमां पहोंची गया.
पपौराजी
पपौरा सुंदर क्षेत्र छे, विशाळ मेदान फरती चारे बाजु धर्मशाळा छे ने ७प मंदिरो छे. पहेला ज मंदिरमां
आदिनाथ प्रभुना छ फूट ऊंचा खड्गासन प्रतिमाना दर्शन करतां वेंत ज यात्रिकोनो थाक उतरी जाय छे ने हर्षथी हृदय
पुलकित थाय छे. मंदिरो विशाळ छे ने केटलाक मंदिरो सुंदर गजरथना आकारना छे.